प्रियंका के उतरने से केवल भाजपा को ही होगा नुकसान, इसलिए कांग्रेस आजमाएगी ये नुस्खा
नई दिल्ली। 2019 लोकसभा चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने अपना सबसे बड़ा दांव चल दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने छोटी बहन प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान सौंपते हुए सपा-बसपा और बीजेपी तीनों की नींद उड़ा दी हैं। दादी इंदिरा गांधी के नैन-नक्श वाली प्रियंका गांधी के मैदान में उतरते ही कांग्रेस कार्यकर्ता जोश से भरे नजर आ रहे हैं। प्रियंका गांधी को मैदान में उतारने के लिए लंबे समय से यूपी के कार्यकर्ता मांग कर रहे थे। अब उनकी मांग को पूरा करते हुए पार्टी ने 2019 लोकसभा चुनाव में मिशन 30 का टारगेट सेट किया। प्रियंका गांधी के यूपी के सियासी अखाड़े में उतरने के बाद तेजी से इस बात पर बहस छिड़ गई है कि आखिर कांग्रेस से किसे ज्यादा नुकसान होगा, सपा, बसपा, आरएलडी गठबंधन या बीजेपी? बहुत से राजनीतिक पंडितों ने अभी से यह भविष्यवाणी कर दी है कि प्रियंका गांधी के मैदान में आने के बाद कांग्रेस मजबूत होगी और इस स्थिति में बीजेपी को लाभ होगा। तर्क यह है कि सपा-बसपा और कांग्रेस तीनों का वोट बैंक करीब-करीब एक ही जैसा है, लेकिन सिक्के का एक दूसरा पहलू भी है, जो कि बीजेपी के लिए द्रोणाचार्य के चक्रव्यूह की रचना के समान साबित हो सकता है, जिसमें घुसा तो जा सकता है, लेकिन लगभग नामुमकिन।
कांग्रेस को सपा-बसपा से अलग समझने की भूल न करें राजनीतिक पंडित, राहुल गांधी का बयान है ठोस सबूत
उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन में जगह न मिलने के बाद कांग्रेस अब अपने दम पर 2019 की बाजी लड़ने को तैयार है। पार्टी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान प्रियंका गांधी को सौंपी है, जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश का भार ज्योतिरादित्य सिंधिया को सौंपा गया है। इन दोनों को मिलकर यूपी में कम से कम 30 सीटें जीतने का लक्ष्य दिया गया है। मतलब कांग्रेस पूरे उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से उन 30 पर ज्यादा फोकस करेगी, जहां 2014 लोकसभा चुनाव में उसे 1 लाख या उससे थोड़ा कम-ज्यादा वोट मिले थे, लेकिन अंदर की खबर एक और है, जिसका स्पष्ट संकेत बुधवार को राहुल गांधी के बयान से भी मिला। अमेठी में पत्रकारों से बातचीत में राहुल गांधी ने कहा, 'हम उत्तर प्रदेश की राजनीति को बदलना चाहते हैं मैं मायावती जी और अखिलेश जी का आदर करता हूं। हम तीनों का लक्ष्य बीजेपी को हराने का है। हमारी इन दोनों (सपा-बसपा) से दुश्मनी नहीं है।' इससे पहले अखिलेश यादव ने भी कांग्रेस के प्रति कुछ इसी प्रकार से सॉफ्ट कॉर्नर दिखाया था। मतलब सीधे शब्दों में कहें तो भले ही सपा, बसपा, आरएलडी साथ लड़ रहे हैं और कांग्रेस अलग, लेकिन यूपी में चारों दलों के बीच टैक्टिकल एलायंस है। 2019 लोकसभा चुनाव में ये चारों दल बीजेपी के सामने मिलकर सबसे मजबूत चुनौती पेश करने जा रहे हैं। अब सवाल यह है कि ये टैक्टिकल एलायंस क्या है और कैसे कांग्रेस अलग से लड़ने के बाद बीजेपी को नुकसान पहुंचाएगी और सपा-बसपा को नहीं? तो इसका जवाब हमें फूलपुर, गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव से मिलता है।
कांग्रेस, सपा, बसपा, आरएलडी इस फॉर्मूले से देंगी बीजेपी को मात
