तीन तलाक के बाद अब ईसाई समुदाय में तलाक पर चर्चा
सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर फैसला देते हुए कहा है कि चर्च के पास तलाक पर फैसला देने का अधिकार नहीं है। कोर्ट के मुताबिक सिर्फ अदालतें ही ये फैसले कर सकती हैं।
नई दिल्ली। पिछले कुछ दिनों से भारत के मुसलमानों के एक बड़े तबके में प्रचलित तीन तलाक पर लगातार चर्चा हो रही है, कुछ लोग इसका समर्थन कर रहे हैं तो कुछ विरोध। इसको लेकर सरकार, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और कई महिला संगठन अपनी-अपनी राय रखते रहे हैं। अब मुस्लिमों के साथ-साथ भारत के एक दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय ईसाईयों में तलाक को लेकर भी चर्चा है। सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर फैसला देते हुए कहा है कि चर्च के पास तलाक पर फैसला देने का अधिकार नहीं है। कोर्ट के मुताबिक सिर्फ अदालतें ही ये फैसले कर सकती हैं।
इस फैसले के बाद बीबीसी ने एक रिपोर्ट दी है। जिसमें भारत के कैथोलिक ईसाई समुदाय में तलाक कैसे दिया जाता है, इसको लेकर बताया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, 'कैथोलिक चर्च' तलाक को सही नहीं मानती और पति-पत्नी के रिश्ते को टूटने से बचाने की हरसंभव कोशिश करती है। अगर मिया-बीवी के बीच ऐसे हालात बन जाएं कि वो साथ रहने को कतई राजी ना हों तो चर्च तलाक (शादी रद्द करने) का तरीका बताती है। ये तरीका कुछ हद तक इस्लाम में प्रचलित तलाक के तरीके से मिलता हुआ सा लगता हैं।
चर्च
तलाक
नहीं
देता,
शादी
रद्द
करता
है
चर्च
के
पास
कोई
पति-पत्नी
तलाक
के
लिए
आते
हैं
तो
चर्च
सबसे
पहले
बातचीत
के
जरिए
उनमें
सुलह
की
कोशिश
करता
है।
पति-पत्नी
के
ना
मानने
पर
दोनों
को
छह
महीने
से
एक
साल
के
लिए
अलग
रहने
को
कहा
जाता
है।
फिर
भी
दोनों
साथ
रहने
के
लिए
तैयार
ना
हों
तो
चर्च
इस
पर
सुनवाई
करती
है।
सुनवाई
के
दौरान
घरेलू
हिंसा,
व्यभिचार,
दो
धर्मों
के
बीच
हुई
शादी
में
धर्म
का
पालन
ना
करने
दिया
जाना,
बिना
रजामंदी
के
हुई
शादी,
या
शादी
को
शारीरिक
संबंध
बनाकर
मुकम्मल
ना
किया
जाना
जैसे
मामलों
पर
ध्यान
देती
है
और
इन्हें
शादी
खत्म
करने
के
लिए
वाजिब
वजह
मानती
है।
कैथोलिक चर्च देश के कानून के मुताबिक चलती है। तलाक के लिए भी चर्च, अदालत में दिए तलाक को ही सही मानती है। चर्च में तलाक लिया भी नहीं जा सकता, सिर्फ शादी रद्द की जा सकती है। चर्च में दूसरी शादी करने के लिए पहली शादी का कानून की नजर में खत्म होना जरूरी है। साथ ही पहली शादी का चर्च में रद्द किया जाना भी जरूरी है। कानूनी तलाक और चर्च में पहली शादी रद्द होने के बाद ही चर्च में दूसरी शादी हो सकती है। अगर ईसाई धर्म का व्यक्ति दूसरी शादी चर्च में ना करना चाहे (अदालत में करना चाहे) तो पहली शादी चर्च में रद्द करवाना अनिवार्य नहीं है।
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