दलित औरतों के तन ढंकने का संघर्ष NCERT की किताबों से ग़ायब: प्रेस रिव्यू
एनसीईआरटी ने नौवीं क्लास की इतिहास की किताब से भारत में जातीय भेदभाव से संबंधित तीन चैप्टर हटा दिए हैं.
इन चैप्टरों में से एक में केरल की दलित महिलाओं के कथित ऊंची जाति के लोगों से संघर्ष की कहानी बताई गई थी.
अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक़ एनसीईआरटी ने नौवीं क्लास की इतिहास की किताब से भारत में जातीय भेदभाव से संबंधित तीन चैप्टर हटा दिए हैं.
इन चैप्टरों में से एक में केरल की दलित महिलाओं के कथित ऊंची जाति के लोगों से संघर्ष की कहानी बताई गई थी.
18वीं सदी के आसपास त्रावणकोर में 'नादर' समुदाय की महिलाओं को अपने शरीर का ऊपरी हिस्सा खुला रखने के लिए मजबूर किया जाता था.
तक़रीबन 50 साल के लगातार संघर्ष के बाद नादर महिलाओं को अपना शरीर ढंकने का हक़ मिला.
हालांकि ईसाई मिशनरियों से प्रभावित होकर नादर महिलाओं ने ब्लाउज पहनना शुरू करके इस कुप्रथा का विरोध करना शुरू कर दिया.
किताब से जिस चैप्टर को हटाया गया है, उसमें लिखा था:
"मई, 1822 में नायर समाज (तथाकथित ऊंची जाति) के लोगों ने त्रावणकोर में नादर महिलाओं पर सरेआम हमला किया था. ऐसा इसलिए क्योंकि नादर महिलाओं ने उनके बनाए नियमों के ख़िलाफ़ अपने शरीर के ऊपरी हिस्से को ढंक रखा था. इसके कई दशकों के बाद हिंसक संघर्ष की वजह से आख़िरकार इस 'ड्रेस कोड' का अंत हुआ."
अख़बार सूत्रों के हवाले से लिखता है कि जावडेकर का एनसीआरटी को सुझाव ये था कि सभी विषयों का सिलेबस (पाठ्यक्रम) कम किया जाए लेकिन एनसीईआरटी ने सामाजिक विज्ञान का सिलेबस लगभग 20% कम कर दिया.
वहीं, दूसरी तरफ़ गणित और विज्ञान के सिलेबस में सबसे कम कटौती की गई है.
एनसीईआरटी का कहना है कि ये बदलाव छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों की एक लाख से ज़्यादा राय मिलने पर किए गए हैं.
दिलचस्प ये है कि इन्हीं बदलावों के तहत एनसीआईरटी ने आठवीं कक्षा की हिंदी की किताब में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की लिखी एक कविता शामिल की है.
किताब में यह कविता केंद्र सरकार के सुझाव के बाद शामिल की गई है. सरकार का कहना है कि ये भूतपूर्व प्रधानमंत्री के योगदान और उपलब्धियों को ज़िंदा रखने की एक कोशिश है.
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ओबीसी वर्ग के 'क्रीमी लेयर' की समीक्षा का प्रस्ताव
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक़ केंद्र सरकार ने ओबीसी यानी अन्य पिछड़ी जातियों के लिए निर्धारित 'क्रीमी लेयर' के आधार की समीक्षा करने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित की है.
सरकार का कहना है कि क्रीमी लेयर के नियमों को लागू करने में कई तकनीकी कठिनाइयां आ रही थीं और इसलिए इन्हें आसान करने की ज़रूरत महसूस हुई.
साल 1993 के बाद से अब यानी तक़रीबन 26 साल बाद सामाजिक न्याय मंत्रालय ने मामले की समीक्षा के लिए 8 मार्च को एक समिति गठित की. इस समिति को 15 दिनों में अपनी रिपोर्ट सौंपनी होगी.
केंद्र सरकार के इस फ़ैसले पर एक बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि 'राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग' (NCBC) की मौजूदगी, उसके संवैधानिक दर्जे और तमाम शक्तियों के बावजूद सरकार ने क्रीमी लेयर की समीक्षा के लिए अलग से विशेषज्ञों की समिति क्यों गठित की?
