ज्ञानवापी मामला: कार्बन डेटिंग क्या है ? जिसकी मांग अदालत ने की है खारिज
ज्ञानवापी मस्जिद और श्रृंगार गौरी मामले में वाराणसी की जिला अदालत ने अपना फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर के वजूखाने में मिले 'शिवलिंग' की कार्बन डेटिंग की मांग खारिज कर दी है। गौरतलब है कि हिंदू पक्ष वहां मिले शिवलिंगुमा पत्थर के पवित्र शिवलिंग होने का दावा कर रहा है। जबकि, मुस्लिम पक्ष के मुताबिक वह शिवलिंग नहीं, बल्कि फाउंटेन है। बहरहाल, उस कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग की मांग हिंदू पक्ष की कुछ महिला याचिकाकर्ताओं की ओर से की गई थी, जिसे अदालत ने ठुकरा दिया है। बता दें कि कार्बन डेटिंग पूरी तरह से एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है और हिंदुओं के पक्ष में भी इसे कराने को लेकर पूरी तरह से आम सहमति नहीं थी। आइए जानते हैं कि कार्बन डेटिंग क्या है और इससे किसी प्राचीन चीज की उम्र का कैसे पता लगाया जाता है?
कार्बन डेटिंग क्या होती है ?
वैज्ञानिक जर्नल नेचर में प्रकाशित एक रिसर्च पेपर के अनुसार सभी जीवित पदार्थ वातावरण से कार्बन सोखते हैं। इस सोखे गए कार्बन में प्राकृतिक रूप से कुछ मात्रा रेडियोऐक्टिव कार्बन-14 (सी-14) की भी होती है। इनमें से कुछ आइसोटोप के नूक्लीअस अस्थिर होते हैं। इसका मतलब हुआ कि ऐसे अस्थिर आइसोटोप के प्रोटोन, न्यूट्रॉन या दोनों की संख्या में बदलाव होगा। समय के साथ इसी परिवर्तन को रेडियोऐक्टिव डिके (रेडियोऐक्टिव क्षय) कहा जाता है। मौजूदा जीवित जीवों में कार्बन-14 का अनुपात उतना ही होता, जो वातावरण में उपस्थित रहता है। इसका अर्थ हुआ कि जिन जीवों की मौत अत्यधिक प्राचीन काल में हुई होगी, उनमें कार्बन-14 का पूरी तरह से क्षय हो चुका होगा।
कार्बन डेटिंग से कैसे निर्धारित होती है उम्र ?
रिसर्च पेपर के अनुसार जब एक पेड़ या जानवरों की मृत्यु हो जाती है, तभी कार्बन के सोखने की प्रक्रिया ठहर जाती है। लेकिन, क्योंकि सी-14 रेडियोऐक्टिव कार्बन है, उसका जो हिस्सा उसमें जमा रहता है, उसकी क्षय होने की प्रक्रिया धीरे-धीरे चलती रहती है। इस तरह से कार्बन-14 के लगातार घटते क्रम की गणना के आधार पर एक टाइम-कैप्सूल तैयार हो जाता है। इस तरह से कार्बन डेटिंग बचे हुए रेडियोऐक्टिव की मात्रा का माप है। यह तय करने के बाद वैज्ञानिक यह उम्र निकाल लेते हैं कि जब उस संबंधित चीज की मौत हुई होगी, तब से कितना समय निकल चुका है। हालांकि, इसमें काफी कुछ अनुमानों पर भी निर्भर करता है।
चट्टानों की उम्र भी जान सकते हैं क्या ?
भू-वैज्ञानिक आमतौर पर चट्टानों की उम्र जानने के लिए कार्बन डेटिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल नहीं करते, क्योंकि इसके लिए कार्बन पदार्थों की मौजूदगी होनी चाहिए। अमेरिका के टेक्सास स्थित ए एंड एम यूनिवर्सिटी के भौतिकी के प्रोफेसर डॉ क्रिस्टोफर एस बेयर्ड के मुताबिक कार्बन डेटिंग सिर्फ उन्हीं चीजों पर काम करता है, जो 50,000 साल से कम के हों। इसलिए इस प्रक्रिया का उपयोग ज्यादातर पेड़ों, पौधों और जानवरों के अवशेषों के लिए होता है, 'क्योंकि ये चीजें आमतौर पर 50,000 साल से कम की होती हैं।'
चट्टानों की उम्र निर्धारित कैसे करते हैं भू-विज्ञानी ?
कार्बन डेटिंग रेडियोमेट्रिक डेटिंग के तरीकों में से एक है। रेडियोमेट्रिक डेटिंग के जरिए कम उम्र के रेडियोऐक्टिव पदार्थों की उम्र मापकर जीओलॉजिक मटेरियल की उम्र निर्धारित की जाती है। इनमें से कार्बन-14 और पोटैशियम-14/आर्गन-40 डेटिंग मेथड सबसे ज्यादा विकसित हैं। इसलिए यदि जांच के लिए चुने गए चट्टान में सी-14 आइसोटोप नहीं हैं तो इसमें मौजूद दूसरे रेडियोऐक्टिव आइसोटोप के आधार पर उम्र निर्धारित की जा सकती है। यहां यह भी पता होना चाहिए कि चट्टानों की उम्र तय करने के लिए रेडियोऐक्टिव डेटिंग इसके उम्र का पता लगाने के लिए उपलब्ध कई तकनीकों में से एक है।
ज्ञानवापी मामले में कार्बन डेटिंग की बात क्यों उठी ?
इसी साल पहले वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर से सटे ज्ञानवापी मस्जिद की दीवारों पर मौजूद देवी-देवताओं की मूर्तियों की नियमित पूजा की मांग वाली याचिका पर मस्जिद परिसर का वीडियो सर्वे कराने का अदालत ने आदेश दिया था। वीडियोग्राफी के दौरान मस्जिद परिसर के अंदर मौजूद वजूखाने में एक पत्थर की आकृति मिली, जिसे हिंदू पक्ष ने पवित्र और अति-प्राचीन शिवलिंग होने का दावा किया। लेकिन, मस्जिद की प्रबंधन करने वाली इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने सफाई दी कि वह शिवलिंग नहीं, बल्कि फाउंटेन है। इसी पर हिंदू पक्ष के कुछ याचिकाकर्ताओं ने इसकी कार्बन डेटिंग कराने की मांग की थी।