ग्राउंड रिपोर्ट: मेरठ में बनी 'दलितों की हिट लिस्ट' का पूरा सच
उत्तर प्रदेश में मेरठ ज़िले के शोभापुर गाँव में एक कथित हिट लिस्ट जारी होने के बाद जिस दलित युवक की हत्या कर दी गई थी, शनिवार शाम उनकी अस्थियाँ गंगा (ब्रिजघाट) में विसर्जित कर दी गईं.
ये वही 'हिट लिस्ट' है जिसके बारे में ख़बरें आई थीं कि एक सूची उन दलित नौजवानों को मारने (सज़ा देने) के लिए तैयार की गई है जिन्होंने भारत बंद में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था.
उत्तर प्रदेश में मेरठ ज़िले के शोभापुर गाँव में एक कथित हिट लिस्ट जारी होने के बाद जिस दलित युवक की हत्या कर दी गई थी, शनिवार शाम उनकी अस्थियाँ गंगा (ब्रिजघाट) में विसर्जित कर दी गईं.
ये वही 'हिट लिस्ट' है जिसके बारे में ख़बरें आई थीं कि एक सूची उन दलित नौजवानों को मारने (सज़ा देने) के लिए तैयार की गई है जिन्होंने भारत बंद में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था.
लगभग सुनसान पड़े शोभापुर गाँव में पीएसी (प्रोविंशियल आर्म्ड कॉन्स्टेब्यूलरी) के भूरे रंग के ट्रक इन दिनों 'गोपी भैया' के घर की पहचान करा रहे हैं.
गोपी पारिया जो गाँव के दलितों के लिए प्यार से गोपी भैया थे, उनकी शोभापुर गाँव के ही गुर्जरों ने बुधवार को गोली मारकर हत्या कर दी थी.
नेशनल हाइवे नंबर 58 पर मेरठ डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन में पड़ने वाला शोभापुर यूँ तो दलित बहुल गाँव है, लेकिन इस घटना के बाद दलित समाज में जितना गुस्सा है, उससे बहुत ज़्यादा ख़ौफ़ है.
अब थोड़ा फ़्लैशबैक में चलते हैं...
गाँव के कुछ लोग कहते हैं कि ये मामला पुरानी रंजिश का है. दलित के लड़के गोपी पारिया ने तीन साल पहले होली के दिन गुर्जर समुदाय के मनोज और गुलवीर गुर्जर का सिर फोड़ दिया था.
इस मामले में फ़ौजदारी नहीं हुई थी और गाँव की पंचायत ने मामले को संभाल लिया था. गोपी की हत्या के लिए गाँव वालों को वो घटना एक मामूली वजह लगती है.
ज़्यादातर गाँव वाले मानते हैं कि ऐसे झगड़े तो कभी न कभी होते रहे, लेकिन इस घटना से पहले उनमें 'जातीय हिंसा' का रंग कभी नहीं रहा.
बहरहाल, गाँव में दलित मोहल्ले को जाने वाले सभी रास्तों पर पुलिस तैनात है.
एक शख़्स से हमने पूछा कि क्या ये दलितों की सुरक्षा के लिए है?
तो उनका जवाब था, ''जाटवों में बहुत गुस्सा है, वो सवर्णों पर हमला न कर दें, इसलिए पुलिस यहाँ है. ये हमें नहीं उन्हें रखा (रखवाली) रहे हैं.'
भारत बंद के दौरान क्या हुआ?
सोमवार, 2 अप्रैल को जब दलितों के देश व्यापी भारत बंद का आयोजन हुआ था तो एनएच-58 पर शोभापुर गाँव के भी क़रीब 25-30 लड़के (पुलिस के मुताबिक़) प्रदर्शन कर रहे थे.
गोपी ने उनका नेतृत्व किया था. गोपी और उनके पिता ताराचंद पारिया बसपा के सक्रिय कार्यकर्ता रहे हैं. ताराचंद बसपा के टिकट पर दो बार पार्षद का चुनाव भी लड़ चुके हैं.
उनके अनुसार, "भारत बंद के दौरान प्रदर्शन एकदम शांतिपूर्ण चल रहा था. लेकिन पुलिस ने जाति-सूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए लाठीचार्ज किया."
इसके बाद हिंसा भड़की. यूपी रोडवेज़ की एक बस फूंक दी गई. शोभापुर की पुलिस चौकी फूंकी गई. कुछ वाहन तोड़े गए और दुकानों पर हमला हुआ.
