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सरकार की फ़ैक्ट चेक टीम ने ख़ुद कब-कब फैलाई फ़ेक या भ्रामक ख़बरें?

पीआईबी के ज़रिए सरकार न्यूज़ को कैसे कंट्रोल कर सकती है और उसका ख़ुद का दामन कितना साफ़ है? इसी की पड़ताल इस स्टोरी में.

By BBC News हिन्दी
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फेक न्यूज़
Getty Images
फेक न्यूज़

कोई ख़बर फ़ेक है या नहीं? संभव है कि ये तय करने का काम भारत सरकार की सूचना देने वाली एजेंसी प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो यानी पीआईबी की फ़ैक्ट चेक टीम करेगी.

यानी पीआईबी ने अगर किसी ख़बर या कंटेंट को फ़ेक कहा तो उस ख़बर को सोशल मीडिया समेत सभी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से हटाया जाएगा.

सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट पर आईटी नियमों से जुड़े नए संशोधित मसौदे का प्रस्ताव साझा किया है.

ये नए नियम फिलहाल सिर्फ़ प्रस्ताव ही हैं लेकिन एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया समेत बुद्धिजीवियों ने इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर लगाम कसने की कोशिश बताकर अपनी आपत्ति दर्ज की है. वहीं, कांग्रेस ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं.

कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा, ''अगर मोदी सरकार ऑनलाइन न्यूज़ का फ़ैक्ट चेक करेगी तो केंद्र सरकार का फ़ैक्ट चेक कौन करेगा?''

https://twitter.com/IndEditorsGuild/status/1615711018986110976

इस मसौदे में मुख्य तौर पर मीडिया, सोशल मीडिया और वीडियो गेम्स से संबंधित नियमों पर प्रस्ताव पेश किए गए हैं. इस कहानी में ये समझने की कोशिश करेंगे कि इस प्रस्ताव की ख़ास बातें और इसके ख़तरे क्या हैं?

साथ ही अतीत में कब-कब पीआईबी फ़ैक्ट चेक टीम ने किसी आलोचना को फ़ेक न्यूज़ बताया या कई बार ख़ुद फ़ेक या भ्रामक ख़बरें फैलाने में शामिल रहा.

प्रस्ताव में क्या-क्या है?

  • PIB ने किसी ख़बर को फ़ेक कहा तो वो ख़बर हटानी होगी
  • सरकार से संबंधित संस्था ने किसी को भ्रामक कहा तो वो कंटेंट ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से हटेगा
  • PIB ने फ़ेक न्यूज़ कहा तो इंटरनेट प्रोवाइडर्स को भी हटाना होगा लिंक
  • ऐसी न्यूज़ फ़ेसबुक, ट्विटर, यू-ट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर भी नहीं दिखेगी
  • जानकारों के मुताबिक़, जो ताकत पीआईबी को दी जा रही है, वो अब तक आईटी एक्ट 2000 की धारा 69A के तहत आती है
  • प्रस्ताव में इसकी स्पष्टता नहीं कि फ़ेक किसे माना जाएगा और किसे नहीं?

इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन ने इस मसौदे पर अपनी आपत्ति जताई है.

पीआईबी ने ख़ुद कब-कब फैलाई फ़ेक न्यूज़?

पीआईबी फ़ैक्ट चेक टीम 2019 में बनाई गई थी. मकसद था- सरकार, मंत्रालयों, विभागों और योजनाओं से जुड़ी ख़बरों की पड़ताल या सही जानकारी मुहैया करवाना.

अगर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर नज़र दौड़ाएंगे तो आप पाएंगे कि सरकार से जुड़ी किसी 'गलत' या 'भ्रामक' सूचना को फ़ेक बताने का काम पीआईबी फ़ैक्ट चेक टीम करती रही है. हालांकि कोई तथ्य कैसे और क्यों ग़लत है, इसके बारे में पीआईबी फ़ैक्ट चेक टीम विस्तार से कुछ नहीं बताती है. कुछ मौक़ों पर वॉट्सऐप फॉरवर्ड मैसेज को भी फ़ेक या भ्रामक टीम की ओर से सोशल मीडिया पर बताया गया है.

