Flashback 2020: कश्मीर से केरल तक, 2020 की चुनावी राजनीति में कैसा रहा BJP का सफर ?
नई दिल्ली। BJP in 2020: साल 2020 कई चीजों के लिए याद किया जाएगा लेकिन सबसे ज्यादा जिस चीज के लिए जाना जाएगा वह है कोविड-19 महामारी का देश में पहुंचना जिसके चलते देश में लंबे समय तक लॉकडाउन लगाना पड़ा। इसी साल देश में दो राज्यों में चुनाव और उसके बाद कई स्थानीय स्तर पर चुनाव हुए। आइए देखते हैं कि साल 2020 बीजेपी के लिए कैसा रहा और देश की चुनावी राजनीति के पटल पर बीजेपी ने किस तरह का उतार और चढ़ाव देखा।
इस साल दो राज्यों के चुनाव हुए। पहला फरवरी में दिल्ली का चुनाव और दूसरा था अक्टूबर नवम्बर में हुए बिहार विधानसभा का चुनाव जो कोरोना काल के बीच में करवाया गया देश का पहला चुनाव था।
इसके साथ ही 70 से ज्यादा राज्यसभा सीटों के लिए सदस्यों का चुनाव हुआ। कई सारे राज्यों में उपचुनाव और कई स्थानीय निकाय चुनाव भी थे जिन्हें बीजेपी ने इस तरह से लड़ा कि पूरे देश में उसकी चर्चा हुई। शायद ये पहला मौका था जब निकाय चुनावों पर सिर्फ विश्लेषकों की ही नहीं बल्कि जनता की भी पूरी नजर रही।
राज्यों के चुनाव में बीजेपी
दिल्ली पहला राज्य था जहां 2020 में चुनाव कराए गए। जब दिल्ली में सीएए के विरोध में खूब प्रदर्शन हो रहे थे लोग सड़कों पर थे इसी दौरान राजधानी की 70 सीटों पर वोट डाले गए। बीजेपी को उम्मीद थी कि वह 5 साल से सरकार चला रहे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को पटखनी दे देगी लेकिन नतीजों बीजेपी के लिए बहुत ही निराशाजनक रहे। आप ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए 70 में से 62 सीटों पर कब्जा जमाया जबकि बीजेपी को 8 सीटों ही मिलीं। हालांकि 2015 के मुकाबले बीजेपी ने 5 सीटें ज्यादा जीती थीं लेकिन इस चुनाव ने एक बार साबित कर दिया कि दिल्ली विधानसभा में बीजेपी को केजरीवाल को ही किंग मानना पड़ेगा।
इसी साल अक्टूबर-नवम्बर में बिहार की 243 विधानसभा सीटों के लिए वोट डाले गए। तीन चरणों में हुआ ये चुनाव बीजेपी-जेडीयू और अन्य दलों के गठबंधन वाले सत्ताधारी एनडीए और राजद-कांग्रेस के महागठबंधन के बीच लड़ा गया। एनडीए गठबंधन ने 125 सीटें जीतकर एक बार फिर से बहुमत हासिल किया जबकि महागठबंधन का काफिला 110 पर आकर रुक गया।
लेकिन बिहार चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा फायदा हुआ। जीत के बाद नीतीश कुमार भले ही मुख्यमंत्री बने रहे हों लेकिन चुनाव में बीजेपी राज्य के चुनावी इतिहास में पहली बार जेडीयू के सामने छोटे भाई नहीं बल्कि बड़े भाई की भूमिका में पहुंची। बीजेपी ने 74 सीटें जीतीं जबकि सहयोगी जेडीयू को सिर्फ 43 सीटें मिलीं। सिर्फ यही नहीं बीजेपी राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनने वाली राजद से सिर्फ एक ही सीट पीछे रही। जाहिर है कि बीजेपी के लिए बिहार का चुनाव राज्य की राजनीति में बड़ा मील का पत्थर स्थापित हुआ है।
73 राज्यसभा सीटों पर हुए चुनाव
साल 2020 में देश के उच्च सदन की 74 सीटों के लिए सदस्यों का चयन किया गया। 73 सदस्यों को चुना गया जबकि एक सदस्य को मनोनीत किया गया। 73 में 16 सदस्य निर्विरोध चुने गए। इसमें सबसे ज्यादा 12 सदस्य उत्तर प्रदेश से चुने गए थे जो कि सभी निर्विरोध थे। निर्विरोध जीतने वालों में सबसे अधिक उम्मीदवार बीजेपी के थे। राज्यसभा चुनावों में जीत के चलते बीजेपी उच्च सदन में बहुमत अंक के बहुत करीब पहुंचा दिया है। अकेले तौर पर भाजपा 93 सीटों के साथ 245 सदस्यीय राज्यसभा में सबसे बड़ी पार्टी है। हालांकि अभी भी अपने सहयोगियों के साथ पार्टी ने सदन में बहुमत की स्थिति में नहीं पहुंच सकी है।
वहीं इसी साल राज्यसभा के लिए एक सदस्य को मनोनीत किया गया जिसकी सबसे ज्यादा चर्चा रही वे सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई थे। मुख्य न्यायाधीश के पद से रिटायर होने के बाद उन्हें केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने राज्यसभा के लिए मनोनीत किया। उनके मनोनयन को लेकर विपक्ष के साथ ही सिविल सोसायटी के लोगों ने भी काफी विरोध किया था। कई लोगों ने उनके कार्यकाल में मुकदमों के फैसलों पर भी शक जाहिर किया। बता दें कि राम मंदिर जमीन विवाद में फैसला देने वाली पीठ का नेतृत्व रंजन गोगोई ने ही किया था।
राज्यों की विधानसभा सीटों पर उपचुनाव
