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क्या वाक़ई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मशरूम खाकर गोरे हुए हैं?

कांग्रेस नेता अल्पेश ठाकोर ने कहा था कि मोदी लाखों का मशरूम खाकर गोरे हुए हैं.

By BBC News हिन्दी
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नरेंद्र मोदी
AFP/Getty Images
नरेंद्र मोदी

युद्ध चाहे असली मैदान में लड़ा जाए या सियासत की बिसात पर, अंतिम पलों तक अपनी पीठ थपथपाना और दुश्मन पर हमला बोलना जारी रहता है.

देश में इन दिनों सबसे दिलचस्प राजनीतिक जंग गुजरात में लड़ी जा रही है और मंगलवार को इस युद्ध से जुड़े प्रचार का अंतिम दिन था. तरकश से सारे तीर निकालने का भी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सी-प्लेन में उड़ान भरकर अंबाजी के मंदिर पहुंचे और गुजरात के विकास की कसमें खाईं और राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सीधे सवालों का जवाब दिया.

इन दोनों दिग्गजों के बीच एक ऐसे नौजवान नेता भी थे जिन्होंने अपने एक बयान से काफ़ी निगाहें खींचीं.

अल्पेश का दिलचस्प बयान

इन नेता का नाम है अल्पेश ठाकोर और मुद्दा बना कुकुरमुत्ता यानि मशरूम.

उन्होंने चुनाव प्रचार के आख़िरी दिन बड़ा दिलचस्प बयान दिया. उन्होंने कहा, ''किसी ने कहा कि (नरेंद्र) मोदी साहब जो खाते हैं, वो खाना आप नहीं खा सकते क्योंकि वो ग़रीबों का खाना नहीं है.''

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''मैंने पूछा ऐसा क्या है तो उन्होंने बताया कि मोदी साहब मशरूम खाते हैं तो मैंने जवाब दिया कि ऐसा क्या है, मशरूम तो यहां पर मिलता है. जवाब मिला कि अरे तुम लोग जो खाते हो वो उन्हें अच्छा नहीं लगता, वो जो मशरूम खाते हैं, ताइवान से आता है.''

'मोदी खाते हैं इम्पोर्टेड मशरूम'

मशरूम
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मशरूम

उन्होंने कहा, ''ताइवान से आने वाले एक मशरूम की क़ीमत 80 हज़ार रुपए है और मोदी साहब हर रोज़ के ऐसे पांच मशरूम खा जाते हैं. मैंने पूछा जब से वो पीएम बने तब से, तो उन्होंने जवाब दिया कि नहीं जब से सीएम बने, तब से.''

ठाकोर ने कहा, ''तभी मैंने सोचा कि वो तो मेरे जितने काले हुआ करते थे, गोरे कैसे हो गए. मैंने 35 साल पहले की उनकी फ़ोटो देखी है, वो मेरे जैसे दिखते थे.''

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''यार समझ लो जो पीएम हर रोज़ 4 लाख के मशरूम खा जाते हैं, महीने के 1 करोड़ 20 लाख के मशरूम खा जाते हैं, उनको ये रोटी-चावल अच्छा नहीं लगेगा. ये तो सिर्फ़ दिखावा है.''

सोशल मीडिया पर मस्ती

ये बयान आने की देर थी और सोशल मीडिया पर मौज-मस्ती का दौर शुरू हो गया. अलग-अलग तस्वीरें डालकर लोगों ने मशरूम की इस विशेषता को रेखांकित करना शुरू कर दिया.

लेकिन इस बयान पर संजीदगी से ग़ौर किया जाए तो मशरूम, उसके हेल्थ बेनेफ़िट और ताइवान के बारे में जानकारी खंगालनी पड़ेगी.

सबसे पहले जानिए कि मशरूम होता क्या है? ये दरअसल फफुंद है जो बीजाणु पैदा करता है जो हवा से फैलते हैं. बाकी मशरूम मिट्टी या लकड़ी पर उगता रहता है.

क्या मशरूम गोरा बना सकता है?

नरेंद्र मोदी
Getty Images
नरेंद्र मोदी

मशरूम कई तरह के होते हैं जिनमें से कुछ खाने लायक होते हैं. इनमें बटन, ओयस्टर, पोरसिनी और चैंटरेल्स शामिल हैं. और कुछ ऐसे मशरूम होते हैं जो बेहद ख़तरनाक होते हैं.

इन्हें खाने से पेट में दर्द हो सकता है या उल्टी हो सकती है. यहां तक कि इसकी कुछ क़िस्में मौत की वजह भी बन सकती हैं.

जो मशरूम खाने लायक होते हैं, उनमें प्रोटीन और फ़ाइबर काफ़ी होता है. इनमें मिटामिन बी होता है और सेलेनियम जैसे ताक़तवर एंटी-ऑक्सीडेंट भी.

और क्या फ़ायदे हैं?

