विवेचना: तंदूर हत्याकांड का क़ातिल सुशील शर्मा जो बन गया पुजारी
3 जुलाई, 1995. रात का एक बज चुका था. अतिरिक्त पुलिस आयुक्त मैक्सवेल परेरा के फ़ोन की घंटी बजी. दूसरे छोर पर उप पुलिस आयुक्त आदित्य आर्य थे.
उन्होंने पहले तो देर रात फ़ोन करने के लिए माफ़ी मांगी और फिर बताया कि एक तंदूर में एक शव को जलाने की कोशिश की गई है.
परेरा को माजरा समझने में कुछ समय लगा. उन्होंने आर्य पर सवालों की बौछार कर दी,
3 जुलाई, 1995. रात का एक बज चुका था. अतिरिक्त पुलिस आयुक्त मैक्सवेल परेरा के फ़ोन की घंटी बजी. दूसरे छोर पर उप पुलिस आयुक्त आदित्य आर्य थे.
उन्होंने पहले तो देर रात फ़ोन करने के लिए माफ़ी मांगी और फिर बताया कि एक तंदूर में एक शव को जलाने की कोशिश की गई है.
परेरा को माजरा समझने में कुछ समय लगा. उन्होंने आर्य पर सवालों की बौछार कर दी, 'क्या? आप होश में तो हैं? किसका शव? कहाँ? आप कहाँ हैं इस समय?'
आर्य ने जवाब दिया, "मैं इस समय अशोक यात्री निवास होटल में हूँ. यहाँ पर एक रेस्तराँ है बगिया. ये होटल के मुख्य भवन में न हो कर बगीचे में है. मैं वहीं से बोल रहा हूँ. आप शायद फ़ौरन मौके पर आना चाहेंगे?"
जब मैक्सवेल परेरा अशोक यात्री निवास पहुंचे तो कनॉट प्लेस थाने के एसएचओ निरंजन सिंह, नैना साहनी की लाश का पंचनामा करवा रहे थे.
मक्खन के चार स्लैब
परेरा बताते हैं, "नैना साहनी की बुरी तरह से जली हुई लाश बगिया के किचन के फ़र्श पर पड़ी हुई थी. उसको एक कपड़े से ढका गया था. बगिया रेस्तराँ के मैनेजर केशव कुमार को पुलिस वालों ने पकड़ रखा था."
नैना के शरीर का मुख्य हिस्सा जल चुका था. सिर्फ़ आग नैना के जूड़े को पूरी तरह से नहीं जला पाई थी. आग की गर्मी की वजह से उनकी अतड़ियाँ पेट फाड़ कर बाहर आ गई थीं. अगर लाश आधे घंटे और जलती तो कुछ भी शेष नहीं रहता और हमें जाँच करने में बहुत मुश्किल आती."
जब नैना साहनी का शव जलाने में दिक्कत आई तो सुशील शर्मा ने बगिया के मैनेजर केशव को मक्खन के चार स्लैब लाने के लिए भेजा.
उस समय कनॉट प्लेस थाने के एसएचओ निरंजन सिंह बताते हैं, "नैना साहनी के शव को तंदूर के अंदर रख कर नहीं बल्कि तंदूर के ऊपर रख कर जलाया जा रहा था, जैसे चिता को जलाते हैं."
कॉन्स्टेबल कुंजू ने सबसे पहले जली लाश देखी. उस रात 11 बजे कांस्टेबिल अब्दुल नज़ीर कुंजू और होमगार्ड चंदर पाल जनपथ पर गश्त लगा रहे थे.
आग की लपटें और धुआं
वो ग़लती से अपना वायरलेस सेट पुलिस चौकी पर ही छोड़ आए थे. तभी उन्हें अशोक यात्री निवास के प्रांगण से आग की लपटें और धुआं उठता दिखाई दिया.
इस समय केरल के शहर कोल्लम में रह रहे अब्दुल नज़ीर कुंजू याद करते हैं, "आग देख कर जब मैं बगिया रेस्तराँ के गेट पर पहुंचा तो मैंने देखा कि सुशील शर्मा वहाँ खड़ा था और उसने गेट को कनात से घेर रखा था. जब मैंने आग का कारण पूछा तो केशव ने जवाब दिया कि वो लोग पार्टी के पुराने पोस्टर जला रहे थे."
