आखिर क्यों रजनीकांत ने किया है राजनीति में एंट्री का ऐलान, ये हैं 4 बड़ी वजहें
नई दिल्ली। दक्षिण सिनेमा के सुपरस्टार रजनीकांत ने आज जिस तरह से राजनीति के मैदान में एंट्री का ऐलान किया है उसके बाद हर तरफ इस बात की चर्चा हो रही है कि आखिर कैसे रजनी आने वाले समय में तमिलनाडु की राजनीति में अपने पैर जमाएंगे। रजनीकांत के समर्थकों की बात करें तो वह उन्हें बतौर अभिनेता बड़े पर्दे पर भगवान की तरह पूजते हैं और दक्षिण की राजनीति में फिल्मी दुनिया से आने वाले मेगास्टार हमेशा से ही अपनी धाक जमाने में सफल हुए हैं। इससे पहले जिस तरह से एमजीआर और जयललिता ने लोगों के बीच अपनी पैठ बनाई और सत्ता के शिखर पर पहुंचने में सफल हुए उसे देखें तो कहा जा सकता है कि रजनीकांत को भी कोई खास मुश्किल नहीं होनी चाहिए। लेकिन रजनीकांत के राजनीति में आने के बाद यहां की राजनीति में काफी बदलाव आएगा।
तमिलनाडु में सियासी संकट
रजनीकांत ने राजनीति में एंट्री का ऐसे समय में ऐलान किया है जब यहां एक तरह से बड़ा सियासी संकट चल रहा है, जयललिता के निधन के बाद एआईएडीएमके पार्टी के भीतर लगातार फूट के चलते पार्टी में नेतृत्व का लगातार अभाव है। जयललिता के निधन के बाद ओ पन्नीरसेल्वम और शशिकला कैंप में टकराव देखने को मिला, नौबत यहां तक पहुंच गई कि पार्टी के बीच फूट पड़ गई और विभाजन की स्थित तक बन गई। लेकिन शशिकला के जेल जाने के बाद दोनों ही गुटों मे एक बार फिर से एकजुटता देखने को मिली, लेकिन यह एकजुटता लोगों को कुछ खास पसंद नहीं आई, इसका बड़ा उदाहरण है आरके नगर सीट पर हुए उपचुनाव में टीटीवी दिनाकरन की जीत। ऐसे में इस सियासी संकट के बीच रजनीकांत खुद को बतौर नेता के तौर पर लोगों के बीच स्थापित कर सकते हैं।
एक नेता की तलाश
तमिलनाडु की राजनीति में हमेशा से एक लोकप्रिय चेहरा लोगों के बीच अपनी जबरदस्त पैठ बनाकर रखता आया है, पहले एमजीआर, फिर करुणानिधी बाद में जयललिता। ऐसे में जिस समय में जयललिता का निधन हुआ उसके बाद उनके समान बड़े कद के नेता की तमिलनाडु में एक अदद कमी देखने को लगातार मिल रही है। डीएमके और एआईएडीएमके दोनों ही दलों में एक ऐसे नेता का सर्वथा अभाव देखने को मिलता है जो लोगों को अपनी ओर खींच सके। ऐसे में जिस तरह की रजनीकांत की लोकप्रियता है वह इस कमी को पूरी कर सकती है। हालांकि यह देखने वाली बात होगी कि क्या लोग जयललिता और एमजीआर की ही तरह रजनीकांत का सियासी मैदान पर स्वागत करते हैं या नहीं।
डीएमके और एआईएडीएमके की कमजोर स्थिति
तमिलनाडु की राजनीति में भी उत्तर प्रदेश की तरह दो ही पार्टी लगातार अपना शासन चलाती आई हैं, पहले डीएमके और फिर एआईडीएमके। लेकिन डीएमके में करुणानिधि जिस तरह से अपने राजनीतिक जीवन के अंतिम पड़ाव पर है, उनके पास कोई ऐसा नेता नहीं है जो उनकी जगह को भर सके। वहीं एआईएडीएमके में भी जयललिता के बाद ओपीएस-ईपीएस के बीच लगातार टकराव के बीच सियासी संकट बरकरार है। ऐसे में जिस तरह से टीटीवी दिनकरन ने आरके नगर उपचुनाव में सफला हासिल की उसने साफ संकेत दे दिए हैं कि प्रदेश में एक अदद ऐसे नेता की तलाश है जो दोनों ही दलों से इतर एक बेहतर विकल्प दे सके। हालांकि रजनीकांत राजनीति में उतरने का पहले ही फैसला ले चुके थे, उन्हे एक अदद ऐसे मजबूत संकेत की जरूरत थी, जोकि उन्हें आरके नगर उपचुनाव से मिला है।
भाजपा की सियासत को साधने की कोशिश
जयललिता के निधन के बाद लगातार भारतीय जनता पार्टी तमिलनाडु की राजनीति में आए खालीपन को अपने हिस्से में करने की कोशिश में जुटी है। लेकिन आरके नगर उपचुनाव में जिस तरह से पार्टी को नोटा से भी कम वोट मिले उसने पार्टी को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। ऐसे में रजनीकांत की राजनीति में एंट्री के ऐलान के बाद भाजपा हरसंभव यह कोशिश करेगी कि वह रजनीकांत के साथ अपनी करीबी बनाकर रखे। बहरहाल यह देखने वाली बात होगी कि क्या रजनीकांत अपने साथ अन्य पार्टियों को साधकर चलेंगे या फिर अलग राजनीति की बात करने वाले रजनी एक अलग ही सियासी मिसाल कायम करेंगे।
इसे भी पढ़ें- MGR, जयललिता के बाद मेगास्टार रजनीकांत की राजनीति में एंट्री, ये बड़ी मुश्किल