NFHS-5: भारत में पहली बार पुरुषों से ज्यादा महिलाएं, बैंक खाता रखने वाली औरतें भी 25% बढ़ीं
नई दिल्ली। भारत में महिला-पुरुषों की संख्या से जुड़ी बहुत अच्छी खबर आई है। देश में पहली बार प्रति 1000 पुरुषों पर 1020 महिलाएं हो गई हैं। वहीं, कई राज्यों में बच्चियों की जन्मदर भी बढ़ी है। अब जनसंख्या विस्फोट का खतरा भी कम हो गया है। राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस/नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5) के पांचवें दौर के आंकड़ों से यह जानकारी सामने आई है। जिसके अनुसार, देश में जेंडर रेश्यो 2015-16 के मुकाबले 10 अंक सुधरा है। इससे पहले 2015-16 में हुए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 में यह आंकड़ा प्रति 1000 पुरुषों पर 991 महिलाओं का था। यानी, जेंडर रेश्यो की यह सबसे सुकूनदायी खबर है...
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 ने दी राहत
राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 से एक और अच्छी बात यह सामने आई है कि, खुद का बैंक खाता रखने वाली महिलाओं की संख्या 25% बढ़ी है। अब 78.6% महिलाएं अपना बैंक खाता ऑपरेट करती हैं। जबकि, 2015-16 में यह आंकड़ा 53% ही था। वहीं 43.3% महिलाओं के नाम पर कोई न कोई प्रॉपर्टी है, जबकि 2015-16 में यह आंकड़ा 38.4% ही था। इसके अलावा जिस लिंगानुपात का जिक्र आते ही भारत को दुनिया में बेहद खराब बताया जाता था, अब राहत की बात यह है कि, नए सर्वे में लिंगानुपात का आंकड़ा प्रति 1000 बच्चों पर 929 बच्चियों तक पहुंच गया है।
जेंडर रेश्यो 2015-16 के मुकाबले 10 अंक सुधरा
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार, पहली बार भारत की कुल आबादी में प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 1020 हो गई है। इससे पहले 2015-16 में हुए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 में यह आंकड़ा प्रति 1000 पुरुषों पर 991 महिलाओं का था। एक और अच्छी बात यह है कि, कुल आबादी में लिंगानुपात शहरों के बजाय गांवों में बेहतर है। गांवों में प्रति 1000 पुरुषों पर 1037 महिलाएं हैं, जबकि शहरों में 985 महिलाएं ही हैं। बुधवार को जारी नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के आंकड़े यही बताते हैं।
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15 वर्ष से कम आयु की आबादी का हिस्सा कम हुआ
केंद्रीय
स्वास्थ्य
मंत्रालय
द्वारा
जारी
किए
गए
राष्ट्रीय
परिवार
और
स्वास्थ्य
सर्वेक्षण
(एनएफएचएस)
के
पांचवें
दौर
के
आंकड़ों
से
यह
बात
भी
सामने
आई
है
कि,
15
वर्ष
से
कम
आयु
की
जनसंख्या
का
हिस्सा,
जो
2005-06
में
34.9%
था,
2019-21
में
घटकर
26.5%
हो
गया
है।
यह
सुनिश्चित
करने
के
लिए,
एनएफएचएस
एक
सेंपल
सर्वे
है,
और
क्या
ये
बड़ी
आबादी
पर
लागू
होने
वाली
संख्याएं
निश्चित
रूप
से
तभी
कही
जा
सकती
हैं
जब
अगली
राष्ट्रीय
जनगणना
आयोजित
की
जाएगी,
हालांकि
यह
बहुत
संभावना
है
कि
कई
राज्यों
और
केंद्र
शासित
प्रदेशों
के
मामले
में
ऐसा
होगा।
भारत अब "महिलाएं लापता" टाइटल वाला देश नहीं
ताजा आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत को अब "महिलाएं लापता" वाला देश नहीं कहा जा सकता है, यह वाक्यांश पहली बार नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन द्वारा 1990 में न्यूयॉर्क रिव्यू ऑफ बुक्स में एक निबंध में इस्तेमाल किया गया था। उस समय, भारत में प्रति 1,000 पुरुषों पर 927 महिलाएं थीं। राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के 2005-06 में आयोजित एनएफएचएस-3 के अनुसार, महिलाओं-पुरुषों का औसत 1000: 1000 के बराबर अनुपात में था। हालांकि, 2015-16 में एनएफएचएस-4 में यह घटकर 991:1000 हो गया। अब यह पहली बार है, किसी भी एनएफएचएस या जनगणना में, कि लिंग अनुपात महिलाओं के पक्ष में दिखा है।
