Haryana Results:जाट बहुल इलाके में कैसे 36 के आंकड़े ने बीजेपी को 40 पर ही रोक दिया ?
नई दिल्ली- हरियाणा की चार लोकसभा क्षेत्रों में आने वाली 36 विधानसभा सीटों ने भाजपा को दोबारा बहुमत के साथ सत्ता में वापसी का सपना चकनाचूर कर दिया। इस पूरे क्षेत्र में जाटों का दबदबा रहा है। जाटों में सत्ताधारी पार्टी खासकर मुख्यमंत्री मनमोहर लाल खट्टर के प्रति नाखुशी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य में भारतीय जनता पार्टी के 6 बड़े जाट नेताओं में से 5 को मतदाताओं ने बाहर का रास्ता दिखा दिया। लोकसभा चुनावों के बाद लग रहा था कि आईएनएलडी के पतन का फायदा उठाने में कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी सफल हो रही है। लेकिन, विधानसभा चुनाव के परिणाम ने कुछ उलट ही कहानी बयां की है। नतीजों से साफ लग रहा है कि आईएनएलडी से टूटने वाले वोटरों ने या तो परिवार के ही दूसरे वारिस दुष्यंत पर विश्वास किया है, फिर उन्होंने जाट नेता भूपिंदर सिंह के साथ ही जाना तय किया है।
जाट बहुल इलाके में भाजपा का प्रदर्शन
हरियाणा में पंजाब सीमा से लगे सिरसा से लेकर मध्य हरियाणा से होते हुए सोनीपत तक बीजेपी को इसबार तगड़ा झटका लगा है। विधानसभा की 36 जाट बहुल सीटों में से 15 कांग्रेस, 7 जनननायक जनता पार्टी, 1 इंडियन नेशनल लोकदल और 3 अन्य उम्मीदवारों के खाते में गई है। जबकि, बीजेपी को सिर्फ 10 सीटों से ही संतोष करना पड़ा है। बीजेपी के लिए सबसे ज्यादा मायूसी की बात ये है कि नारनौंद से वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु, बादली से कृषि मंत्री ओपी धनकड़, टोहाना से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला, उचाना कलां से पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेम लता और बधरा से सुखविंदर जैसे नेता चुनाव हार गए हैं। माना जा रहा है कि जाटों में यह भावना बैठी हुई थी कि ये नेता पार्टी में उनकी हितों की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं।
बीजेपी की बहुमत पर ब्रेक
अगर सिरसा, हिसार, सोनीपत और रोहतक की इन 36 जाट बहुल सीटों का परिणाम देखें तो स्पष्ट हो जाता है कि अगर जाट वोट बीजेपी से मुंह नहीं मोड़ता तो वह कम से कम बहुमत के आंकड़े (46) को तो छू ही सकती थी। मसलन, कांग्रेस ने सोनीपत में 5, रोहतक में 7, सिरसा में 2 और हिसार में 1 सीट जीती है। वहीं जेजेपी ने हिसार में 4, सिरसा में 2 और सोनीपत में 1 सीट पर सफलता पाई है। जबकि, अन्य उम्मीदवार भी सिरसा में 3 और रोहतक में 1 सीट पर बाजी मारने में कामयाब रहे हैं। लेकिन, बीजेपी हिसार में 4, सिरसा में 2, सोनीपत में 3 और रोहतक में 1 सीट तक ही अपनी पहुंच बना पाई है। यानि, 36 में से 26 सीटें भाजपा के खिलाफ गई हैं।
जाट बनाम गैर-जाट की लड़ाई में फंसी बीजेपी!
अगर विधानसभा चुनाव के दौरान हरियाणा की सियासी जमीन को देखें तो 2016 के जाट आंदोलन के दौरान पैदा हुई जाट-गैर जाट की खाई को पाटने में भाजपा नाकाम रही। जब कांग्रेस ने दलित चेहरे अशोक तंवर की जगह भूपिंदर सिंह हुड्डा के हाथों में प्रदेश की कमान सौंप दी तो वे इस चुनावी लड़ाई को जाट (हुड्डा) बनाम गैर जाट (मनोहर लाल) के बीच संघर्ष का रूप देने में सफल हो गए। इस लड़ाई में जाटों ने खुलकर हुड्डा का साथ दिया और रही-सही कसर चौधरी देवीलाल के खानदान के वारिस दुष्यंत चौटाला ने पूरी कर दी। ऊपर से किसानों की समस्या ने उन्हें भाजपा से मुंह मोड़ने की वजह और दे दी।
दुष्यंत चौटाला जाटों के नए युवा नेता बनकर उभरे
जाट बेल्ट में बीजेपी के विजय रथ पर ब्रेक लगाने में दुष्यंत की पार्टी जननायक जनता पार्टी का कितना योगदान रहा यह इसी से पता चलता है कि पार्टी न सिर्फ 90 में से 10 सीटों पर कब्जा कर लिया, बल्कि 10 और सीटों पर वहां दूसरे स्थान पर भी रही। जेजेपी ने जो सीटें जीती हैं, उनमें से 7 जाट बेल्ट की ही हैं और उसने उत्तर हरियाणा के शाहाबाद जैसी सीट को भी फतह किया है। दुष्यंत के उभरने से एक बात साफ हो गई है कि अब देवीलाल या चौटाला के खानदान का प्रतिनिधित्व वहीं करेंगे। उनके चाचा अभय चौटाला की आईएनएलडी के 19 से 1 सीट पर खिसकने से भी ये साफ हो गया है कि इस परिवार में हुए बंटवारे के बाद जाट वोट या तो कांग्रेस की ओर गए हैं या फिर उन्होंने जेजेपी पर भरोसा किया है। दुष्यंत ने सीटों के चुनाव में जो जोखिम लिया, उससे जाट बेल्ट में उनकी पार्टी पर एक सकारात्मक असर पड़ा। मसलन, उन्होंने खुद परिवार की सीट उचाना कलां में प्रेम लता का सामना किया। वहीं, अपनी मां नैना सिंह को डबवाली सीट से बदलकर दक्षिण हरियाणा के बधरा में उतार दिया। आज की तारीख में उनकी रणनीति पूरी तरह से सफल कही जा सकती है।
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