दलितों का दावा है कि हिंसा भड़काने वाले बाहरी लोग थे. पुलिस के मुताबिक़, "लोग शोभापुर के ही थे."
सवर्णों का कहना है, "जब हिंसा भड़की तो उन्होंने हथियार-पत्थर लेकर दलितों को रोका क्योंकि उनका नुक़सान (दुकान और वाहन) हो रहा था."
गोपी की हत्या के मुख्य अभियुक्त मनोज गुर्जर के बड़े भाई ओमवीर सिंह गुर्जर कुछ दुकान मालिकों का नाम लेते हुए कहते हैं कि चौराहे पर उनकी दुकानें दलितों ने लूटी हैं. दलितों ने महिलाओं से बेअदबी की. इसलिए उन्हें रोकना ज़रूरी था.
इसके बाद लिस्ट बनी...
हत्या के अन्य अभियुक्त कपिल राणा के बड़े भाई और ओमवीर सिंह गुर्जर ने बताया, "'भारत बंद' की रात नुक़सान का आकलन किया गया. गाँव के गुर्जरों, ब्राह्मणों और बनियों ने कथित तौर गाँव के मंदिर के पास एक मीटिंग की.
कुछ चश्मदीदों के बयान लेकर और कुछ जिन लोगों पर शक़ था, 'उपद्रवियों' की एक लिस्ट तैयार की गई."
उनके अनुसार, "वो ये लिस्ट पुलिस को सौंपने वाले थे. लिस्ट का टाइटल था- 'दलित समाज के उपद्रवी लोगों की सूची'. इसमें क़रीब सौ (दलितों के साथ-साथ कुछ मुसलमानों का भी) लोगों का नाम था."
लेकिन ये लिस्ट पुलिस तक पहुंचने से पहले व्हाट्स ऐप पर सर्कुलेट कर दी गई जो दलितों तक भी पहुँची.
दलित मोहल्ले के एक बुज़ुर्ग राजेंद्र कुमार ने बताया, "तीन तारीख़ की शाम तक ये लिस्ट हमारे ज़्यादातर बच्चों के पास थी."
उन्होंने बताया, "सभी को लगा कि ये लिस्ट पुलिस ने जारी की है और इसके बाद पुलिस दबिश डालेगी. दलित लड़कों ने अपने नाम लिस्ट में चेक किए और जिन-जिन के नाम लिस्ट में थे वो घर से फ़रार हो गए."
दलितों की ही लिस्ट क्यों बनी?
दिलचस्प बात है कि शोभापुर से दस किलोमीटर के दायरे में जो भी ऐसे गाँव हैं जहाँ दलितों की अच्छी आबादी है, वहाँ भी ऐसी लिस्टें सोशल मीडिया पर चलाई जा रही हैं.
शोभापुर समेत पास के ही दायमपुर, डाबका, मीरपुर, रोहटा और फ़ाजलपुर जैसे कई गाँवों में दलित नौजवानों की गिरफ़्तारी के लिए पुलिस लगातार दबिश डाल रही है और दलित नौजवान गाँव से फ़रार हैं.
मेरठ की एसएसपी मंज़िल सैनी ये स्पष्ट कर चुकी हैं कि ऐसी किसी भी लिस्ट से उत्तरप्रदेश पुलिस का कोई लेना-देना नहीं है.
लेकिन एक और दिलचस्प बात ये है कि पुलिस की एफ़आईआर में जो नाम आ रहे हैं, वो सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही लिस्टों से मेल खाते हैं.
यही वजह है कि इलाक़े के ज़्यादातर दलित यूपी पुलिस पर सवर्णों के इशारे पर काम करने का आरोप लगा रहे हैं.
गोपी पारिया के चचेरे भाई अरुण पारिया रियल एस्टेट कंपनी में काम करते हैं.
उन्होंने कंकरखेड़ा थाने में लड़कों की पिटाई करते पुलिसवालों की एक वीडियो दिखाई और कहा, "योगी सरकार में पुलिस बहुत आक्रामक है. इतने एनकाउंटर हो रहे हैं. ऐसे पिटाई की जा रही है. सिर्फ़ नाम आने पर अगर हमें ले गए तो बहुत मारेंगे. हमारी कोई सुनवाई नहीं होगी. इसलिए बहुत से लड़के डर के मारे फ़रार हैं."
गोपी की हत्या कैसे हुई?
गोपी के परिवार वाले बताते हैं कि 2 तारीख़ के बाद वो भी घर से बाहर ही था. 4 तारीख़ की दोपहर गोपी कपड़े बदलने घर आया था.