"मैं आगे चला गया. लेकिन तभी मुझे लगने लगा कि कुछ गड़बड़ ज़रूर है. मैं बगिया रेस्तराँ के पीछे गया और सात-आठ फ़िट की दीवार फलांग कर अंदर आया. वहाँ केशव ने फिर मुझे रोकने की कोशिश की. जब मैं तंदूर के नज़दीक गया तो देखा कि वहाँ एक लाश जल रही थी."
"जब मैंने केशव की तरफ़ देखा तो उसने कहा कि वो बकरे को भून रहा है. जब मैंने उसे बल्ली से हिलाया तो पता चल गया कि वो बकरा नहीं एक महिला की लाश थी. मैंने तुरंत अपने एसएचओ को फ़ोन मिला कर इसकी सूचना दे दी."
सुशील शर्मा और नैना साहनी के बीच झगड़ा
अब सवाल उठता है कि सुशील शर्मा ने किन परिस्थितियों में नैना साहनी की हत्या की थी और हत्या से तुरंत पहले दोनों के बीच क्या-क्या हुआ था?
निरंजन सिंह बताते हैं, "सुशील शर्मा ने मुझे बताया था कि हत्या करने के बाद उसने पहले बॉडी को पहले पॉलीथिन में लपेटा, फिर चादर में रैप किया. लेकिन वो उसे उठा नहीं पाया, इसलिए उसे ड्रैग करके नीचे खड़ी अपनी मारुति कार तक लाया."
"उसने उसे कार की डिक्की में तो रख लिया, लेकिन उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि उसे ठिकाने किस तरह लगाना है. पहले उसने सोचा कि वो लाश को निज़ामुद्दीन ब्रिज के नीचे यमुना नदी में फेंक देगा."
"लेकिन बाद में उसने ये विचार बदल दिया कि कोई उसे ऐसा करते हुए देख न ले. उसे ख़्याल आया कि वो अपने ही रेस्तराँ में लाश को जलाकर सारे सबूत नष्ट कर दे. उसने सोचा कि उसे ऐसा करते हुए कोई देखेगा नहीं और डेड बॉडी को ठिकाने लगा दिया जाएगा."
दोनों के बीच मनमुटाव की वजह
निरंजन सिंह आगे बताते हैं, "सुशील शर्मा और नैना साहनी दोनों मंदिर मार्ग के फ़्लैट-8ए में मियाँ-बीबी की तरह रहते थे. लेकिन उन्होंने उस शादी को सब के लिए सामाजिक तौर पर उजागर नहीं किया था. नैना सुशील पर लगातार दबाव बना रही थी कि इस शादी को उजागर करो."
"इस बात से दोनों में मनमुटाव शुरू हो गए. ये बात भी सामने आई कि नैना ने सुशील की आदतों और अत्याचारों से तंग आ कर अपने पुराने मित्र मतलूब करीम से मदद की गुहार की. वो ऑस्ट्रेलिया जाना चाहती थी. मतलूब करीम ने उसके ऑस्ट्रेलिया जाने में जो भी मदद हो सकती थी, की."
"सुशील शर्मा को नैना साहनी पर शक हो गया. वो जब भी घर वापस आता था, वो घर के लैंड लाइन फ़ोन को चेक करता था कि उस दिन नैना की किस किस से बात हुई है. घटना के दिन जब सुशील ने अपने घर पर लगे फ़ोन को री-डायल किया तो दूसरे छोर पर मतलूब करीम ने फ़ोन उठाया."
"इससे इस बात की पुष्टि हो गई कि नैना अब भी मतलूब के संपर्क में है. सुशील को गुस्सा आ गया और उसने अपने लाइसेंसी रिवॉल्वर से नैना पर फ़ायर किया. जब मैं मौके पर पहुंचा तो जगह जगह ख़ून के निशान लगे हुए थे. रिवॉल्वर की एक गोली ने एसी के फ़्रेम में छेद कर दिया था."
सुशील ने पहली रात गुजरात भवन में गुज़ारी
सुशील शर्मा ने नैना की हत्या करने के बाद वो रात गुजरात भवन में गुजरात काडर के एक आईएएस अधिकारी डीके राव के साथ बिताई.
निरंजन सिंह बताते हैं, "हमें केशव से ये जानकारी मिल गई थी कि दिन में सुशील के दोस्त डीके राव उनसे मिलने आए थे और वो गुजरात भवन में ठहरे हुए हैं. ये जानकारी मिलने के बाद मैं गुजरात भवन गया. वहाँ के कर्मचारियों ने इस बात की पुष्टि की कि राव कमरा नंबर 20 में ठहरे हुए थे. उनके साथ एक गेस्ट भी ठहरे हुए थे."