अब जनसंख्या विस्फोट का भी खतरा नहीं है
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव विकास शील ने कहा, सर्वे से इस बार राहत मिली है। भारत में अब प्रति 1000 पुरुषों पर 1,020 महिलाएं हैं, और अब जनसंख्या विस्फोट का भी खतरा नहीं है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के निदेशक ने कहा, "जन्म के समय बेहतर लिंगानुपात होना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है; भले ही वास्तविक तस्वीर जनगणना से सामने आएगी, पर हम अभी के परिणामों को देखते हुए कह सकते हैं कि महिला सशक्तिकरण के हमारे उपायों ने हमें सही दिशा में आगे बढ़ाया है।, "
महिलाएं पुरुषों की तुलना में ज्यादा जीती हैं
यह सुनिश्चित करने के लिए, पिछले पांच वर्षों में पैदा हुए बच्चों के लिए जन्म के समय लिंग अनुपात 929 है, तब ताजा सर्वे बताता है कि पुत्र-वरीयता की ख्वाहिश टूटी है, और सुधरता लिंगानुपात देश के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। वैसे भी सरकार की नीतियों का उद्देश्य लिंग चयन प्रथाओं पर अंकुश लगाना था, जो कभी बड़े पैमाने पर कन्या भ्रूण हत्या के तौर पर व्याप्त रहीं थी, और इस तथ्य पर कि भारत में महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक समय तक जीवित रहती हैं।
अब जन्म के समय का लिंगानुपात भी सुधरा
भारत की जनगणना वेबसाइट के आंकड़ों के अनुसार, 2010-14 में पुरुषों और महिलाओं के लिए जन्म के समय औसत जीवन प्रत्याशा क्रमशः 66.4 वर्ष और 69.6 वर्ष थी। वहीं, अब केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा कराए गए सर्वेक्षण के आंकड़े दिलचस्प हैं। चूंकि, अब जन्म के समय का लिंगानुपात यानी जेंडर रेश्यो भी सुधरा है। 2015-16 में यह प्रति 1000 बच्चों पर 919 बच्चियों का था। ताजा सर्वे में यह आंकड़ा प्रति 1000 बच्चों पर 929 बच्चियों पर पहुंच गया है।
सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की अध्यक्ष क्या बोलीं
सेंटर
फॉर
पॉलिसी
रिसर्च
की
अध्यक्ष
यामिनी
अय्यर
ने
कहा,
"फैक्ट
यह
है
कि
हम-उम्र
बढ़ने
वाली
आबादी
हैं,
यह
दर्शाता
है
कि
महिलाओं
के
स्वास्थ्य
के
प्रति
हमारे
दृष्टिकोण
को
एक
समग्र
जीवन
चक्र
दृष्टिकोण
की
आवश्यकता
है,
जो
केवल
प्रजनन
स्वास्थ्य
को
प्राथमिकता
देता
है।"
अय्यर
ने
कहा,
"एक
सच्चाई
यह
भी
है
कि
2019-20
में
पहले
की
तुलना
में
अधिक
महिलाओं
ने
दस
साल
की
स्कूली
शिक्षा
पूरी
की
है,
जो
महिला
श्रम
बल
की
भागीदारी
में
गिरावट
के
साथ
मेल
खाती
है,
जो
भारत
के
श्रम
बाजार
में
महत्वपूर्ण
संरचनात्मक
चुनौतियों
की
ओर
इशारा
करती
है।
अगर
भारत
को
प्रगति
करनी
है
तो
इन
पर
तत्काल
ध्यान
देने
की
जरूरत
है।,
"
कहां-कहां कराया गया NFHS-5?
इस सर्वे को वर्ष 2019 और 2021 के बीच दो फेज में आयोजित किया गया था, और इसमें देश के 707 जिलों के 650,000 परिवारों को शामिल किया गया था। फेज- II में जिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का सर्वेक्षण किया गया, उनमें अरुणाचल प्रदेश, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, मध्य प्रदेश, दिल्ली का राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, ओडिशा, पुडुचेरी, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड शामिल हैं। वहीं, फर्स्ट फेज में शामिल 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के संबंध में एनएफएचएस-5 के निष्कर्ष दिसंबर 2020 में जारी किए गए थे।