Freebies पर CM स्टालिन का पीएम मोदी पर हमला, बिना नाम लिए कहा- शिक्षा और स्वास्थ्य मुफ्त...
Revdi Culture पर जारी बहस के बीच तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और द्रमुक अध्यक्ष एमके स्टालिन ने पीएम मोदी पर हमला बोला है। freebies tn cm mk stalin attacks pm modi
चेन्नई, 13 अगस्त : भारत की राजनीति में वोट साधने के लिए लंबे समय से मुफ्त चीजों को बांटने की संस्कृति देखी जा रही है। केंद्र सरकार गरीबों को मुफ्त अनाज देने का वादा करती है। गैर भाजपा शासित प्रदेश तमिलनाडु में 8-10 साल पहले मुफ्त कलर टीवी बांटने की स्कीम आई। यूपी में अखिलेश यादव की सरकार के कार्यकाल में छात्रों को मुफ्त लैपटॉप दिए गए। दिल्ली और पंजाब जैसे AAP शासित प्रदेश में मुफ्त बिजली-पानी जैसे उदाहरण भी अधिक जोर दिए बिना सहजता से दिमाग में कौंध जाते हैं। अब सवाल ये है कि प्रधानमंत्री मोदी ने जिसे रेवड़ी कल्चर कहा है, वह क्या केवल विपक्षी दलों की देन है ? दिल्ली के सीएम और AAP संयोजक अरविंद केजरीवाल के आक्रामक रूख के बाद अब पहली बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने एमके स्टालिन भी पीएम मोदी पर हमलावर दिख रहे हैं।
रेवड़ी कल्चर में "शिक्षा और स्वास्थ्य" नहीं
दरअसल, चुनावी वादों की शक्ल में जारी "मुफ्त उपहार संस्कृति" जिसे पीएम मोदी ने रेवड़ी कल्चर की संज्ञा दी है, लगातार सुर्खियों में है। विवाद के बीच, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि "शिक्षा और स्वास्थ्य" को रेवड़ी कल्चर श्रेणी के तहत नहीं रखा जा सकता है। स्टालिन ने कहा कि स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च गरीबों के लाभ के लिए किया जाता है। समाचार एजेंसी पीटीआई ने स्टालिन के हवाले से कहा, "कुछ लोग अब इस सलाह के साथ सामने आए हैं कि कोई मुफ्त उपहार नहीं होना चाहिए।" हालांकि, स्टालिन ने पीएम मोदी या बीजेपी का नाम नहीं लिया है, लेकिन उनके बयान को मोदी के अप्रत्यक्ष संदर्भ के रूप में देखा जा रहा है।
Freebies पर राजनीति...
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री शनिवार को चेन्नई में अपने कोलाथुर निर्वाचन क्षेत्र में अरुलमिगु कपालेश्वर कला और विज्ञान कॉलेज में थे। कॉलेज में स्टालिन ने कहा, शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च मुफ्त नहीं कहा जा सकता। शिक्षा का संबंध ज्ञान से है। चिकित्सा का संबंध स्वास्थ्य से है। तमिलनाडु की डीएमके (द्रमुक) सरकार की प्राथमिकता के बारे में स्टालिन ने कहा, सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त कल्याणकारी योजनाओं को लागू करना चाहती है। हालांकि द्रमुक अध्यक्ष स्टालिन ने अपने बयान को विस्तार देने से परहेज किया। उन्होंने कहा, 'अगर मैं ज्यादा बोलूंगा तो यह राजनीति हो जाएगी। इसलिए मैं इस बारे में अधिक बात नहीं करना चाहता।"
पीएम क्या बोले- यहां देखिए वीडियो
कहां से शुरू हुआ 'रेवड़ी कल्चर' विवाद
गौरतलब है कि पीएम मोदी ने हाल ही में चुनावी जीत के लिए मुफ्त उपहार देने की राजनीतिक प्रथा की आलोचना करते हुए यूपी के बुलंदशहर में एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि इस तरह के कदम "हमारे बच्चों के अधिकार" को छीन लेंगे और देश को आत्मनिर्भर बनने से रोकेंगे।
CJI रमना ने कहा, 'मुफ्त' का असर जानना जरूरी
यह भी दिलचस्प है कि केंद्र और गैर-भाजपा शासित राज्य विशेष रूप से दिल्ली में आम आदमी पार्टी (AAP) मुफ्तखोरी की संस्कृति को लेकर आमने-सामने दिख रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा है। शीर्ष अदालत ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान कहा कि सभी कल्याणकारी योजनाओं को मुफ्त के दायरे में नहीं देखा जा सकता। अदालत ने चुनावी सीजन में होने वाले लोक लुभावन वादों को "गंभीर मुद्दा" करार दिया और कहा, एक वित्तीय अनुशासन होना चाहिए। CJI एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि राज्यों और करदाताओं दोनों की अर्थव्यवस्था पर 'मुफ्त के प्रभावों का आकलन' करने के लिए एक बहस शुरू की जानी चाहिए।
भाजपा और AAP के बीच तीखी जुबानी जंग
बता दें कि इलेक्शन के दौरान फ्रीबीज पर बयानबाजी के दौरान दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने शुक्रवार को कहा था कि केंद्र यह दावा करके डर फैलाने की कोशिश कर रहा है कि कल्याणकारी योजनाएं राष्ट्र को नष्ट कर देंगी। रेवड़ी या जनता को मुफ्त चीजें देने के मामले में भाजपा और आप के बीच वाकयुद्ध जैसी स्थिति है। सिसोदिया के बयान के बाद भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने पलटवार करते हुए शुक्रवार को ही कहा था, आप के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का एकमात्र एजेंडा भारत में खुद को प्रमुखता स्थापित करना है। इसलिए केजरीवाल फ्रीबीज के बारे में "झूठ बोल रहे हैं...।"
AAP पहुंची सुप्रीम कोर्ट, अदालत का क्या है रूख
यह भी दिलचस्प है कि AAP एकमात्र राजनीतिक दल है जिसने मुफ्त उपहार मामले में सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है। केंद्र सरकार ने जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दलील दी है कि चुनावी वादों पर अंकुश लगाने के लिए अदालत दिशानिर्देश दे। हालांकि, रिपोर्ट्स के मुताबिक अदालत अपनी मौखिक टिप्पणी में स्पष्ट कर चुकी है कि अदालत का दायरा सीमित है, निर्वाचन आयोग या सरकार को इस संबंध में कानून या नियम बनाने पर मंथन करना चाहिए। खबरों में ये भी कहा गया है कि मामले पर सुनवाई के दौरान अदालत निर्वाचन आयोग की गंभीरता पर भी सवाल खड़े कर चुकी है। सुप्रीम कोर्ट में निर्वाचन आयोग के वकील की उस समय फजीहत हुई थी जब CJI रमना की पीठ ने पूछा था कि अदालत में हलफनामा दाखिल होने से पहले आपका पक्ष मीडिया तक कैसे पहुंच जाता है। ?