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उत्‍तर प्रदेश: सपा, अपराध और सवाल ही सवाल!

By हिमांशु तिवारी आत्‍मीय
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15 मार्च 2012 को समाजवादी पार्टी की ओर से अखिलेश यादव ने सूबे के मुखिया की कमान संभाली। युवा चेहरे से, नए इरादों में लोग उत्तर प्रदेश की शांति व्यवस्था की दृढ़ता की अपेक्षा कर रहे थे। हालांकि कुछ लोगों के जहन में ये भी था कि कहीं फिर से गुंडागर्दी सियासत का सेहरा बांधकर तांडव न करे।

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Crime in Uttar Pradesh raises many questions

मुजफ्फर नगर दंगा हो या फिर दादरी कांड, यहां तक कि मोहनलालगंज में महिला के साथ हुए निर्भया सरीखे क्रूरतम कृत्य और उसके बाद प्रशासन की ढ़ीला-हवाली क चलते मृत नग्न महिला की फोटो सोशल मीडिया पर शेयर हो गईं। जिसके बाद प्रशासन के लचर हालात जनता की जुबानों पर किस्से के तौर पर पसर गए।

बहरहाल सरकार अब अपने कार्यकाल के आखिरी पड़ाव में है। सवाल विपक्षियों की ओर से भी है और जनता की तरफ से भी कि क्या सुधार हुए। जिसका जवाब सरकार को देना जरूरी है। महज योजनाओं के पुलिंदों से वोटबैंक तैयार करना शायद समझदार जनता को मद्देनजर रखते हुए आसान नहीं। लोगों को फायदा कितना हुआ जिसका जवाब जनता चाहती है।

दंगे और सपा सरकार!

उत्तर प्रदेश पुलिस के श्रोत से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक 2012 में कुल 5676 दंगे हुए जो कि वर्ष 2011 में दर्ज हुए 5022 मामलों से 13.02 फीसदी ज्यादा हैं। हां वर्ष 2012 में सूबे के मुखिया अखिलेश ने 15 मार्च को मुख्यमंत्री पद संभाला, जिस लिहाज से 2012 के दंगों के दर्ज आंकड़ों में कुछ फीसदी की कमी हो जाएगी।

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अब यदि बात की जाए वर्ष 2013 में हुए दंगों की तो यह संख्या बढ़कर 6089 हो गई। मतलब कि 7.28 प्रतिशत की बढ़त। वहीं 2014 में हुए दंगों पर यदि नजर दौड़ाई जाए तो यह संख्या 6438 हो गई। मतलब कि वृद्धि हुई 5.73 फीसदी की। हालांकि इन तमाम मामलों में बड़ी घटनाओं के इतर छुटपुट घटनाओं का भी जिक्र है। लेकिन दंगे की आशंका भी लोगों को सहमा देने के लिए काफी है। इन आंकड़ों को देखने के बाद कानून व्यवस्था पर सवाल उठना लाजिमी है।

सियासी धुआं या फिर असली ''आग''

उत्तर प्रदेश के शामली जिले के कैराणा गांव में 346 हिंदू परिवारों के पलायन की खबर के बाद सियासी उफान आ गया है। दरअसल भाजपा सांसद हुकुम सिंह के द्वारा पलायन के दावे पर हड़कंप मच गया। एक ओर प्रदेश सरकार लिस्ट में शामिल लोगों के नामों की सत्यता पर सवाल उठा रही है। जबकि भाजपा पूरी तरह से प्रदेश सरकार पर हमलावर रूख अख्तियार किए हुए है। कैराणा मामले में एक बड़ा वर्ग सोशल मीडिया पर भी सक्रिय होकर सूबे की सपा सरकार पर उंगलियां उठा रहा है। यदि वास्तव में कैराणा मामला महज अफवाह के इतर कुछ भी नहीं तो प्रदेश सरकार को तथ्यों के साथ पूरी स्थिति पर रूख साफ करना होगा। साथ ही इस बात पर भी गंभीरता से विचार करना होगा कि इस पूरे मामले पर जिस तरह से सियासत की जा रही है, उसका प्रभाव कहीं मुजफ्फरनगर तो नहीं रच देगा।

मथुरा मामले से भी सरकार हांशिए पर

बीते दिनों मथुरा में जवाहर बाग को लेकर हुई हिंसा के बाद प्रदेश सरकार की कमजोर नीति पर लोगों ने सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। जिसमें प्रमुखता इस बात को दी जा रही है कि इतना असलहा, इतने सारे लोग और प्रशासन समेत सरकार पूरे मामले से नदारद रहा। रामवृक्ष यादव अपनी निजी सेना के साथ रास्ते में आने वाली हर बाधा को काटता गया। स्थिति यहां तक आ गई कि जिस उद्यान विभाग के अधिकार में जवाहरबाग़ आता था उसके दफ़्तर और कर्मचारियों को भी वहां से भगा दिया गया।

यही नहीं पिछले कुछ समय से उनकी स्थानीय लोगों के साथ भी कई बार भिड़ंत हुई लेकिन किन वजहों से कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हो पाई, ये सवाल उलझा हुआ है। ये सब उस जवाहरबाग़ में हो रहा था जो डीएम कार्यालय से महज़ सौ दो सौ मीटर की दूरी पर है। कथित तौर पर सत्याग्रह करने वाले इन लोगों के पास से बड़ी संख्या में मिले हथियार के बाद कुछ लोग कह रहे हैं कि असलहे उनके इस 'साम्राज्य विस्तार' की गवाही दे रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव बेहद करीब आ चुके हैं लेकिन सपा की नीति हो या फिर नियत....लोगों के मन में सवाल ही सवाल हैं। देखना दिलचस्प होगा कि सपा सुप्रीमों मुलायम और फिलवक्त सूबे के समाजवादी पार्टी की ओर से मुखिया अखिलेश क्या रणनीति बनाते हैं जिससे इन सवालों को जनता के जहन से दूर किया जा सके।

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English summary
In present scenario of Uttar Pradesh the crime is raising many questions against Samajwadi Party government.
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