कुंभ और कोरोनाः 'मैंने सब भगवान पर छोड़ दिया था', हरिद्वार से आँखों-देखी
कोरोना की नई लहर के बीच हरिद्वार में हो रहे कुंभ में लाखों लोगों के जुटने पर सवाल पूछे जा रहे हैं. संक्रमण से बचने के लिए क्या हैं वहाँ प्रबंध?
मुंबई के रहने वाले 34 वर्षीय बिज़नेसमैन और फ़ोटोग्राफ़र उज्जवल पुरी नौ मार्च की सुबह जब हरिद्वार पहुचे तो मास्क के अलावा उनके पास सैनिटाइज़र, विटामिन की गोलियां भी थीं.
देहरादून की फ्लाइट पर बैठने से पहले उन्हें लगा कि हरिद्वार में इतनी कड़ी सुरक्षा होगी कि कहीं उन्हें एंट्री ही न मिल पाए.
उन्होंने अपना नेगेटिव कोविड आरटीपीसीआर टेस्ट सरकारी वेबसाइट पर रजिस्टर करने की कोशिश की थी लेकिन "वेबसाइट नहीं चल रही थी."
लेकिन न उनकी एअरपोर्ट पर, न हरिद्वार में कोई चेकिंग हुई.
हर की पैड़ी में खींची गई उनकी तस्वीरों में ज़्यादातर लोगों के चेहरे पर या मास्क है ही नहीं, या तो ठुड्डी पर खिसका हुआ है.
रात को खींची गई एक तस्वीर में घाट की सीढ़ियों पर बिना मास्क पहने श्रद्धालुओं से पटी हुई हैं. कुछ महिलाओं ने पूजा के भाव में हाथ जोड़े हुए हैं. कोई कपड़े खोल रहा है, कोई पहन रहा है, कोई तौलिये से बाल सुखा रहा है, कोई मोबाइल में मगन है, किसी के हाथ में बच्चा है तो कोई अपने साथी से बात कर रहा है.
वो कहते हैं, "वहां कोई सोशल डिस्टेंसिंग नहीं थी. शाम की आरती के वक्त आदमी आदमी के साथ चिपककर बैठा हुआ था."
उज्जवल तीन दिन कुंभ मेले में रहे औऱ उनके मुताबिक उन्होंने इन तीन दिनों में बाहर सिर्फ़ एक बार "बाबा लोगों के साथ सेल्फ़ी लेने के लिए मास्क निकाला."
उज्जव कहते हैं, "मैंने सब कुछ भगवान के ऊपर छोड़ दिया था."
तीन दिनों बाद जब वो घर मुंबई पहुंचे तो वो डरे हुए थे.
वो कहते हैं, "मैंने अपना कोरोना टेस्ट करवाया. जैसे ही मैं घर के अंदर आया, मैंने खुद को कमरे में लॉक कर दिया. घर में मेरे माता-पिता भी हैं, इसलिए मैंने पूरी सावधानी ली.."
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ भारत में कोरोना कहर से अभी तक एक लाख तिहत्तर हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.
कई राज्यों से अस्पताल में बिस्तरों, ऑक्सीजन सिलिंडर, दवाओं की भारी कमी की खबरें हैं. लोग अस्पताल में जगह के लिए मारे मारे सड़कों पर फिर रहे हैं. श्मशान घाट में टोकन बंट रहे हैं. ऐसे में कुंभ मेले में लाखों की भीड़ को सुपर-स्प्रेडर इवेंट बताया जा रहा है.
कोरानाकाल में बीजेपी शासित उत्तराखंड में आयोजित कुंभ को कई लोग पार्टी की हिंदुत्व राजनीति से जोड़कर देख रहे हैं.
मसूरी में रहने वाले इतिहासकार गोपाल भारद्वाज मानते हैं कि कोरोना काल में कुंभ को टाल देना चाहिए था.
वो कहते हैं, "जो लोग कुंभ में नहाने नहीं जाते क्या वो पाप के भागी हो जाते हैं?... ये आदमी की आत्मा की शांति के लिए है. अगर कोई बीमार हो रहा है तो घर में क्या शांति होगी."
गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि पहले कुंभ दो हफ़्ते का होता था लेकिन बाज़ारीकरण के कारण पिछले 35-40 सालों में इसका वक्त बढ़ता चला गया.