मशरूम
Getty Images
मशरूम

ये इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाता है और सेल-टिश्यू को होने वाले नुकसान को रोकता है. कुछ क़िस्में ऐसी हैं जो डीएनए पर होने वाले नुकसान को रोककर कैंसर से बचने वाली दीवार खड़ी करती हैं.

मशरूम को यौन शक्तिवर्धक भी माना जाता है क्योंकि इसमें ज़िंक पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है, ज़िंक की वजह से पुरुषों में पाए जाने वाले सेक्स हॉर्मोन टेस्टास्टेरॉन की मात्रा बढ़ जाती है.

कुछ ऐसे साक्ष्य भी हैं जो बताते हैं कि ये अल्ज़ाइमर जैसी बीमारियों से लड़ने को लेकर भी मशरूम काम आ सकते हैं. ये कॉलेस्ट्रॉल को कम करने में भी मदद करता है, ख़ास तौर से ज़्यादा वज़न वाले वयस्कों के मामले में.

तावान के मशरूम की कहानी

मशरूम
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अल्पेश ठाकोर ने ख़ास तौर से कहा कि उन्हें बताया गया है कि नरेंद्र मोदी ताइवान का मशरूम खाते हैं. अब ताइवान के मशरूम का ये क्या मामला है.

तामें मशरूम की सिलसिलेवार खेती की शुरुआत सैकड़ों साल पहले हुई थी और इसकी कुछ शुरुआती तकनीकें साल 1895 से 1945 के बीच जापान से मिलीं.

हालांकि उद्योग के रूप में उड़ान भरने के लिए इसने 1950 के दशक तक का इंतज़ार किया.

इस देश में मशरूम उत्पादन के शुरुआती ट्रायल ज़ियाबाओ जैसे पहाड़ी इलाकों में हुए जिसकी ऊंचाई समुद्री तल से 915 मीटर है. लेकिन जल्द ही यहां के किसानों ने पश्चिमी-मध्य इलाके को मशरूम की खेती का गढ़ बना दिया.

कितना ताक़तवर है तावान?

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एक रिपोर्ट में बताया गया है कि ताइवान ने सबसे पहले कैन और बॉटलबंद मशरूम का निर्यात नियमित कमर्शियल आधार पर साल 1960 में शुरू किया.

और साल 1963 तक वो मशरूम का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया. पूरी दुनिया में निर्यात किया जाने वाले मशरूम का एक-तिहाई हिस्सा ताइवान का था.

साल 1978 में ताइवान का सालाना निर्यात 12 करोड़ डॉलर पर पहुंच गया जिसके बाद चीन और दक्षिण कोरिया के किसानों ने वैश्विक मशरूम निर्यात में ताइवानी हिस्सेदारी में सेंध लगानी शुरू की.

आज जापान भी मशरूम के उत्पादन में कदम जमाने की कोशिश कर रहा है लेकिन ताइवान अब भी मज़बूत खिलाड़ी है.

सबसे महंगा मशरूम कौन सा?

मशरूम
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दरअसल ये एक तरह के कुकुरमुत्ते हैं जिन्हें ट्रफ़ल्स कहा जाता है. ये दक्षिण पश्चिमी यूरोप में मिलते हैं और हाँ, ये खाने की चीज़ है.

इटली के उत्तर पश्चिम में स्थित अल्बा शहर को इटली में इन सफ़ेद कुकुरमुत्तों की राजधानी कहा जाता है. ये फफूंद धरती के नीचे मिलते हैं और इनके आकार में बहुत विविधता होती है.

ट्रफ़ल्स का आकार अमूमन पाँच सेंटीमीटर से 20 सेंटीमीटर तक होता है और ये धरती के नीचे पेड़ की जड़ों के नीचे पाए जाते हैं.

इन कुकुरमुत्तों से ख़ास तरह की ख़ुशबू आती है, जो कुछ लम्हे के लिए ही ठहरती है. इनकी पहचान के लिए ख़ासतौर पर प्रशिक्षित कुत्तों और तज़ुर्बेकार शिकारियों की मदद ली जाती है.

इनकी खेती कैसे करें?

मशरूम
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ट्रफ़ल्स की खेती नहीं की जा सकती. ये केवल क़ुदरती तौर पर जंगलों में खुद-ब-खुद पनपते हैं. बीते सालों में इटली में इसके उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई है.

उत्पादन में कमी की वजह जलवायु परिवर्तन और प्रचंड बारिश बताई जाती है. बीते साल अल्बा में इन सफ़ेद कुकुरमुत्तों की एक नीलामी हुई थी.

नीलामी में व्हॉइट ट्रफ़ल्स की जो क़ीमत लगाई गई, उससे इनकी अहमियत और ख़ासियत दोनों का अंदाज़ा लगाया जा सकता है.

950 ग्राम के दो बड़े आकार के ट्रफ़ल्स को हांगकांग की एक नीलामी में 1.20 लाख अमरीकी डॉलर या क़रीब 74 लाख रुपयों में ख़रीदा गया.

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English summary
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