इस साल कई राज्यों में विधानसभा सदस्यों के निधन या उनके पद छोड़ने के चलते उपचुनाव कराए गए। इनमें सबसे महत्वपूर्ण मध्य प्रदेश था जहां पर 28 सीटों पर उपचुनाव हुए थे। इनमें 25 सीटें ऐसी थीं जिन पर 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के उम्मीदवार जीते थे लेकिन इसी साल ये सभी ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थन में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे जबकि 3 सदस्यों के निधन के चलते सीट खाली हुई थी। 28 सीटों पर चुनाव बीजेपी के लिए शिवराज सरकार को बचाने की परीक्षा थी। लेकिन उपचुनाव के नतीजों ने एक बार बीजेपी की ताकत को प्रदेश में स्थापित कर दिया। बीजेपी ने 28 में 19 सीटों पर जीत हासिल की और शिवराज सिंह चौहान की सरकार के लिए रास्ता साफ हो गया।
इसके साथ ही उत्तर प्रदेश की 7 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए जिनमें बीजेपी ने 6 सीटों पर कब्जा जमाया और साबित किया कि प्रदेश में अभी भी वह नंबर-1 है। उपचुनाव में बीजेपी को एक और बड़ी सफलता मणिपुर में मिली जहां 5 सीटों पर हुए चुनाव में पार्टी ने 4 सीटों पर कब्जा जमाया और पूर्वोत्तर के एक और राज्य में और मजबूत हुई।
उपचुनाव में एक सीट सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण थी तेलंगाना की दुब्बाक विधानसभा सीट जहां बीजेपी ने सत्ताधारी टीआरएस को हराकर इस सीट पर कब्जा कर लिया। इस सीट का महत्व इसलिए भी है कि यह मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव की अपनी विधानसभा सीट से बिलकुल लगी हुई है। इस जीत ने बीजेपी के कार्यकर्ताओं को हौसला दिया जिसके बाद वह हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में मजबूती से उतरी। हालांकि हरियाणा, छत्तीसगढ़ और दूसरे राज्यों में बीजेपी के लिए नतीजे अच्छे नहीं रहे।
स्थानीय निकाय चुनाव में बीजेपी ने दिखाई ताकत
2020 में ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के चुनाव कराए गए। इस चुनाव में बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत लगाई। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा से लेकर गृहमंत्री अमित शाह और यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ तक बीजेपी का हर बड़ा नेता (पीएम मोदी को छोड़कर) इस चुनाव में पार्टी के लिए प्रचार कर रहा था। पहली बार था जब राष्ट्रीय स्तर की पार्टी इस तरह से स्थानीय निकाय चुनाव को इस तरह से लड़ रही थी। आखिरकार जब नतीजे आए तो बीजेपी ने साबित किया कि वह यूं ही हीं मैदान में थी। सत्ताधारी टीआरएस जहां 56 पर रुक गई वहीं बीजेपी जिसके पास पिछली बार सिर्फ 4 सीट थी इस बार 48 सीट जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी थी। उसने असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM को भी पीछे छोड़ दिया था। तब कहा गया था कि इस जीत ने बीजेपी के लिए दक्षिण के दुर्ग का दूसरा द्वार खोल दिया है।
इसी साल राजस्थान में पंचायत चुनाव हुए जिसमें बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया। 21 जिला परिषद की सीटों में बीजेपी ने 14 पर कब्जा जमाया जबकि 4371 पंचायत समिति में से भाजपा ने 1836 सीटें जीतीं। भाजपा को ये जीत ऐसे समय में मिली जब कृषि कानूनों के विरोध में किसान सड़कों पर थे। यही वजह है कि भाजपा ने इस जीत को कृषि कानूनों पर किसानों की मुहर बताया था।
इसी साल केरल में हुए निकाय चुनाव के नतीजे बीजेपी के लिए बहुत उत्साह भरे नहीं रहे। 2015 के मुकाबले तो बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया और 1236 से बढ़कर 1800 वार्डों में जीत दर्ज की लेकिन पार्टी ने 2500 का लक्ष्य रखा था जिसके काफी दूर रही। यही नहीं पार्टी के हाथ से 2015 में जीती गई 600 सीटें भी निकल गईं।
इसी साल सबसे चर्चित जम्मू-कश्मीर में जिला विकास परिषद (डीडीसी) के चुनाव रहे। राज्य में धारा 370 खत्म करने और केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद ये पहला मौका था जब चुनाव हो रहे थे। 280 सीटों पर हुए चुनाव में बीजेपी ने 74 सीटों पर कब्जा जमाया जबकि दूसरी प्रमुख पार्टियों के गठबंधन 'गुपकार' को 110 सीटें मिलीं थीं। बीजेपी के लिए ये जीत काफी हौसला बढ़ाने वाली रही क्योंकि एक तरफ जहां उसके सामने विपक्षी पार्टियां एकजुट थीं वहीं राज्य का दर्जा बदलने को लेकर लोगों के विरोध की भी आशंका थी लेकिन पार्टी ने साबित किया कि वह यूं ही नहीं चुनावी राजनीति की सुपर खिलाड़ी बनी हुई है।
ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव: क्या BJP के लिए दक्षिण का दूसरा दरवाजा खुल गया है ?