वो कहते हैं, "इसका मुख्य स्नान वैसाखी का ही होता था....बाद में इसे मकर संक्रांति से जोड़ दिया. शिवरात्रि भी आ गई. शिवरात्रि अपने आप में महत्वपूर्ण त्योहार है. लोगों ने इन सबको जोड़कर इसे साढ़े तीन महीने का बना दिया."
गोपाल भारद्वाज कहते हैं, "कुंभ का मतलब होता था, धार्मिक आचार-व्यवहार. पहले शास्त्रार्थ होते थे. कि अपने धर्म को कैसे बचाना है. जो इतने बड़े-बड़े अखाड़े बने हुए हैं, ये हिंदू धर्म की रक्षा के लिए बने थे. अगर हिंदू धर्म में बुराइयां आ रही हैं, तो उस पर बातचीत होती थी कि बुराइयों को कैसे दूर किया जाए. अब वो चीज़ तो धीरे-धीरे कम होती जा रही है. न इतना वक्त, विद्वान भी इतने कहां रह गए हैं जो बैठकर शास्त्रार्थ करेंगे. अब हर चीज़ का बाज़ारीकरण होता जा रहा है.
लोगों में डर
कोरोनाकाल में कुंभ से हरिद्वार की एक धर्मशाला चलाने वाले मिथिलेश सिन्हा के मुताबिक "स्थानीय लोगों मे भय है."
वो कहते हैं, "जो लोग यहां आ रहे हैं वो तो चले जाएंगे एक या दो दिन में. जो लोग यहां रहने वाले हैं, उन्हें क्या प्रसाद देकर जाएंगे ये कोई नहीं जानता है."
"जब भक्ति की बात आती है तो लोगों को समझाना मुश्किल हो जाता है."
कोरोना वायरस आस्तिक और नास्तिक के फर्क को नहीं समझता.
अभी ये साफ़ नहीं कि कुंभ की शुरुआत से अभी तक कुल कितने कोविड पॉज़िटिव कन्फ़र्म केस हैं, लेकिन एक अधिकारी ने बातचीत में हर दिन दो सौ से थोड़ा कम कोविड पॉज़िटिव टेस्ट की बात कही.
कुंभ मेला कोविड नोडल अफसर डॉक्टर अविनाश खन्ना के मुताबिक मेला क्षेत्र में पचास टेस्टिंग सेंटर हैं.
डॉक्टर खन्ना ने बताया कि स्थानीय लोग और धर्मशालाओं में रुकने वाले लोगों का आरटीपीसीआर टेस्ट और वापस जाने वाले लोगों का एंटीजन टेस्ट किया जा रहा है.
लेकिन फिक्र ये कि जो कोविड पॉज़िटिव लोग वापस अपने घरों को लौट गए हैं, उससे ये वायरस और तेज़ी से फैलेगा.
अदालती याचिका
इसी डर का ज़िक्र हरिद्वार के स्थानीय निवासी सच्चिदानंद डबराल ने नैनीताल हाइकोर्ट में दाखिल अपने जनहित याचिका में किया था.
पिछले साल की इस याचिका में उन्होंने कहा था कि कुंभ में जब लाखों लोग आएंगे तो ज़िला प्रशासन कोविड की रोकथाम कैसे कर पाएगा.
सच्चिदानंद की एक फार्मा कंपनी है और वो मेडिकल स्टोर चलाते हैं.
उनके मुताबिक नवंबर-दिसंबर में हरिद्वार में हालात सामान्य जैसे हो गए थे, और कोविड के मामले कंट्रोल में थे.
उस वक्त त्रिवेंद्र सिंह रावत उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे और उन्होंने कुंभ तीर्थयात्रियों के लिए नेगेटिव आरटीपीसीआर टेस्ट रिपोर्ट ज़रूरी बनाया था लेकिन 10 मार्च को पद की शपथ लेने वाले नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कहा कि तीर्थयात्री बिना "रोकटोक" कुंभ में आ सकेंगे.
सच्चिदानंद के मुताबिक 11 मार्च के शिवरात्रि स्नान पर 36-37 लाख लोग हरिद्वार पहुंचे और उसी के बाद हरिद्वार की स्थिति बिगड़नी चालू हो गईं.
वो कहते हैं, " कोर्ट ने इनसे कहा था कि हर रोज़ 50 हज़ार टेस्ट करें लेकिन मेरे ख्याल से 9-10 हज़ार से ज़्यादा टेस्ट हुए नहीं."
