मोदी सरकार के लाए इलेक्टोरल बांड से बीजेपी को बंपर फायदा- डाटा
नई दिल्ली: मोदी सरकार द्वारा शुरू किए गए इलेक्टोरल बांड से बीजेपी को सबसे अधिक फायदा हुआ है। आधिकारिक दस्तावेजों में इसका खुलासा हुआ है। चुनाव प्रचार में इस्तेमाल नकदी के प्रवाह को ट्रैक करने के लिए मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बांड जारी करने का फैसला लिया था। देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पिछले साल जनवरी में ससंद में कहा था कि इससे चुनाव में पारदर्शिता आएगी, जो पहले नहीं थी।
'चुनावी साल में इलेक्टोरल बांड में 62 फीसदी का इजाफा'
सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से मिली जानकारी के मुताबिक खुलासा हुआ कि पिछले एक साल में इलेक्टोरल बांड में 62 फीसदी की बढोतरी हुई है। साल 2018 में बैंक ने 1056 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बांड बेचे। वहीं इस साल जनवरी और मार्च में 1716 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बांड बेचे है। गौरतलब है कि देश में लोकसभा चुनाव की तैयारियां चल रही है।
'बीजेपी को सबसे अधिक फायदा'
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR)जो एक गैर सरकारी संगठन(एनजीओ) है और चुनाव पर नजर रखता है। उसने देश की अलग-अलग पार्टियों की ओर से चुनाव आयोग को सौंपे गए टैक्स की जानकारी का विश्लेषण किया।इस रिपोर्ट के मुताबिक इलेक्टोरल बांड जारी होने का सबसे अधिक फायदा राष्ट्रीय पार्टियों को हुआ है। इसक सबसे बड़ा फायदा बीजेपी को हुआ है और उसके हिस्सेदारी सबसे अधिक है।
एडीआर ने इलेक्टोरल बांड को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के संस्थापक त्रिलोचन शास्त्री ने इलेक्टोरल बांड पर सवाल उठाते हुए कहा कि इस कौन फाइनेंस कर रहा है। समस्या ये है कि इसमें कुछ अमीर लोग और कॉरपोरेट हाउस फंडिंग कर रहे हैं। ऐसे में सरकार जनता की जगह उनके फायदे के लिए काम करती है जो उन्हें ये फंड देते हैं। ये लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है। एडीआर ने इलेक्टोरल बांड सिस्टम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है। चुनाव आयोग ने भी इलेक्टोरल बॉन्ड जैसी अज्ञात बैंकिंग व्यवस्था के जरिए राजनीतिक फंडिंग को लेकर संदेह जाहिर किया है। लेकिन केंद्र सरकार का कहना है कि इलेक्टोरल बांड लाने का उद्देश्य अधिकतम पारदर्शिता सुनिश्चित करना है और देश की राजनीति में बेहिसाब पैसे के प्रवाह को रोकना है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में 5 अप्रैल को सुनवाई होनी है।