बेटी की गिफ्ट की हुई कार में सालों तक चलती रहीं द्रौपदी मुर्मू, भाई ने बताई खास बातें
नई दिल्ली, 18 जुलाई: द्रौपदी मुर्मू को एनडीए राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया है। सोमवार को राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हो रहा है। द्रौपदी मुर्मू भारत की सबसे कम उम्र की राष्ट्रपति और पद संभालने वाली पहली आदिवासी महिला बनने वाली हैं। मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से उनका ओडिशा स्थित उनके गांव के लोग बहुत खुश है। वहीं मुर्मू का परिवार के सदस्य भी बहुत खुश हैं।
अभी
भी
अपने
पुराने
घर
में
ही
रह
रहीं
मुर्मू
उड़ीसा
के
मयूरभंज
जिले
के
रायरंगपुर
में
रहने
वाली
मुर्मू
स्वभाव
के
साथ-साथ
रहन-सहन
के
मामले
भी
बहुत
सरल
हैं।
64
वर्षीय
पूर्व
राज्यपाल
रायरंगपुर
में
अपने
छोटे
भाई
और
भाई
की
पत्नी
के
साथ
1990
के
दशक
से
उसी
पांच
कमरे
के
घर
में
रह
रही
हैं
जिसे
उनके
पति
ने
बनवाया
था।वह
झारखंड
की
राज्यपाल
के
पद
से
सेवानिवृत्त
होने
के
बाद
फिर
उसी
घर
में
लौटीं
अपने
परिवार
के
साथ
रह
रही
थीं
।
सोचिए हम सब कितने खुश होंगे
द्रौपदी मुर्मू के भाई तरनीसेन टुडू ने मीडिया को दिए इंटरव्यू में कहा "मेरे पास यह बताने के लिए शब्द नहीं हैं कि हम कितने गर्व और खुश हैं कि वह पहली नागरिक बन रही हैं।""संथाल जनजाति की पहली महिला होगी भारत की पहली नागरिक। सोचिए हम सब कितने खुश होंगे..."
सालों
तक
अपनी
बेटी
की
गिफ्त
करती
रही
मुर्म
द्रौपदी
मुर्मू
के
भाई
तरनीसेन
टुडू
ने
बताया
मैंने
अपनी
बहन
को
एक
विधायक,
मंत्री
और
राज्यपाल
के
रूप
में
अपने
पूरे
करियर
में
दशकों
तक
कायमयाबी
हासिल
करते
देखा
है।
मेरी
बहन
मुर्मू
बहुत
ही
सरल
हैं
उन्होंने
सालों
तक
उसी
कार
का
इस्तेमाल
किया
है
जिसे
उसकी
बेटी
ने
उसे
उपहार
में
दी
थी।
मुर्मू
के
जीवन
में
योग
और
अनुशासन
बहुत
अहम
है
टुडू
ने
कहा
वह
बहुत
सरल
है।
उसे
उसकी
सादगी
से
परिभाषित
किया
जाता
है।
वह
जल्दी
उठती
है,
ध्यान
करती
है,
सुबह
की
सैर
के
लिए
जाती
है
और
योग
करती
है।
पति और बेटों को खोने के बाद दिखाई हिम्मत
पड़ोसियों का कहना है कि द्रौपदी मुर्मू ने अपने पति और दो जवान बेटों को खो दिया, जिसकी उम्र 21 और 25 साल थी लेकिन उन्होंने अपनी निजी जिंदगी में आए तूफान को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया।
वह
हमेशा
बहुत
जिद्दी
थी
एक
पड़ोसी
ने
कहा
वह
हमेशा
बहुत
जिद्दी
थी।
उनके
स्टाफ
का
एक
सदस्य
प्यार
से
उन्हें
"लद्दाकू
(जुझारू)"
कहता
है।
प्रदीप
कुमार
राउत
ने
कहा
"वह
कभी
भी
पीछे
हटने
वाली
नहीं
हैं।
यही
वजह
है
कि
वह
अपने
भारी
नुकसान
के
बावजूद
मजबूत
बनी
रही।
उन्होंने
बताया
ब्रह्माकुमारियों
के
ध्यान
और
मार्गदर्शन
ने
उन्हें
अपने
दुख
से
उबरने
में
मदद
की।उन्होंने
यह
भी
याद
किया
कि,
जब
एक
नगर
पार्षद
बनी
तो
मुर्मू
ने
क्षेत्र
में
जाकर
सफाई
की
निगरानी
की
थी।