झारखंड में आधी रात को ग्यारहवीं की 61 लड़कियां 18 किलोमीटर दूर डीसी के दफ़्तर क्यों पहुंचीं
रात डेढ़ बजे के बाद ये लड़कियां अपने हॉस्टल से चुपचाप निकलीं और 18 किलोमीटर पैदल चलकर ज़िला उपायुक्त कार्यालय में पहुंच गईं. क्या है पूरा मामला? आखिर इन छात्राओं को ये क़दम क्यों उठाना पड़ा?
झारखंड के पश्चिम सिंहभूम ज़िले के खूंटपानी ब्लॉक स्थित कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय की 61 लड़कियों ने अपने बात रखने के लिए वह रास्ता चुना जिस पर यक़ीन करना मुश्किल है.
लेकिन वास्तविकता यही है कि बीते रविवार को रात डेढ़ बजे के बाद ये लड़कियां अपने हॉस्टल से निकलीं और 18 किलोमीटर पैदल चलकर ज़िला उपायुक्त कार्यालय में पहुंच गईं.
इन छात्राओं में शामिल कविता महतो कहती हैं, "मकर संक्रांति के दौरान हम सभी ने तय कर लिया था कि डीसी सर से प्रिंसिपल मैडम (जो वॉर्डन भी हैं) की शिकायत करेंगे. इस लिए रात डेढ़ बजे हमने स्कूल कार्यालय से चुपचाप गेट की चाबी निकाली और दबे पैर अपने शूज़ हाथों में लेकर गेट खोला. उसके बाद बाहर शूज़ पहनकर उपायुक्त कार्यालय के लिए पैदल निकल गए."
क्या इन छात्राओं को बाहर निकलते हुए किसी ने देखा नहीं?
इस सवाल पर कविता कहती हैं, "स्कूल में किसी ने नहीं देखा. हम सड़क के रास्ते न जाकर खेतों के रास्ते निकले. यही कारण है कि रास्ते में इन्हें किसी ने नहीं देखा."
ये नक्सल प्रभावित क्षेत्र है, आप लोगों को डर नहीं लगा? इस सवाल पर मोनिका पूर्ति नाम की छात्रा ने कहा, "ये बात मालूम है, लेकिन हम लोग डरे नहीं." वहीं कविता और संध्या महतो ने बताया कि उन्हें नहीं मालूम था कि ये क्षेत्र असुरक्षित है.
क्या आधी रात बाहर जाते समय रास्ते में उन्हें ठंड नहीं लगीं? कविता कहती हैं कि थोड़ी ठंड लगी लेकिन पैदल चल कर जाने की वजह से दिक्कत कम हुई.
ये छात्राएं सुबह सात बजे हम सभी चाईबासा पहुंचीं.
कविता कहती हैं, "वहां कुछ लोगों ने देखा लेकिन हम से किसी ने कुछ पूछा नहीं. उसके बाद उपायुक्त कार्यालय पहुंचे."
छाज्ञा मुस्कान तांती कहती हैं, "जब हम सभी उपायुक्त कार्यालय पहुंचे तो वहां एक अधिकारी ने आश्वासन देते हुए कहा कि हमारी समस्या का समाधान करेंगे. उसके बाद हम सभी को वाहन के ज़रिए वापस स्कूल पहुंचाया गया."
मुस्कान का कहना है कि जिस अधिकारी से उनकी मुलाक़ात हुई वह उन्हें नहीं जानतीं. अपने अगले वाक्य पर ज़ोर देते हुए वे कहती हैं, "अधिकारी के आश्वासन से हम संतुष्ट तो हैं, लेकिन हमारी समस्या का समाधान होना चाहिए."
प्रशासन ने की कार्रवाई
पश्चिम सिंहभूम ज़िले के उपायुक्त अनंत मित्तल सोमवार की सुबह अपने दफ़्तर में नहीं थे. लेकिन जानकारी मिलने के बाद उन्होंने इस पूरे मामले पर कार्रवाई शुरू की.
उन्होंने बीबीसी से कहा, "ज़िले में पंद्रह 'कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय' हैं. लेकिन खूंटपानी स्थित इस स्कूल में यह घटना घटनाएं घटीं. इसलिए सबसे पहले स्कूल की प्रिंसिपल, लेखपाल और सभी शिक्षिकाओं का किसी दूरस्थ क्षेत्र में स्थांतरण कर दिया गया है ताकि यहां की पूरी की पूरी व्यवस्था चेंज हो सके."
"साथ ही प्रिंसिपल व लेखपाल को कारण बताओ नोटिस जारी किया है कि क्यों उनकी संविदा समाप्त न की जाए. साथ ही हमने रात्रि प्रहरी को तत्काल सेवामुक्त करते हुए दो होमगार्ड को प्रतिनियुक्त करने का आदेश दिया है."