"राव की सुबह पाँच बजे फ़्लाइट थी. वो कमरा छोड़ कर चले गए हैं और कुछ देर बाद उनका गेस्ट भी चला गया है. मैंने डीके राव से तुरंत ही फ़ोन से संपर्क किया. डीके राव ने बता दिया कि सुशील शर्मा रात में उनके ही पास था. उन्होंने ये भी बताया कि वो बहुत परेशान था."
"सुशील को नींद नहीं आ रही थी. वो बार-बार चादर ओढ़ लेता था. सुबह राव के जाने के बाद गुजरात भवन के कर्मचारियों ने सुशील को बेड टी भी सर्व की."
अग्रिम ज़मानत लेने में सफल
अगले दिन सुशील शर्मा पहले टैक्सी से जयपुर गया और फिर वहाँ से चेन्नई होते हुए बेंगलुरु पहुंचा.
मैक्सवेल परेरा याद करते हैं, "सुशील ने चेन्नई में अपने संपर्कों के ज़रिए एक वकील अनंत नारायण से संपर्क किया और अग्रिम ज़मानत के लिए अदालत में अर्ज़ी लगाई. इसके बाद वो अपना चेहरा बदलने के लिए तिरुपति चला गया और वहाँ पर अपने बाल कटवाने के बाद वापस चेन्नई आ गया."
"जब तक इस हत्या के बारे में पूरे भारत में हल्ला मच चुका था. लेकिन इसके बावजूद चेन्नई के जज ने उसे अग्रिम ज़मानत दे दी. मैंने एसीपी रंगनाथन को इस ज़मानत का विरोध करने के लिए चेन्नई भेजा. हम अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल केटीएस तुलसी को भी चेन्नई ले गए."
"जैसे ही सुशील को हमारे प्रयासों के बारे में पता चला, वो सरेंडर करने के लिए अपने वकील के साथ बेंगलुरु चला गया. हमें इसकी ख़बर पीटीआई से मिली. मैंने खुद बेंगलुरु जाने का फ़ैसला लिया. उसकी दो वजहें थी. एक तो मैं खुद कर्नाटक का रहने वाला था और दूसरे मैंने कानून की पढ़ाई भी कर रखी थी."
"मैं अपने साथ निरंजन सिंह और क्राइम ब्रांच के राज महेंदर को भी ले गया. वहाँ से हम लोग सुशील की कस्टडी ले कर वापस दिल्ली आए."
केशव पर दबाव की कोशिश
इस पूरे मामले में बगिया रेस्तराँ का मैनेजर केशव कुमार सुशील शर्मा के साथ खड़ा नज़र आया.
उसने पहले तो अप्रूवर बनने से ये कहते हुए इंकार कर दिया कि सुशील के उस पर बहुत एहसान हैं. बाद में जब वो अप्रूवर बनने के लिए तेयार भी हुआ तो सुशील शर्मा ने उस पर ऐसा न करने के लिए दबाव बनाया.
निरंजन सिंह बताते हैं, "केशव और सुशील दोनों ही तिहाड़ जेल में बंद थे. पहले तो केशव सुशील शर्मा के लिए बहुत वफ़ादार था. लेकिन धीरे-धीरे जब उसने अप्रूवर बनने का मन बना लिया और सुशील को इस बात की ख़बर लगी, जब सुशील ने केशव को तिहाड़ जेल के अंदर ही डराना धमकाना शुरू किया."
"एक घटना केशव ने मुझे अपनी पेशी के दौरान बताई कि उसे जेल में ही कोई नशीली दवाई दे दी गई. जब वो डेढ़- दो दिन तक नींद से ही नहीं उठा, तब जेल वॉर्डन को पता चला कि उसने डेढ़-दो दिनों से खाना भी नहीं खाया है. उसी दिन केशव को उस वॉर्ड से हटा कर दूसरे वॉर्ड में भेज दिया गया."
"केशव के मुताबिक ये काम सुशील शर्मा ने अपने आदमियों से करवाया था."
