15 साल बाद कांग्रेस का एक और किला ढहा, BJP का 'कमल' खिला
दीव, 9 मई: कांग्रेस का एक और मजबूत किला ढह गया है। जहां पार्टी पिछले तीन चुनावों से लगातार भाजपा को धूल चटाते आ रही थी, वहां उसके लगभग सारे चुने हुए प्रतिनिधि एक ही बार में बीजेपी में शामिल हो गए हैं। कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व लगातार पार्टी संगठन को मजबूत करने और उसमें जान फूंकने के लिए कोशिशों में जुटा हुआ है। लेकिन, लगता नहीं है कि जमीनी हालात बेहतर हो पा रहे हैं। इस बार कांग्रेस को जहां इतना तगड़ा झटका लगा है, वह भारतीय जनता पार्टी की प्रयोगशाला कहलाने वाले गुजरात के बगल का इलाका है। अगले महीने ही वहां वोटरों को वोट भी डालने हैं, लेकिन उससे पहले ही कांग्रेस के अधिकतर पार्षद बीजेपी में चले गए हैं।
दीव नगर परिषद से कांग्रेस सत्ता से बेदखल
कांग्रेस ने 15 साल तक एकतरफा राज करने के बाद दीव नगर परिषद की सत्ता भी गंवा दी है। दादर और नगर हवेली और दमन और दीव प्रशासन की ओर से कांग्रेस शासित दीव नगर परिषद के अध्यक्ष के निलंबन के करीब 6 महीने के भीतर ही, पार्टी पूरी तरह से बिखर गई और कांग्रेस के 9 में से 7 पार्षदों ने शनिवार को भारतीय जनता पार्टी का कमल थाम लिया है। इसके साथ ही कांग्रेस यहां अल्पमत में आ गई है। यहां वह लगातार तीन बार से चुनाव जीत रही थी, लेकिन चुनावों के कुछ ही महीने पहले पार्टी के पार्षद डूबते जहाज की तरह कांग्रेस को छोड़कर भाग निकले हैं।
कांग्रेस के 9 में से 7 पार्षद बीजेपी में शामिल
दीव के घोघला में आयोजित एक सार्वजनिक बैठक में कांग्रेस के सात पार्षदों- हरेश कपाड़िया, दिनेश कपाड़िया, रवींद्र सोलंकी, रंजन राजू वानकर, भाग्यवंती सोलंकी, भावनागा दुधमल और निकिता शाह औपचारिक तौर पर बीजेपी में शामिल हो गए। उन्हें बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव विजय राहटकर ने ज्वाइन करवाया, जो कि दादर और नगर हवेली और दमन और दीव के पार्टी प्रभारी भी हैं। भाग्यवंती सोलंकी के बीमार होने की वजह से उनके पति चुन्नीलाल ने उनकी तरफ से बीजेपी के समर्थन का ऐलान किया, जबकि उन्होंने खुद भी भाजपा ज्वाइन की है। रवींद्र सोलंकी, हितेश सोलंकी के चचेरे भाई हैं, जिन्हें पिछले साल 18 दिसंबर को यूटी प्रशासन ने दीव नगर परिषद के प्रेसिडेंट के पद से निलंबित कर दिया था। कांग्रेस के इन सातों पार्षदों के साथ उनके दर्जनों समर्थक भी बीजेपी में शामिल हो गए हैं।
विकास की राजनीति का समर्थन-बीजेपी
गुजरात से सटे केंद्र शासित प्रदेश में यह बदलाव नगर परिषद बोर्ड के आम चुनाव से लगभग महीने भर पहले हुआ है। इस राजनीतिक घटनाक्रम के बारे में राहटकर ने कहा, 'आज, 6 कांग्रेस पार्षद बीजेपी में शामिल हो गए...अब कांग्रेस के पास लगभग कोई पार्षद नहीं बच गया है। ये पार्षद बीजेपी में यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विकास की राजनीति को समर्थन देने के लिए शामिल हुए हैं। आज कांग्रेस पूरे देश से गायब हो रही है और दीव से पूरी तरह से गायब हो गई है।' उन्होंने कहा कि 'कांग्रेस के नगर परिषद अध्यक्ष लोगों की उम्मीदों पर नहीं उतर सके और सभी पार्षदों ने बीजेपी का दामन थाम लिया। '
15 साल से दीव नगर परिषद पर कांग्रेस का कब्जा था
इस केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक अभी प्रफुल्ल पटेल हैं, जो कि भाजपा नेता रहे हैं और गुजरात में गृह राज्यमंत्री भी रह चुके हैं। उन्होंने हितेश सोलंकी को सीबीआई की ओर से आय से अधिक संपत्ति का केस दर्ज होने के बाद निलंबित कर दिया था। यूटी प्रशासन की दलील थी कि सोलंकी अगर पद पर बने रहेंगे तो इससे उस पद की गरिमा को ठेस लगेगी और निष्पक्ष सुनवाई में बाधा खड़ी होगी। दीव गुजरात के उना के तट पर स्थित एक छोटा सा नगर निकाय है। कांग्रेस यहां पर परिषद चुनाव 2007, 2012 और 2017 में लगातार जीत चुकी है और हितेश पटेल 2012 से इस नगर निकाय के अध्यक्ष थे।
दीव में भाजपा को मिल गया बहुमत
2017 के नगर निकाय चुनाव में कांग्रेस ने यहां की 13 में 10 सीटें जीतकर विजय का डंका बजाया था; और बीजेपी सिर्फ 3 सीटें ही जीत पाई थी। लेकिन, कांग्रेस के 7 पार्षदों के पार्टी बदलने से सबसे पुराने दल के पास सिर्फ दो ही पार्षद बच गए हैं, जबकि सदन में भाजपा का आंकड़ा 10 पहुंच गया है और वह बहुमत में आ गई है। अब सदन में सिर्फ हितेश सोलंकी और उनके भाई जीतेंद्र सोलंकी ही कांग्रेस का झंडा उठाने वाले रह गए हैं। कांग्रेस के एक और पार्षद मनसुख पटेल का पिछले साल नवंबर में निधन हो गया था। वह इस निकाय के उपाध्यक्ष थे।
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यूटी प्रशासक पर कांग्रेस ने दबाव डालने का आरोप लगाया
इस बीच हितेश सोलंकी ने प्रफुल्ल पटेल पर आरोप लगाया है कि उन्हीं के दबाव की वजह से कांग्रेस पार्षदों ने पाला बदला है। उनके मुताबिक, '2017 में जब से वे एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त हुए हैं, दीव की राजनीति बदल गई है। पार्षदों ने मुझे बताया है कि उनपर पार्टी बदलने का दबाव था या फिर परिणाम भुगतना पड़ता। उन्होंने मुझसे कहा कि उनके पास प्रशासक और बीजेपी से उस तरह से लड़ने की क्षमता नहीं है, जैसा कि मैं लड़ रहा हूं और ऐसी स्थिति में उनके पास बीजेपी में जाने के अलावा कुछ नहीं बचा था।' उन्होंने आरोप लगाया कि दीव के लोगों को अपनी इच्छा जाहिर करने का नगर परिषद ही एक साधन है, लेकिन अब उसे भी बंद कर दिया गया है। (तस्वीरें- फाइल और प्रतीकात्मक)