उधर कुंभ मेला कोविड नोडल अफसर डॉक्टर अविनाश खन्ना के मुताबिक अदालत के आदेश के मुताबिक हर दिन 50,000 से ज़्यादा टेस्ट किए जा रहे हैं.
सच्चिदानंद की याचिका के बाद अदालत की बनाई समिति ने मार्च में घाटों का दौरा किया और अपनी रिपोर्ट दी.
इस समिति में शामिल सच्चिदानंद के वकील शिव भट्ट के मुताबिक उन्होंने दौरे में घाटों को बुरी हालत में पाया.
घाटों के बाद हम ऋषिकेश के एक अस्पताल गए जो पूरे गढ़वाल के लिए कोविड केयर सेंटर है. लेकिन वहां न्यूनतम सुविधाएं भी नहीं थीं.
वो कहते हैं, "वहां अल्ट्रासाउंड की सुविधाएं नहीं थीं. वॉशरूम, वार्डों का बुरा हाल था. न वहां कोई बेड पैन था, न डस्टबिन. लिफ़्ट काम नहीं कर रहे थे."
भट्ट के मुताबिक अदालत ने कहा था कि हर घाट पर मेडिकल टीम की एक व्यवस्था हो जो रैपिड, एंटिजन, आरटीपीसीआर टेस्ट करे लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
इस मामले पर हमने राज्य के स्वास्थ सचिव अमित नेगी और मुख्य मेडिकल अफ़सर एसके झा से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया.
भट्ट के मुताबिक उनसे बातचीत में सरकारी अधिकारी दो करोड़ तक की भीड़ को संभाल लेने का दावा कर रहे थे लेकिन शाही स्नान के दिनों में प्रशासन तीस लाख की भीड़ को भी नहीं संभाल पा रहा था.
प्रशासनिक कार्य से प्रभावित
लेकिन कुंभ मेले में शामिल मुंबई से आए पच्चीस साल के श्रद्धालु संदीप शिंडे कुंभ की व्यवस्था और पुलिसकर्मियों की मुस्तैदी से प्रभावित हैं.
पेशे से पेंटर संदीप मेले के एक आश्रम में एक बड़े से हॉल में रुके हैं जहां 10 और श्रद्धालु उनकी तरह ज़मीन पर बिछे एक गद्दे पर सोते हैं.
संदीप इस मेले में अकेले आए हैं और कहते हैं कि वो बारह साल बाद होने वाले इस आयोजन का अनुभव लेना चाहते थे.
वो कहते हैं, "मेरा यहां आना, शाही स्नान का अनुभव बहुत सुंदर था."
संदीप खुद मास्क पहनते हैं और वापस आश्रम में लौटने के बाद गरम पानी से हाथ मुंह धोते हैं.
वो कहते हैं, "मुझे यहां आसपास कोरोना के बारे में नहीं सुनाई दिया. यहां कोरोना के बारे में कोई बात नहीं कर रहा."
लेकिन कई हलकों में इसे सुपर स्प्रेडर ईवेंट बताया जा रहा है और देहरादून के एक वरिष्ठ पत्रकार के मुताबिक उत्तराखंड के लिए "इस महाकुंभ के बाद बहुत खतरनाक स्थितियां पैदा होने जा रही हैं."
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक उत्तराखंड में कोविड-19 से करीब 1800 लोगों की मौत हो चुकी है.
पंच रामानंदीय खाकी अखाड़े के राघवेंद्र दास मानते हैं कि लोग भयभीत हैं लेकिन "जब आस्था और धर्म की बात आ जाए तो यहां लोग मौत के भय से भयभीत होने वाले लोग नहीं हैं."
वो पूछते हैं, "क्या चुनाव सुपर स्प्रेडर नहीं हो रहा है? क्या कोरोना धार्मिक है? भारतीय संस्कृति की दुहाई देने वाली सरकारें शराब की दुकानें खुलवा दे रही हैं, क्या वहां कोरोना नहीं फैल रहा है?"
उनके नज़दीक बैठे ओंकार दास के मुताबिक हरिद्वार में जो बीमार हुए हैं, "उसका कारण है दिन में गर्मी, रात में ठंड."
वो समझाते हुए कहते हैं, "एक भी पॉज़िटिव ऐसा नहीं मिला है, जिसे 100 प्रतिशत कोरोना है."