फ़्लिपकार्ट: सचिन-बिन्नी की दोस्ती से $21 अरब डॉलर के साम्राज्य तक
एग्ज़ाम में अच्छे नंबर लाना हर किसी का ख़्वाब हो सकता है लेकिन कुछ मामलों में नंबर कम आना इतिहास बनाने की वजह बन जाता है.
अगर सचिन बंसल और बिन्नी बंसल को एग्ज़ाम में अच्छे नंबर मिले होते, तो वो कभी न मिले होते और फ़्लिपकार्ट कभी न बनी होती.
क्या होता अगर सचिन 1999 में आईआईटी प्रवेश परीक्षा में कामयाब न होने के बाद पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से फ़िजिक्स कोर्स करने का फ़ैसला
एग्ज़ाम में अच्छे नंबर लाना हर किसी का ख़्वाब हो सकता है लेकिन कुछ मामलों में नंबर कम आना इतिहास बनाने की वजह बन जाता है.
अगर सचिन बंसल और बिन्नी बंसल को एग्ज़ाम में अच्छे नंबर मिले होते, तो वो कभी न मिले होते और फ़्लिपकार्ट कभी न बनी होती.
क्या होता अगर सचिन 1999 में आईआईटी प्रवेश परीक्षा में कामयाब न होने के बाद पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से फ़िजिक्स कोर्स करने का फ़ैसला कर लेते और कभी आईआईटी दिल्ली आते ही ना.
क्या होता अगर सचिन और बिन्नी के बीटेक प्रोजेक्ट के फ़ाइनल ईयर में अच्छे स्कोर मिले होते और वो दिल्ली में न आते, जहां आख़िरकार उनकी मुलाक़ात हुई.
योर स्टोरी के मुताबिक ये साल 2005 था जब चंडीगढ़ से ताल्लुक़ रखने वाले दोनों बंसल की मुलाक़ात आईआईटी दिल्ली की FPGA हार्डवेयर लैब में हुई.
सचिन-बिन्नी भाई या रिश्तेदार नहीं
साल 2007 में फ़्लिपकार्ट न सिर्फ़ बनी, बल्कि ऐसे बनी और बढ़ी कि इन दोनों के अलावा स्टार्ट-अप बनाने के सपने देखने वाले लोगों के ख़्वाबों को पंख लगे.
बंसल उपनाम होने की वजह से ऐसा लग सकता है कि सचिन और बिन्नी दोनों भाई या फिर रिश्तेदार हैं, लेकिन ऐसा है नहीं.
कोर्स पूरा करने के बाद दोनों बंगलुरु चले गए लेकिन नौकरी की अलग-अलग. दिलचस्प है कि बिन्नी को गूगल ने दो बार अपने दरवाज़े से खाली हाथ लौटाया.
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सचिन ने अमेज़ॉन में नौकरी की और एक साल बाद 2007 में बिन्नी भी इसी टीम का हिस्सा बनने पहुंच गए. ये वही ऑफ़िस था जहां दोनों के दिमाग़ में स्टार्ट-अप खड़ा करने का विचार आया.
साल भर काम करने के बाद दोनों बंसल और एक अन्य साथी अमित अग्रवाल ने कागज़ पर ये कंपनी खड़ा करने की योजना तैयार की और मैदान में उतर गए.
कैसे पैदा हुई फ़्लिपकार्ट?
दिग्गज अमरीकी कंपनी अमेज़ॉन भारतीय रिटेल कारोबार में उतरने से छह साल दूर खड़ी थी, ऐसे में बंसल-अग्रवाल की तिकड़ी के पास इतिहास रचने का मौक़ा था और उन्होंने यही मौक़ा भांप लिया.
2007 ने जब अक्टूबर में मौसम बदला तो बेंगलुरु के विल्सन गार्डन मोहल्ले में जन्म लिया. फ़्लिपकार्ट वेबसाइट के लिए शुरुआती कोड सचिन और बिन्नी ने लिखा.
उस समय तीनों का मक़सद इस वेबसाइट को सिर्फ़ किताबें ख़रीदने की बेस्ट जगह बनाना था.
सचिन को टेक्नोलॉजी, प्रोडक्ट और मार्केटिंग ज़्यादा समझ आती थी, तो उन्होंने वही संभाला. बिन्नी के कंधों पर बैक-एंड, किताबों की कीमत तय करने और दूसरे ऑपरेशंस का ज़िम्मा आया.
टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने फ़्लिपकार्ट से शुरुआत में जुड़ने वाले एक व्यक्ति के हवाले से लिखा, ''फ़्लिपकार्ट लॉन्च हुई तो सचिन ने बेहतरीन सर्च इंजन ऑप्टिमाइज़ेशन के बूते साइट तक ट्रैफ़िक लाने का कमाल किया.''
