'दोषपूर्ण है भारत और बाकी तीसरी दुनिया के विकास का मॉडल'
नई दिल्ली। रॉनी सेन वो शख्स हैं जिसने फोटोग्राफी की दुनिया में भारत को गौरवान्वित होने का मौका दिया है। रॉनी ने इस साल का गेटि इमेजेज इंस्टाग्राम ग्रांट जीता है।
रॉनी को फोटो एजेंसी और इंस्टाग्राम ने मिलकर 10 हजार डॉलर का इनाम दिया है।
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अपनी फोटोग्राफी के जरिए रॉनी ने झारखंड स्थित झरिया के हालातों को तस्वीर में उतारा है। रॉनी ने संयुक्त राष्ट्र के लिए 2014 के लोकसभा चुनाव भी कवर किया है।
दोषपूर्ण है विकास का मॉडल
(झरिया से रॉनी की तस्वीर )
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अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक साक्षात्कार में रॉनी ने कहा है कि भारत में विकास का मॉडल दोषपूर्ण है। उन्होंने कहा कि भारत और तीसरी दुनिया के कई सारे मुल्कों में विकास के मॉडल दोषपूर्ण हैं।
रॉनी के मुताबिक हमने खुद को विकास के कुछ चिन्हों से जोड़ लिया है। जिसमें शॉपिंग मॉल, फ्लाइओवर और भी बहुत कुछ शामिल है।
रॉनी ने कहा कि़ कई ऐसे देश हैं जो यह नहीं जानते हैं कि उन्हें शौचालय की जरूरत क्यों है? इसलिए यह दिलचस्प समय है, जिसमें हम जी रहे हैं।
झारखंड स्थित झरिया के कोल माइनों में काम करने वाले लोगों और उसके आस पास रहने वालों के हालात को अपनी तस्वीर में उतारने वाले रॉनी ने कहा कि झरिया में लोग बहुत खराब हालात में जीवन यापन कर रहे हैं।
100 साल से जल ही है आग
उन्होंने कहा कि झरिया की भूमि के नीचे बीते 100 साल से भी ज्यादा समय आग से जल रही है।
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जो लोग वहीं के रहने वाले हैं वो वहां के हालात देखने को आदी हो गए हैं। इसलिए वो वहां के हालातों से अच्छी तरह से वाकिफ हैं और लगभग यह उनकी जिंदगी का एक हिस्सा है।
रॉनी ने बताया कि कई ऐसे गांव है जो कभी संपन्न हुआ करते थे वो अब है ही नहीं। वो आसानी से खत्म हो चुके हैं। कुछ लोगअच्छी जिंदगी और बेहतर अवसर के लिए इस इलाके को छोड़कर जा चुके हैं।
यहां हर कोई असफल रहा
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रॉनी ने कहा कि लेकिन एक बड़ी आबादी अब भी है जो झरिया को अपना घर मानता है वो यहां है और जो कोल माइनों में विस्फोट के साथ साथ स्थानांतरित होते रहते हैं।
उन्होंने कहा कि इनमें से ज्यादातर आर्थिक जीवन कोयले की खानों पर आधारित है। उनके पास कोई कौशल नहीं है, इसलिए वो खानों के साथ आगे बढ़ते रहते हैं।
रॉनी ने कहा कि यह ऐसा क्षेत्र है जहां हर कोई असफल रहा है। चाहे वो राजे रजवाड़े रहे हों, ब्रिटिश राज, भारत सरकार, कम्युनिस्ट माफिया और अब बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी अंततः असफल हैं।