Rakesh Tikait: कभी जिन पर भरोसा नहीं था कैसे आंदोलन का सबसे बड़ा चेहरा बने ?
Rakesh Tikait BKU Leader: नई दिल्ली। दो महीने से दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर 28 जनवरी को एक ऐसा समय आया जब लगा कि किसान आंदोलन खत्म होने जा रहा है। लेकिन इसी दौरान भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत के आंसुओं ने पूरे आंदोलन में नया जोश भर दिया और देखते ही देखते राकेश टिकैत जो आंदोलन का हिस्सा थे इसका सबसे बड़ा चेहरा बन गए।
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टिकैत के आंसुओं ने फूंक दी जान
26 जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली में हिंसक घटनाओं और लाल किले की घटना के बाद दबाव में आए किसान नेताओं और आंदोलन में टिकैत के आंसुओं ने जान फूंक दी। शाम को मीडिया के सामने किसान भावुक हुए और रातों-रात ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हजारों किसान अपने ट्रैक्टर ट्राली और गाड़ियों पर बैठकर दिल्ली के लिए निकल लिए। इनमें से कुछ तो ऐसे थे जो सरकारी बसों में टिकट लेकर पहुंच रहे थे।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों खासतौर पर जाट बेल्ट ने किसानों राकेश टिकैत के आंसुओं को अस्मिता से जोड़ लिया। एक दिन बाद शुक्रवार को मुजफ्फरनगर में महापंचायत जुटी जिसमें हजारों लोग शामिल हुए। इसका नेतृत्व भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष और राकेश टिकैत के बड़े भाई नरेश टिकैत ने किया।
भाजपा से नजदीकियों को लेकर उठे सवाल
लेकिन राकेश टिकैत शुरुआत में इस आंदोलन का प्रमुख चेहरा नहीं रहे। नवम्बर में जब पंजाब और हरियाणा के किसान दिल्ली की तरफ कूच कर रहे थे तब भारतीय किसान यूनियन की स्थिति इस आंदोलन को लेकर बहुत स्पष्ट नहीं थी। इसकी वजह भी थी जो नरेश टिकैत के बीबीसी को दिए इंटरव्यू से समझी जा सकती है। महापंचायत के बाद दिए इस इंटरव्यू में नरेश टिकैत ने बताया था कि पश्चिमी यूपी के किसानों की प्रमुख समस्या गन्ना की है और यह आंदोलन प्रमुख रूप से धान गेहूं के किसानों की समस्या को लेकर है।
यही वजह है कि राकेश टिकैत थोड़ा देर में इस आंदोलन में शामिल हुए। उनके शामिल होने के दौरान भी कई शंकाएं जाहिर की गईं। उनकी भाजपा सरकार से नजदीकियों को लेकर भी सवाल उठे। 2018 में जब किसानों का जत्था दिल्ली के लिए निकला था लेकिन बाद में ये आंदोलन सरकार से बातचीत के बाद वापस हो गया था। तब राकेश टिकैत पर सरकार से समझौता कर लेने का आरोप लगा था।
यही नहीं जब 26 जनवरी की घटना के बाद किसान नेता वीएम सिंह ने अपना आंदोलन खत्म करने का ऐलान किया तो उन्होंने टिकैत को लेकर विरोध जाहिर किया था।
जब खत्म ही होने वाला था धरना
लेकिन राकेश टिकैत और किसान यूनियन कृषि वापसी के खिलाफ आंदोलन में शामिल हुई और सरकार के खिलाफ वे आवाज उठाने लगे। संयुक्त किसान मोर्चा के साथ सरकार से बातचीत करने वालों में भी शामिल रहे लेकिन तब तक राकेश टिकैत आंदोलन का हिस्सा ही रहे, प्रमुख चेहरा नहीं बन पाए थे।
26 जनवरी को जब दिल्ली में किसान आंदोलन के दौरान किसानों का एक जत्था लाल किले पर पहुंचा और उस जगह पर निशान साहिब फहरा दिया। इस घटना से किसान बैकफुट पर आ गए थे। दो किसान आंदोलनों ने आंदोलन खत्म करने का ऐलान कर दिया। भारतीय किसान यूनियन भी आंदोलन खत्म करने का मन बना चुकी थी। बीकेयू के अध्यक्ष नरेश टिकैत ने भी कह दिया था कि आंदोलन को गाजीपुर बॉर्डर से हटा लिया जाएगा। 28 जनवरी की शाम को गाजीपुर बॉर्डर पर राकेश टिकैत बस कुछ किसानों के साथ रह गए थे।
एक वीडियो ने बदल दी पूरी कहानी
कहा जाता है कि राकेश टिकैत पूरा मन बना चुके थे। भारी मात्रा में पुलिस बल पहुंच चुका था। राकेश टिकैत गिरफ्तारी देने को तैयार थे और इसके साथ ही गाजीपुर बॉर्डर खाली होने वाला था। इसी बीच राकेश टिकैत ने इंटरव्यू दिया और कैमरे के सामने ही रो पड़े। राकेश टिकैत कह रहे थे कि वह मन बना चुके थे लेकिन भाजपा के विधायक अपने गुंडों के साथ आकर वहां किसानों को धमकाने लगे। ये कहते-कहते टिकैत का गला भर आया। उन्होंने कह दिया कि गोली खा लेंगे पर यहां से नहीं हटेंगे। घंटे भी नहीं बीते थे कि राकेश टिकैत का रोते हुए वीडियो वायरल होने लगा। रात होते-होते राकेश टिकैत के गांव में भीड़ जमा होने लगी। पश्चिमी यूपी से हजारों किसान अपनी कार, ट्रैक्टर और बसों में चढ़कर दिल्ली के लिए रवान होने लगे थे।
अगले दिन मुजफ्फरनगर में एक बड़ी महापंचायत हुई जिसमें हजारों लोग शामिल हुए। इस महापंचायत ने टिकैत के आंदोलन को लोगों के समर्थन का सबूत दिया तो साथ ही राकेश टिकैत को अब इस आंदोलन का सबसे चेहरा भी साबित कर दिया।
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