पूर्व डीजीपी ने ऑल इंडिया सर्विसेज में की अग्निपथ योजना की मांग, बताई वजह
नई दिल्ली, 26 जुलाई। केंद्र सरकार ने सेना में भर्ती के लिए अग्निपथ योजना की शुरुआत की है। इस योजना की शुरुआत के बाद से ही अलग-अलग राजनीतिक पार्टियां, समाज के अलग-अलग वर्ग इसकी आलोचना कर रहे हैं। इस योजना के खिलाफ बड़ी संख्या में युवाओं ने देशभर में विरोध प्रदर्शन किया। योजना का विरोध करने वालों का तर्क है कि इस योजना से युवाओं का भविष्य अंधेरे में रहेगा, उन्हें भविष्य की चिंता सताती रहेगी कि 4 साल बाद उन्हें सेना से बाहर कर दिया जाएगा। ऐसे में देश सेवा की भावना उनके भीतर नहीं आ पाएगी।
AIS में भी अग्निपथ हो
लेकिन उत्तर प्रदेश, असम और बीएसएफ के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह का मानना है कि अग्निपथ स्कीम को ऑल इंडिया सर्विसेज में भी लागू किया जाना चाहिए। उनका तर्क है कि सरकार कई सारी जन सरोकार की योजनाओं को बड़े पैमाने पर चलाती है और कानून व्यवस्था की समस्या काफी जटिल हो जात है। ऐसे में इन परिस्थितियों को देखते हुए जिस तरह से अधिकारियों की जिम्मेदारी बढ़ी है उसके मद्देनजर अग्निपथ जैसी योजनाओं को ऑल इंडिया सर्विसेज में भी लागू किया जाना चाहिए।
अधिक जिम्मेदारी का दबाव
अधिकारियों के पास कई बड़ी जिम्मेदारियां होती हैं, उनके काम को लेकर लोगों में काफी असंतोष भी रहता है। यहां तक कि कुछ अधिकारियों ने यहां तक सुझाव दिया है कि आईएएस को खत्म कर देना चाहिए। लेकिन किसी ने भी पुलिस सेवा को खत्म करने की राय नहीं दी क्योंकि वह कितने भी अक्षम हो, उनकी पूरी तरह से गैरमौजूदगी हर तरफ अव्यवस्था ला देगी। लेकिन सामान्य तौर पर धारणा यही है कि लोग पुलिस के काम से असंतुष्ट रहते हैं। उनके खिलाफ बर्बरता की शिकायत भी आती है, वो थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करते हैं और पुलिस हिरासत में लोगों की मौत भी होती है।
खत्म होता नौकरी का जज्बा
इस तरह की भी घटनाएं सामने आई हैं जब एक एआईएस का चयन होता है उसके भीतर एक अहम आ जाता है कि अब वह 30-35 साल तक सेवा में रहेगा, उसकी नौकरी सुरक्षित है। सामान्य परिस्थितियों में वह शीर्ष स्तर तक पहुंचता है। जहां पर बेहतर प्रदर्शन का कोई दबाव नहीं होता, किसी तरह की नवीनता नहीं रह जाती है, कोई सैलरी में बढ़ोत्तरी नहीं होती है, ना ही आगे बढ़ने की ललक रह जाती है। उनके भीतर किसी भी तरह की कोई अग्नि नहीं रहती
भारी-भरकम ब्यूरोक्रेसी
आईएएस और आईपीएस स्तर के वरिष्ठ अधिकारियों की बात करें तो वह इन सेवाओं में सुधार के लिए सुप्रीम कोर्ट तक जा चुके हैं। न्यायपालिका ने भी समय-समय पर इसमे सुधार की बात कही है। लेकिन जमीनी स्तर पर कोई बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिला। उत्तर प्रदेश की बात करें तो डीजीपी स्तर के 14 अधिकारी हैं, 42 अडिशनल डीजीपी रैंक के अधिकारी हैं। यहां ब्यूरोक्रेसी और भी बड़ी है। यूपी में 29 मुख्य सचिव, स्तर के अधिकारी हैं, 28 प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी हैं, 61 सचिव। देशभर में कुछ ऐसे ही हालात हैं। केंद्र की बात करें तो यहां भी पीएमओ में सचिव स्तर के 91 अधिकारी हैं। डीजीपी रैंक के 21 अधिकारी हैं।
लॉबिंग में लिप्त अधिकारी
ऑल इंडिया सर्विसेज की बात करें तो यहां काफी ज्यादा आला अधिकारी हैं। कई अधिकारी ऐसे हैं जिनके पास बहुत बड़े पद हैं लेकिन काम बहुत ही कम है। यही वजह है कि उनके भीतर काम को लेकर ललक खत्म हो जाती है। जिसके चलते कई अधिकारी नेताओं को खुश करने में लगे रहते हैं ताकि उन्हें बेहतर विभाग मिल सके। उच्च पदों पर पहुंचने के लिए लॉबिंग एक आम बात है। सच तो यह है कि कई अधिकारी इसमे काफी औसत दर्जे के हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना था कि गधे और घोड़े दोनों ही इस व्यवस्था में शीर्ष स्तर तक पहुंचने में सफल हो रहे हैं।
अग्निपथ की जरूरत
लिहाज इन परिस्थितियों को देखते हुए सरकार को एआईएस में भी अग्निपथ जैसी योजना लेकर आनी चाहिए। अधिकारियों के कामकाज पर नजर रहनी चाहिए, उनके प्रदर्शन का आंकलन होना चाहिए। जब वह 15 साल की सेवा पूरी करें तो उनके प्रदर्शन के आधार पर अगले 10 साल का सेवा विस्तार होना चाहिए। कुछ ऐसा ही 30 साल की सेवा विस्तार किए जाने में होना चाहिए। 5 फीसदी अधिकारियों को ही आगे सेवा विस्तार दिया जाना चाहिए। पहले चरण में 10 फीसदी अधिकारियों को, अगले चरण में 5 फीसदी अधिकारियों को सेवा विस्तार दिया जाना चाहिए। भ्रष्टाचार, खराब प्रदर्शन, किसी भी तरह का गलत व्यवहार, शारीरिक रूप से अनफिट लोगों को सेवा विस्तार नहीं मिलना चाहिए।