कई बार ऐसे मौक़े भी रहे, जब फ़ैक्ट चेक टीम ख़ुद फ़ेक न्यूज़ या गलत, भ्रामक सूचनाएं साझा करती दिखीं.

उदाहरण के लिए:-

1. साल 2020 में पीआईबी ने इंटेलिजेंस ब्यूरो के एक रिक्रूटमेंट नोटिस को फ़ेक बता दिया था. बाद में इस सही न्यूज़ को फ़ेक बताने का 'फैक्ट चेक' करने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की पब्लिकेशन डिविजन आगे आई और बताया कि भर्ती का नोटिस सही है.

2. जून 2020 में पीआईबी फैक्ट चेक टीम ने एक ट्वीट किया. इसमें कहा गया, ''सोशल मीडिया पर वायरल एक संदेश में एसटीएफ की ओर से कुछ ऐप का इस्तेमाल नहीं किए जाने का दावा किया जा रहा है. ख़बर झूठी है, एसटीएफ ने ऐसी कोई एडवाइजरी जारी नहीं की है.''

पीआईबी फैक्ट चेक टीम ने एडवाइज़री के ऊपर फ़ेक न्यूज़ लिखकर उसे ग़लत बताया. जबकि ये एडवाइज़री सही थी. यूपी के एडीजी प्रशांत कुमार का इस बारे में बयान भी था. प्रशांत कुमार ने कहा था, ''ऐसे सॉफ्टवेयर जिनके दुरुपयोग की संभावना है. सुरक्षा के तौर पर हम ये सावधानी बरतते हैं कि सिर्फ़ वो ऐप्स फ़ोन में रखें जो सुरक्षित हों.''

https://twitter.com/PIBFactCheck/status/1273901468622319616

इस ट्वीट पर सैकड़ों लोगों ने प्रतिक्रिया देते हुए बताया कि पीआईबी फ़ैक्ट चेक टीम से ग़लती हुई है. इस ट्वीट को पोस्ट किए जाने के लगभग ढाई साल बाद भी आज ये ट्वीट जस का तस है और न ही इसे डिलीट किया गया है और न ही किसी तरह की सफाई पेश की गई.

3. 2020 में कोरोना के दौर में श्रमिक ट्रेनों में हुई मौतों को लेकर भी जब रिपोर्ट्स हुईं तो पीआईबी फ़ैक्ट चेक ने बिना किसी तथ्य मुहैया कराए इन रिपोर्ट्स को फ़ेक बताया या रेलवे की सफ़ाई को साझा किया.

हालांकि जब अल्ट न्यूज़ जैसी फ़ैक्ट चेक वेबसाइट्स ने मृतकों के परिवारों से बात की तो कुछ और ही कहानी पता चली.

ऐसा ही एक मामला इरशाद से जुड़ा था. चार साल के एक बच्चे इरशाद की दूध ना मिलने से मौत के मामले में बच्चे के पिता ने बताया कि बच्चा स्वस्थ हाल में था और ट्रेन ऐसी जगह रुक रही थी, जहां खाने पीने के लिए कुछ नहीं मिल रहा था. मुज़फ़्फ़रपुर जब ट्रेन पहुंची और वहां से बाहर निकलने के इंतज़ार में ही इरशाद की मौत हो गई.

इस मामले में रेलवे ने ये कहा था कि बच्चा पहले से बीमार था. ऐसे में ये सवाल है कि जब रेलवे स्क्रीनिंग और टेस्ट के बिना लोगों को ट्रेन की यात्रा करने नहीं दे रहा था, तब पहले से बीमार बच्चे को ट्रेन में कैसे जाने दिया गया?

साल 2020 में ये इकलौता मामला नहीं था, जब पीआईबी की ओर से सरकार के नैरेटिव में अखरती ख़बरों को ग़लत या फ़ेक बताया गया.

