कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच भारत में 'R' फैक्टर एक साल के रिकॉर्ड स्तर पर,जानें क्या है ये और क्यों है जरूरी
कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच भारत में 'R' फैक्टर एक साल के रिकॉर्ड स्तर पर, जानें क्या है ये और क्यों है जरूरी?
नई दिल्ली: भारत में मार्च महीने की शुरुआत से ही कोरोना वायरस के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। देश में सोमवार (22 मार्च) को एक दिन कोरोना वायरस के 46,951 नए मामले सामने आए हैं। देश में इस साल सामने आए यह सर्वाधिक मामले हैं। फिलहाल देश में अबतक संक्रमित हुए लोगों की संख्या 1,16,46,081 हो गई है। देश में कोरोना से मरने वालों की संख्या 1,59,967 हो गई है। भारत में पिछले तीन दिनों में यानी 72 घंटे में देश में कोविड-19 के 131,750 नए मामले सामने आए हैं। यह इस साल के 'R' फैक्टर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। आर फैक्टर को 'R0' या आरनॉट भी कहा जाता है। आर फैक्टर कोरोना वायरस संक्रमण बढ़ने की संभावना के बारे में संकेत देता है।
क्या है 'R' फैक्टर और क्यों है जरूरी?
कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच भारत में आर फैक्टर एक साल के बसे ऊंचे स्तर पर जा पहुंचा है। आर फैक्टर इस साल 2020 अप्रैल के मुकाबले रिकॉर्ड स्तर 1.32 तक पहुंच गया है। आर फैक्टर या आरनॉट हमें ये बताता है कि कोविड-19 से संक्रमिक एक शख्स कितने दूसरे आदमियों को कोरोना वायरस से संक्रमित कर सकता है। या उसकी कितनी संभावना है।
कोरोना के सामने आ रहे हैं नए मामलों के बीच दुनियाभर में आर फैक्टर का इस्तेमाल कोविड-19 के मामले भविष्य में कितने आएंगे, उसे कैसे कंट्रोल किया दा सकता है, टेस्टिंग औ ट्रैकिंग को और भी मजबूत बनाने के लिए किया जाता है।
आर फैक्टर 2.0 तक पहुंच जाने का मतलब है, कोरोना संक्रमित एक इंसान औसतन, दो अन्य शख्स को संक्रमित करता है। उन दोनों शख्स से चार लोगो को संक्रमित करता है। कोरोना वायरस चार लोगों तक औसतन फैलता है।
किसी भी स्थिति में आर फैक्टर से नीचे रहना चाहिए। तभी कोरोना की चेन को तोड़कर कंट्रोल किया जा सकता है। भारत में नवंबर 2020 के बाद से आर फैक्टर लगातार कई हफ्तों तक 1.0 से नीचे रहा था। उस वक्त कोरोना के मामले कम थे। लेकिन अब कोविड-19 के बढ़ते के ने आर फैक्टर यानी आरनॉट को बढ़ा दिया है।
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