कांग्रेस, सपा-बसपा,आरएलडी की रणनीति 2019 लोकसभा चुनाव में कैसी होगी? सबसे पहले इसे समझते हैं 2018 के गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव के उदाहरण से। गोरखपुर उपचुनाव में सपा-बसपा-आरएलडी साथ आए थे। कांग्रेस भी बीजेपी के खिलाफ इस महागठबंधन में शामिल थी, लेकिन उसने प्रत्याशी उतारा था। परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस प्रत्याशी डॉक्टर सुरहीता करीम ने 18,858 वोट काट लिए। मतलब उन्हें इतने वोट मिले। अब इसका असर क्या हुआ, ये समझें। बीजेपी प्रत्याशी गोरखपुर में सपा के प्रवीण कुमार निषाद से 21881 वोटों से हारे। मतलब अगर कांग्रेस ने सपा-बसपा-आरएलडी के साथ आकर प्रत्याशी न उतारती तो कांग्रेस प्रत्याशी को मिले साढ़े 18 हजार वोट बीजेपी को चले जाते। इसी प्रकार से कांग्रेस ने फूलपुर उपचुनाव में भी प्रत्याशी उतारा और वहां भी वोट काट लिए। अब 2019 की बात करते हैं, जहां सपा-बसपा-आरएलडी साथ लड़ने का ऐलान कर चुके हैं और प्रियंका के नेतृत्व में कांग्रेस ने 'ऐकला चलो' की नीति अपनाई है, लेकिन सूत्र बता रहे हैं कि कांग्रेस ने जो टारगेट सेट किया है, वह 30 सीटों का है। कांग्रेस का यही लक्ष्य बताता है कि यूपी में कैसे बीजेपी को कांग्रेस, बसपा, आरएलडी के टैक्टिकल एलायंस मतलब अघोषित गठबंधन का सामना करना पड़ेगा।
यूपी में कांग्रेस अलग जरूर है पर सपा-बसपा-आरएलडी से है ये सीक्रेट डील
2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 71 जीतकर सनसनी मचा दी थी। इसके बाद यूपी विधानसभा चुनावों में भी मोदी लहर 'सुनामी' बनकर सपा, बसपा, कांग्रेस, आरएलडी पर टूटी और इन दलों का सर्वस्व चला गया। बात अब अस्तित्व की है, ऐसे में 'ऐकला चलो' केवल नारा है, पर ऐकला असल में कोई है नहीं। अब जरा सीक्रेट डील को समझते हैं। कुछ दिनों पहले सपा-बसपा सूत्रों के हवाले से खबर आई थी कि वे यूपी की उन सात लोकसभा सीटों पर कमजोर प्रत्याशी उतारेंगे, जहां कांग्रेस पिछले लोकसभा चुनाव में दूसरे नंबर पर रही थी। अब इसी रणनीति को और विस्तार देते हुए कांग्रेस ने नया लक्ष्य रखा है। वह उन 30 सीटों पर फोकस कर रही है, जहां उसे 1 लाख या उसके आसपास वोट मिले थे। साथ खबर यह भी है, कांग्रेस उन 22 सीटों पर सबसे ज्यादा लगाएगी, जहां सपा, बसपा मिलकर भी बीजेपी को नहीं हरा सके थे। मतलब कांग्रेस 2019 लोकसभा चुनाव में यूपी के मैदान में वोट कटुआ पार्टी तो रहेगी, लेकिन सबसे ज्यादा जोर वहां लगाएगी, जहां बीजेपी का किला अभेद नजर आ रहा है। साथ ही जहां, कांग्रेस मजबूत है, वहां सपा-बसपा हल्का प्रत्याशी उतारेंगी और जहां सपा-बसपा मजबूत वहां कांग्रेस ऐसा प्रत्याशी उतारेगी जो सीधे बीजेपी उम्मीदवार के वोट काटे।
ये हैं वो 22 सीटें जहां बीजेपी का किला है अभेद, इन्हीं पर सबसे ज्यादा जोर लगाएगी कांग्रेस
ये सीटें हैं, 1-गाजियाबाद, 2-बुलंदशहर, 3-वाराणसी, 4-लखनऊ, 5-कानपुर, 6-गौतमबुद्धनगर, 7-अलीगढ़, 8-हाथरस, 9-मथुरा, 10-आगरा, 11-उन्नाव, 12-एटा, 13-पीलीभीत, 14-बरेली, 15-प्रतापगढ़, 16-अकबरपुर, 17-जालौन, हमीरपुर,18- फैजाबाद, 19-बाराबंकी, 20-देवरिया, 21-मिर्जापुर, 22-मेरठ। उदाहरण के तौर पर लखनऊ और कानपुर लोकसभा सीटों के 2014 के आंकड़े देखते हैं।
लखनऊ:
भाजपा-
राजनाथ
सिंह-
561106
कांग्रेस-
रीता
बहुगुणा
जोशी-
288357
बसपा-
नकुल
दुबे-
64449
सपा-
अभिषेक
मिश्रा-
56771
जीत
का
अंतर-
272749
निष्कर्ष
उत्तर प्रदेश जिन 22 सीटों के नाम ऊपर लिखे हैं, उनमें 2014 में सपा-बसपा को मिले वोट जोड़ने के बाद भी दोनों दल बीजेपी से कोसों दूर दिखाई देते हैं, लेकिन लखनऊ सीट के आंकड़े देखने से पता चलेगा कि कांग्रेस ने वहां बीजेपी को कड़ी टक्कर दी। कांग्रेस को 288357 वोट मिले, जबकि सपा-बसपा को मिलाकर कुल वोट 121220 बनता है। इसी प्रकार से कानपुर लोकसभा सीट पर सपा-बसपा बीजेपी के वोट के आसपास भी नहीं दिखीं, पर कांग्रेस ने यहां 251766 वोट प्राप्त किए।
इन आंकड़ों से समझा जा सकता है कि बसपा-सपा भले ही यूपी की राजनीति के पुरोधा रहे हैं, लेकिन बिना कांग्रेस के साथ टैक्टिकल एलायंस किए, बीजेपी को वे अब भी नहीं हरा सकते। यही वजह है कि राहुल गांधी और अखिलेश यादव एक-दूसरे के प्रति इतना आदर-सम्मान दिखा रहे हैं, क्योंकि वे जानते हैं बीजेपी को इनमें से कोई अकेला नहीं हरा सकता है।