रेलवे के रिटायर्ड कर्मचारी और अभियुक्त कपिल के पिता सुखबीर सिंह ने बताया कि गोपी ने उनके बेटे से कहा था कि वो हिंसा के मामले में पुलिस को गवाही न दे. इससे दलितों की परेशानी बढ़ रही है.
गोपी के पिता ताराचंद कहते हैं कि गाँव का ही सुनिल नाम का एक लड़का उसे ये कहते हुए घर से बुलाकर ले गया था कि मनोज गुर्जर ने बात करने के लिए बुलाया है. वही मनोज जिसे तीन साल पहले गोपी ने पीटा था.
इसके बाद क़रीब सवा चार बजे पूरे गाँव में छह फ़ायर सुनाई दिए. गाँव की श्रीराम विहार कालोनी के तिराहे पर, मंदिर परिसर के सामने गोपी को गोलियाँ मारी गईं.
गोलियाँ लगने के बाद गोपी घर की तरफ भागा. क़रीब दो सौ मीटर दौड़ने के बाद वो ज़मीन पर गिर गया और अस्पताल पहुंच कर उसकी मौत हो गई.
दोनों पक्षों के लोग बताते हैं कि बसपा और समाजवादी सरकार में दलितों ने गुर्जरों को पार्षद का चुनाव लड़ाया था और दोनों समाज साथ खड़े थे.
लेकिन 4 अप्रैल की शाम सूरज ढ़लने के साथ गाँव के राजनीतिक और सामाजिक समीकरण में बड़ा बदल आ गया.
गोपी पारिया कौन था?
शोभापुर 6 हज़ार से कुछ ज़्यादा की आबादी वाला गाँव है. यहाँ गुर्जरों के दो सौ से कम वोट हैं.
बाकी मुसलमान, पाल, बनियों और पंड़ितों की भी आबादी है. दलितों की संख्या सबसे ज़्यादा है.
दलितों के तीन मोहल्ले हैं. सभी हाइवे के साथ-साथ बसे हैं. पहला मोहल्ला है कारीगरों का जो हाथ का काम करते हैं.
दूसरा है, रइया मोहल्ला जहाँ चमड़े की रंगाई का काम करने वाले लोग हैं. और तीसरा मोहल्ला है खेवा, जहाँ के लोग पंडितों, गुर्जरों और बनियों के यहाँ नौकरी करते हैं.
कारीगरों का मोहल्ला बाक़ियों की तुलना में समृद्ध है. यहाँ कुछ लोग अब व्यापार भी करने लगे हैं. 27 साल का गोपी उन्हीं में से एक था.
मेरठ खेल की सामग्री के उत्पादन के लिए मशहूर शहर है. गोपी ने मेरठ शहर से बैडमिंटन की बुनाई का काम ले रखा था.
दलित समाज में गोपी की इमेज बहुत अच्छी बताई जाती है.
गोपी के माँ-बाप से सहानुभूति जताने आए लोगों में हर दूसरा आदमी ये कह रहा था कि समाज के काम आने वाले ऐसे बच्चे कम होते हैं.
जबकि गुर्जर मोहल्ले में गोपी के बारे में सुनाई पड़ीं आख़िरी बातें थीं, "'बदतमीज़पने पर था ये लड़का', 'सींगों पर मिट्टी उठा रखी थी उसने' और 'उसे तो मरना ही था. हमारा नहीं, तो किसी और का लड़का उसे मारता.'"
गोपी के बाद...
गोपी की शादी को पाँच साल हुए थे. उनके तीन बच्चे हैं. दो बेटे और एक बेटी, जो अभी गोद में है.
उनकी माँ अपने बड़े बेटे को याद करके कई बार साँस भूल जाती हैं.
उनके पिता गिरफ़्तार हो चुके चारों अभियुक्तों (मनोज गुर्जर, कपिल राणा, गिरधारी, आशीष गुर्जर) को फांसी की सज़ा दिलाना चाहते हैं.
पुलिस जाँच अधिकारी पंकज कुमार सिंह जल्द ही इस मामले में चार्जशीट दाख़िल करने का दावा कर रहे हैं.
वहीं, दलित समाज के लोग ऐलान कर चुके हैं कि वो इस बार डॉक्टर आंबेडकर की जयंती नहीं मनाएंगे. और गाँव के लड़के सोशल मीडिया पर चल रहे दलित ग्रुप्स में लिख रहे हैं, "हमने गोपी नहीं अपना चेहरा खोया है."