गृह सचिव ने किया मौके का निरीक्षण
इस पूरे मामले में पुलिस के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी सुशील शर्मा को अपने राजनीतिक संपर्क न इस्तेमाल करने देना. मामला इतना हाई प्रोफ़ाइल हो गया कि जाँच के दौरान भारत के तत्कालीन गृह सचिव पद्मनाभैया खुद सुशील शर्मा और नैना साहनी के मंदिर मार्ग वाले फ़्लैट का मुआयना करने पहुंचे.
मैक्सवेल परेरा बताते हैं, "ऐसी भी ख़बरें आ रही थीं कि नैना के कुछ वरिष्ठ राजनीतिज्ञों से कथित रूप से संबंध थे. उस ज़माने में हमारे प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव हुआ करते थे. वो शायद इस बात से घबरा गए. उन्होंने इंटेलिजेंस ब्यूरो से उनके ऊपर जाँच बैठा दी."
"राजनेताओं ने घबरा कर ग़लत-सलत बयान देने शुरू कर दिए. किसी ने कहा मैंने कभी नैना साहनी को देखा ही नहीं. दूसरे ने फ़र्माया, जब से मैंने दूसरी शादी की है, मैंने किसी महिला की तरफ़ नज़र उठा कर भी नहीं देखा."
डीएनए और स्कल सुपर-इंपोज़ीशन का इस्तेमाल
मैक्सवेल परेरा ने बताया, "राव ने गृह मंत्री एसबी चव्हाण से कहा कि वो इस मामले को खुद देखें. उन्होंने गृह सचिव पद्मनाभैया को निर्देश दिए कि वो खुद जा कर इस मामले को मॉनीटर करें. पद्मनाभैया खुद सुशील शर्मा और नैना साहनी के फ़्लैट पहुंच गए."
"अख़बारों ने इस घटना को ख़ूब चटख़ारे ले कर छापा. हमें भी आदेश मिल गए कि हम इस मामले पर किसी के सामने अपना मुंह न खोलें."
इस जाँच में पहली बार डीएनए और स्कल इमेजिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया.
परेरा बताते हैं, "उस ज़माने में माशेलकर साहब विज्ञान और तकनीक मंत्रालय में सचिव हुआ करते थे. मैंने उनसे बात की. उन्होंने हैदराबाद के सेंटर फ़ॉर मॉलीकुलर बायोलॉजी के डॉक्टर लालजी सिंह को भेजा."
फांसी की सज़ा उम्र कैद में बदली
परेरा ने बताया, "उन्होंने आकर डीएनए फ़िगर प्रिंटिंग के नमूने लिए और ये साबित कर दिया कि नैना साहनी का डीएनए उनके माता पिता की बेटी के अलावा किसी और का नहीं हो सकता. हमने 'स्कल सुपर-इंपोज़ीशन' टेस्ट भी कराया, जिससे ये साबित हो गया कि ये नैना साहनी का ही शव है."
"सब कुछ करने के बाद हमने सिर्फ़ 26 दिनों के अंदर अदालत में चार्ज शीट दायर की."
सालों तक चले मुकदमें में सुशील शर्मा को निचली अदालत ने फाँसी की सज़ा सुनाई. हाई कोर्ट ने भी ये सज़ा बरकरार रखी.
बाद में 8 अक्तूबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने इस सज़ा को उम्र कैद में बदल दिया. सुशील शर्मा अब तक तिहाड़ जेल में 23 साल काट चुका है.
वो जेल में अब पुजारी का काम करता है. इस तरह की ख़बरे हैं कि दिल्ली सरकार उसके अच्छे व्यवहार के आधार पर उसे हमेशा के लिए जेल से छोड़ने का मन बना रही है.
सुप्रीम कोर्ट
मैक्सवेल परेरा कहते हैं, "सुशील शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट को भी मना लिया. कोर्ट का अब कहना है कि कि उसमें इतना सुधार हो गया है कि वो सब के लिए पूजा कर रहा है.. हमें इस बात से कोई दिक्कत नहीं है."
"पुलिस को जो कुछ करना था वो कर चुकी है. हमारे देश में कानून है. एक व्यवस्था है. नियम है और इनके मुताबिक फ़ैसला करने के लिए न्यायपालिका है. वो इस बारे में क्या सोचते हैं- ये उनका विशेषाधिकार है.'
भारतीय अपराध जगत के इतिहास में तंदूर हत्याकांड को सबसे जघन्य और क्रूर अपराध की संज्ञा दी जाती है. इसका इतना व्यापक असर था कि बहुत समय तक लोगों ने तंदूर में बना खाना खाना छोड़ दिया था.