बीबीसी ने जब 11वीं की इन 61 छात्राओं से समस्या जानने की कोशिश की तो अधिकांश विद्यार्थी खुलकर बोलने की हिम्मत नहीं कर रही थीं.
डरी-सहमी सोनाली जोजो ने सबसे पहले बोलने की हिम्मत दिखाई. उन्होंने कहा, "हम लोग डीसी कार्यालय इसलिए गए क्योंकि यहां जब शौचालय की नालियां जाम हो जाती हैं तब हम लोगों से पांच रुपये लिए जाते हैं."
उनके कहने के तुरंत बाद ही कई छात्राओं की आवाज़ गूंज उठी कि "शौचालय की सफ़ाई का काम छात्राओं से करवाया जाता है."
एक अन्य छात्रा ने कहा, "शौचालय तो ज़्यादातर हम लोग ही साफ़ करते हैं."
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छात्राओं का आरोप
बदेया गांव के इस आवासीय बालिका विद्यालय में कक्षा छह से 12वीं तक 498 छात्राएं हैं. इनके लिए 51 शौचालय हैं लेकिन इनकी सफ़ाई के लिए स्कूल में सफ़ाईकर्मी नहीं हैं.
हालांकि एक दिलचस्प बात यह है कि रविवार की देर रात इनमें से केवल 11वीं क्लास की छात्राएं ही उपायुक्त कार्यालय पहुंचीं थी.
इन छात्राओं से बात करने से पता चला कि एक दिन पहले वॉर्डन ने 11वीं क्लास की छात्राओं से ही शौचालय साफ़ कराया था और बाद में कुछ को मैदान के चक्कर लगाने की सज़ा भी सुनाई थी.
स्कूल की प्रिंसिपल सुशीला टोपनो छात्राओं से शौचालयों की सफ़ाई करवाने की बात स्वीकार करते हुए बताती हैं, "यहां सफाईकर्मी का पद सृजित नहीं है, इसलिए यहां सफ़ाईकर्मी नहीं हैं. ऐसे में छात्राओं को ख़ुद सफ़ाई करनी पड़ती है, क्योंकि हर दिन सफ़ाईकर्मी को हम नहीं बुला सकते हैं."
प्रति छात्रा पांच रुपये लिए जाने के आरोप पर प्रिंसिपल का कहना है कि छात्राएं पैसे जमाकर बाल संसद (विद्यार्धियों का एक मंच है) में जमा करती हैं और उनसे सफ़ाईकर्मी बुलाए जाते हैं.
प्रिंसिपल ने कहा, "हम लोगों के पास बजट नहीं, मैं तीन महीने से वेतन नहीं ले सकी. इसलिए मैंने इस बार छात्राओं को समझाया कि तुम लोगों को सहयोग करना पड़ेगा. पैसे के लिए मैंने किसी पर प्रेशर नहीं डाला. जिन छात्राओं ने सहयोग किया उनके बाल संसद से पैसे लेकर स्वीपर को दिए."
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लेकिन ज़िला के प्रभारी शिक्षा पदाधिकारी ललन सिंह ने स्कूल में छात्राओं से शौचालय साफ़ कराए जाने के आरोप को ख़ारिज कर दिया.
शिक्षा अधिकारी यह भी कहते हैं, "ये आवासीय विद्यालय है. इसका उद्देश्य ये नहीं होता है कि यहां सिर्फ़ पढ़ाई हो, वह रोज़मर्रा की ज़िंदगी कैसे जिएंगी, समाज में कैसे रहेंगी. इसलिए इन सभी को अलग-अलग तरह के काम में लगाया जाता है जैसे बाग़वानी, ताकि उनकी टोटल पर्सनालिटी डेवलप हों."
प्रिंसिपल टोपनो कहती हैं, "मैं प्रत्येक मीटिंग में अधिकारियों से सफ़ाईकर्मियों की मांग करती रही हूं क्योंकि यहां बच्चियां ग्रामीण क्षेत्रों से आती हैं जहां वह शौचालय इस्तेमाल नहीं करतीं. ऐसे में समझाने के बावजूद वह शौचालयों में कुछ-कुछ डाल देती हैं जिससे शौचालय हर दो-तीन दिन में जाम होते हैं. ऐसे में सफ़ाईकर्मी को बाहर से बुलाना पड़ता है."
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छात्राओं को समय पर नहीं मिलीं यूनिफ़ॉर्म
इसके अलावा छात्राओं की दूसरी शिकायतें भी हैं.
एक छात्रा मुस्कान तांती का दावा है कि कई छात्राओं को स्कूली यूनिफॉर्म नहीं मिली है. हालांकि उन्हें ख़ुद यूनिफॉर्म मिल चुकी है, लेकिन वह कहती हैं, "सवाल मेरा नहीं है, यहां पढ़ने वाली सभी बालिकाओं को कपड़े मिलने चाहिए."