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भारत को मिल सकता है पहला लोकपाल
दैनिक जागरण समेत कई अख़बारों में ख़बर है कि सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ट जज जस्टिस पीसी घोष यानी जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष देश के पहले लोकपाल हो सकते हैं.
लोकपाल की चयन समिति ने लोकपाल अध्यक्ष और आठ सदस्यों के नाम तय कर लिए हैं. माना जा रहा है कि समिति ने लोकपाल अध्यक्ष के लिए जस्टिस पीसी घोष का चयन किया है।
जल्दी ही सरकार की ओर से औपचारिक घोषणा होने की उम्मीद है. जस्टिस घोष फ़िलहाल राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य हैं. लोकपाल क़ानून के तहत इसकी जांच के दायरे में प्रधानमंत्री भी आएंगे. लोकपाल सीबीआई समेत सभी जांच एजेंसियों को निर्देश दे सकता है.
केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त सरकारी कर्मचारियों के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच कर सकेंगे.
जस्टिस घोष के कुछ महत्वपूर्ण फ़ैसले
- सरकारी विज्ञापनों में नेताओं की तस्वीरें छापने से रोकने का आदेश
- तमिलनाडु में जल्लीकट्टू (सांड़ों से लड़ाई) पर पाबंदी का फ़ैसला
- बिहार के बाहुबली नेता शाहबुद्दीन की ज़मानत रद्द कर जेल भेजना का फ़ैसला
- अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहाने की साज़िश में बीजेपी और विश्व हिंदू परिषद् के नेताओं पर मुक़दमा चलाने का आदेश
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'निधन से घंटे भर पहले कामकाज की बातें कर रहे थे पर्रिकर'
आज सभी के अख़बारों के पहले पन्ने पर मनोहर पर्रिकर के निधन की ख़बरें और उनकी अलग-अलग तस्वीरें ही प्रमुखता से दिख रही हैं.
-इंडियन एक्सप्रेस की हेडलाइन है- CM Parrikar loses his battle with cancer, Goa in political turmoil
-दैनिक जागरण की हेडिंग है- मनोहर यादें छोड़ गए पर्रिकर, कैंसर से निधन
-अमर उजाला लिखता है- पहले आईआईटियन सीएम पर्रिकर नहीं रहे.
-हिंदुस्तान की हेडिंग है- न हन्यते: मनोहर पर्रिकर का निधन
इसके अलावा अख़बारों ने गोवा के पूर्व सीएम की ज़िंदगी के अलग-अलग पहलुओं को याद करते हुए ख़ास क़ॉलम लिखे हैं और उन्हें श्रद्धांजलि दी है.
कुछ अख़बारों ने उनकी सादगी के बारे में लिखा है तो कुछ ने उनके हाफ़ बाजू वाली शर्ट चश्मे की स्टाइल के बारे में भी. कहीं, उनकी सेना के साथ तस्वीरें हैं तो कहीं नाक में नली लगाए काम संभालते हुए.
दैनिक भास्करने अपने पहले पन्ने पर उनकी फ़ुटबॉल खेलती हुई तस्वीर छापी है और लिखा है- कैंसर था लेकिन रोज़ काम करते रहे.
अख़बार गोवा विधानसभा के अध्यक्ष राजेंद्र आर्लेकर के हवाले से लिखता है कि पर्रिकर अपने निधन से तक़रीबन एक घंटे पहले तक कामकाज की बातें ही कर रहे थे.
इसके अलावा दैनिक भास्कर ने मनोहर पर्रिकर से जुड़ा एक वाकया भी शेयर किया है.
अख़बार लिखता है कि पर्रिकर साल 2012 में गोवा के पर्यटन मंत्री मातनही सलदन्हा की मौत पर फूट-फूटकर रोए थे. जब मातनही बीमार पड़े तो पर्रिकर लगातार उनके बिस्तर के सिरहाने बैठे रहे और डॉक्टरों ने जब उनसे घर जाने को कहा तो उन्होंने कहा कि मैं उस आदमी को छोड़कर घर कैसे चला जाऊं जो इतने सालों तक मेरे साथ बना रहा.
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