4. 'पोषण स्कीम के लिए आधार कार्ड ज़रूरी होगा.' रिपोर्टर्स कलेक्टिव के लिए पत्रकार तपस्या ने ये ख़बर की. ख़बर के मुताबिक़, दस्तावेज़ों के आधार पर ये पता चलता है कि बच्चों को पोषण स्कीम का फ़ायदा लेने के लिए आधार कार्ड ज़रूरी होगा और सरकार इस दिशा में काम कर रही है.

ज़ाहिर है कि इस कहानी में सरकार की आलोचना थी. पीआईबी फैक्ट चेक टीम ने इसे फ़ेक बताया और कहा कि बच्चों का आधार कार्ड ज़रूरी नहीं है. हालांकि कोई दस्तावेज़ मुहैया नहीं करवाए गए.

https://twitter.com/tapasya_umm/status/1615914473730240513

पत्रकार तपस्या ने इस बारे में आरटीआई दायर की और ये पता चला कि अगस्त 2022 में गाइडलाइंस जारी की गई थीं कि बच्चों के लिए आधार कार्ड ज़रूरी नहीं है. लेकिन यहां दिलचस्प ये है कि तपस्या की कहानी जून 2022 में छपी थी और ये कहानी मार्च 2022 की गाइडलाइंस पर आधारित थी.

यानी जब पीआईबी ने ख़बर को फ़ेक बताया, तब गाइडलाइंस वही थीं जो ख़बर में लिखा गया था.

पीआईबी की बढ़ती भूमिका मीडिया के लिए ख़तरा क्यों?

मीडिया के लिए पीआईबी की बढ़ती ताकत ख़तरा क्यों है, इसे मीडिया में छपी ख़बरों पर पीआईबी की प्रतिक्रियाओं के ज़रिए भी समझते हैं.

अप्रैल 2020 में कैरेवन मैगज़ीन ने रिपोर्ट किया कि बड़े फैसले लेने से पहले ICMR की बनाई कोविड टास्क फोर्स से मोदी प्रशासन ने कोई सलाह नहीं की और न ही कोई मुलाक़ात हुई.

इस रिपोर्ट को ICMR ने ग़लत बताते हुए कहा कि 14 बार मुलाकात हुई और फैसले लेते वक़्त टास्क फोर्स से सलाह भी ली गई.

https://twitter.com/PIBFactCheck/status/1250343512123400194

इस ट्वीट पर पीआईबी फेक्ट चेक टीम की प्रतिक्रिया आई और इस कैरेवन की ख़बर को फ़ेक और आधारहीन बताया गया. हालांकि ख़बर को लिखने वाली रिपोर्टर ने जब मिनट्स ऑफ मीटिंग यानी मीटिंग में क्या बात हुई, जैसी जानकारी मांगी तो किसी भी संस्था की ओर से कोई जानकारी मुहैया नहीं करवाई गई.

ऐसे ही कई मौक़ों पर कई न्यूज़ वेबसाइट्स की ख़बरों को पीआईबी की ओर से फ़ेक या भ्रामक बताया गया. जबकि वो ख़बरें सरकार की ओलचना करती हुई थीं या सूत्रों के हवाले से बातों को सामने लाने की कोशिश कर रही थीं.

इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के पॉलिसी डायरेक्टर प्रतीक वाघरे ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ''ये मसौदा ये कहता है कि अगर पीआईबी या किसी सरकार से मान्यता प्राप्त एजेंसी ने किसी कंटेंट को फ़ेक कहा तो वो कंटेंट इंटरनेट से हटाना ज़रूरी रहेगा. ये ज़िम्मेदारी सर्विस और इंटरनेट प्रोवाइडर की रहेगी. ये ख़तरनाक इसलिए है कि अगर सरकार को कोई भी ख़बर मन मुताबिक नहीं लगती है तो वो पीआईबी की ओर से फेक करार देते हुए हटाई जा सकती है.''

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English summary
fact check team of the government itself spread fake or misleading news?
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