स्कूल की प्रिंसिपल ने इस आरोप से इनकार करते हुए कहा "जब यूनिफ़ॉर्म आईं तो तीन से चार बालिकाएं अनुपस्थित थीं, वो आ गई हैं तो उनको ड्रेस मिल जाएगी."
मुस्कान एक और आरोप लगाती हैं कि एक-दो छात्राओं को छोड़कर सभी छात्राओं के पास किताबें नहीं हैं.
किन विषयों की किताबें नहीं हैं? इस सवाल पर मुस्कान कहती हैं कि किसी भी विषय की किताब नहीं हैं. लेकिन स्कूल की ओर से किताबों को लेकर लगाए गए इन आरोपों को ख़ारिज कर दिया गया.
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दरअसल कस्तूरबा बालिका आवासीय बालिका विद्यालय में आर्थिक रूप से कमज़ोर विद्यार्थियों को पढ़ने का अवसर मिलता है. छात्राओं का कहना था कि यहां हम अपना भविष्य बनाने के लिए आते हैं. लेकिन उन्हें वह सुविधा नहीं मिलतीं जिसकी वह हक़दार हैं.
अधिकांश छात्राओं का आरोप है कि हम लोगों को मेन्यू के अनुसार नाश्ता और खाना नहीं मिलता.
मोनिका पूर्ति ने कहती हैं, "नाश्ते में अंडा, खाने में अंडा करी, मीट, मछली और मीठा पहले की तरह नहीं मिल रहा."
इस पर प्रिंसिपल टोपनो भी स्वीकार करती हैं कि पैसे की कमी के चलते पहले की तरह विद्यार्थियों को मीट, मछली नहीं दी जा रही हैं.
बजट कम पड़ने की बात
इस पर उपायुक्त अनंत मित्तल ने एक जांच कमेटी बनाई है जो यह पता लगाने की कोशिश करेगी कि दूसरे स्कूलों की तुलना एक समान बजट आवंटन के बाद इसी स्कूल में बजट कम कैसे पड़ रहा है.
वैसे स्कूल में शिक्षकों की कमी भी एक मसला है.
संध्या महतो कहती हैं, "स्कूल में शिक्षक की कमी है. संस्कृत, कुरमाली, हो भाषा, डांस व आर्ट की शिक्षिका नहीं हैं."
लेकिन उनके आरोप को नकारते हुए ज़िला शिक्षा अधिकारी ललन कुमार ने कहा वैसी बात नहीं है. सिर्फ़ स्थानी भाषा 'हो' में शिक्षक नहीं हैं.
जबकि प्रिंसिपल टोपनो ने कहा कि स्कूल में सिर्फ़ मैथ, साइंस, फिज़िकल एजुकेशन व सोशल साइंस विषयों से संबंधित कुल चार स्थायी शिक्षक हैं.
वे कहती हैं, "कुछ पार्ट टाइम शिक्षक आते हैं, लेकिन ऊपर से आदेश है कि उनमें भी कमी की जाए. जब इन पार्ट टाइम शिक्षकों में कमी की जाएगी तो छात्राओं की पढ़ाई और प्रभावित होगी."
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पांच एकड़ में फैले इस आवासीय विद्यालय में 498 छात्राओं की सुरक्षा के लिए दिन में दो महिला और रात में एक पुरुष प्रहरी हैं.
51 छात्राओं के रात में कैंपस से बाहर जाने के संबंध में प्रिंसिपल कहती हैं, "उस रात उन्हें या स्कूल के अन्य कर्मचारियों को आभास तक नहीं हुआ कि छात्राएं दबे पैर कैसे निकल गईं और हम किसी बड़ी अनहोनी से बच गए."
स्कूल की सभी चार शिक्षिका के तबादला को लेकर 11वीं की छात्रा कविता कहती हैं कि "हम डीसी कार्यालय प्रिंसिपल मैम को हटवाने के लिए गए थे. लेकिन सभी शिक्षिका के तबादले से हम सभी दुखी हैं."
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स्कूल कमिटी के प्रबंधक डोनो बानसिंघ कहते हैं कि "मैं अक्सर यहां विद्यार्थियों से मिलने आता हूं. लेकिन किसी ने मुझसे कोई शिकायत नहीं की. जबकि खूंटपानी ब्लॉक के बीडीओ जागो महतो कहते हैं कि जो भी उस रात हुआ वह चौंकाने वाली बात है."
वे कहते हैं, "सवाल ये है कि कैसे इतनी बड़ी संख्या में छात्राएं बाहर निकलीं? सुरक्षा की दृष्टि से ये बेहद संवेदनशील मामला है. इसलिए सभी चीज़ों की गहराई से जांच की जा रही हैं. उपायुक्त ने भी इसकी जांच कराने की बात कही है."
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