किताबों की कहानी
मतलब ये कि जब कोई किताब ख़रीदने के लिए उसका नाम सर्च इंजन में डालता तो फ़्लिपकार्ट का नाम सबसे ऊपर आता और इसी वजह से वेबसाइट पर आने वाले लोगों की तादाद बढ़ती गई.
साथ ही इस वजह से कंपनी को साइट पर विज्ञापन मिलने लगे और इन्हीं से हर महीने 10-12 लाख रुपए की कमाई होने लगी. कंपनी को शुरुआत में उसके पैरों पर खड़ा करने और चलाने के लिए इतनी रकम काफ़ी थी.
जून 2009 आया तो फ़्लिपकार्ट को अपनी कामयाबी का अंदाज़ा तब हुआ जब उसे 10 लाख डॉलर की फ़ंडिंग देने का फ़ैसला किया. फ़ंड का समझदारी से इस्तेमाल और लगातार कंपनी को बढ़ाते रहना वो मंत्र था जिसके आधार पर 11 साल में उसने 6 अरब डॉलर बटोरे.
सचिन और बिन्नी को इस बात का क्रेडिट भी दिया जाता है कि उन्होंने अपने बाद स्थानीय टैलेंट को पहचाना और उसे आगे बढ़ाया. यही वजह है फ़्लिपकार्ट, दुनिया की दिग्गज कंपनियों से लोहा ले सकी.
शुरुआती दिनों में सचिन ने इस बात को समझा कि भारतीयों को किताब बुक कराने के समय पैसा चुकाने के बजाय किताब हाथ में आने पर पेमेंट करना ज़्यादा पसंद आता है, इसलिए उन्होंने कैश-ऑन-डिलिवरी का विकल्प दिया और बाज़ार की शक्ल बदल दी.
कैसे बदली फ़्लिपकार्ट की किस्मत
और घरवालों का पैसा, अपनी बचत झोंककर खड़ी की गई ये कंपनी अब कहां तक आ पहुंची है. साल 2014 के बाद अमेज़ॉन ने भारत पर फ़ोकस किया तो फ़्लिपकार्ट की कहानी ख़त्म मान ली गई थी.
लेकिन ऐसा हुआ नहीं. वो टकराती रही और ख़ुद को संभाले रही. पिछले एक साल में सब कुछ बदल गया. वॉलमार्ट के दिलचस्पी दिखाने के बाद ये साफ़ हो गया है कि फ़्लिपकार्ट ने कहां से कहां तक का सफ़र तय कर लिया है.
अमरीका की दिग्गज रिटेल कंपनी वॉलमार्ट ने भारतीय ई-कॉमर्स कंपनी फ़्लिपकार्ट की 77 फ़ीसदी हिस्सेदारी 16 अरब डॉलर में ख़रीदकर इतिहास रच दिया.
ये भारत में अब तक का सबसे बड़ा विलय-अधिग्रहण सौदा है. इससे पहले रूस की रोसनेफ़्त ने साल 2016 में एस्सार ऑयल को 12.9 अरब डॉलर में ख़रीदकर कीर्तिमान रच दिया था.
सचिन का फ़ैसला क्या?
इस सौदे से वॉलमार्ट को भारतीय बाज़ार में न सिर्फ़ कदम रखने, बल्कि मज़बूत स्थिति तक पहुंचने का मौक़ा मिलेगा.
दूसरी तरफ़ फ़्लिपकार्ट को वॉलमार्ट की गहरी जेब, रिटेल में विशेषज्ञता, ग्रॉसरी, जनरल मर्चेंडाइज़ सप्लाई-चेन की जानकारी मिलेगी.
वॉलमार्ट ने बहुमत हिस्सेदारी ख़रीदकर ऑनलाइन फ़ैशन रिटेलर मिंत्रा और जबोंग, लॉजिस्टिक फ़र्म ईकार्ट और डिजिटल पेमेंट फ़र्म फ़ोनपे को अपनी जेब में कर लिया है.
जब किसी कामयाब कहानी का अंत होता है तो खुशी के साथ-साथ एक आंसू भी रह जाता है. फ़्लिपकार्ट की कहानी में वो आंसू सचिन की विदाई है.
दरअसल, नए समझौते के तहत बिन्नी बंसल फ़्लिपकार्ट में ग्रुप सीईओ के पद पर बने रहेंगे लेकिन सचिन ने अपनी राह अलग करने का फ़ैसला किया है.
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