VIDEO: फैज अहमद फैज की नज्म को लेकर चल रहे विवाद पर नाराज हुए जावेद अख्तर, जानिए क्या कहा
नई दिल्ली। जावेद अख्तर देश के जानेमाने शायर हैं। राजनीति में भी उनकी गहरी दिलचस्पी रही है। वो राज्यसभा सांसद भी रह चुके हैं। बतौर सांसद वो हर विषय पर संसद के अंदर खुलकर अपनी राय रखते थे। नागरिकता संशोधन कानून को लेकर भी उन्होंने अपनी राय रखी थी हालांकि उसका पुरजोर विरोध हुआ था। अब उन्होंने फैज अहमद फैज को एंटी हिंदू (हिंदू विरोधी) बताए जाने पर अपनी राय रखी है। उन्होंने इसकी आलोचना करते हुए कहा है कि यह बेतुका है। इसमें कोई गंभीरता नहीं है।
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जावेद अख्तर ने कहा कि फैज ने फैज ने अपनी जिंदगी का आधा हिस्सा पाकिस्तान में गुजारा और वहां उन्हें एंटी पाकिस्तानी कहा जाता था। पाकिस्तान के तानाशाह और राष्ट्रपति रहे जिया उल हक के सांप्रदायिक, कठमुल्लापन के बारे में उन्होंने लिखा था कि हम देखेंगे। जावेद अख्तर ने कहा कि देश में हिंदू विचार को थोपने की कोशिश की जा रही है। सवाल ये है कि भारत के संविधान में क्या लिखा गया है।
इस देश को संविधान के जरिए चलाया जाएगा या किसी खास विचार को महत्व दिया जाएगा। इस देश की खासियत अनेकता में एकता की रही है। लेकिन अब सबकुछ एक किए जाने के नाम पर डर का माहौल बनाया जा रहा है। जावेद अख्तर ने कहा कि आज समय की ये मांग है कि देश को बांटने वाली विचारधारा का विरोध होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो पाकिस्तान और भारत में अंतर ही क्या रह जाएगा।
क्या था मामला
बीते 17 दिसंबर को जामिया यूनिवर्सिटी के छात्रों पर पुलिस ने कार्रवाई के विरोध में आईआईटी कानपुर के छात्रों ने फैज की नज्म गाई थी। फैज की नज्म, 'लाजिम है कि हम भी देखेंगे' की आखिरी पंक्ति में हिंदू विरोधी भावनाओं के खिलाफ एक फैकल्टी ने इसकी शिकायत की थी। अब आईआईटी ने इसके लिए एक पैनल गठित किया है। ये पैनल जांच करेगी कि फैज की ये नज्म हिंदू विरोध है या नहीं।
आपको बता दें कि फैज अहमद की नज्म बस नाम रहेगा अल्लाह का, जो गायब भी है हाजिर भी' इन दो पंक्तियों को लेकर देशभर में बहस चल रही है। आरोप लगाया जा रहा है कि ये लाइनें हिंदू विरोधी हैं। उल्लेखनीय है कि फैज अहमद फैज का जन्म 1911 में पंजाब के नरोवल में हुआ था। जब देश का बंटवारा हुआ तो उन्हें भी पाकिस्तान जाना पड़ा था। आजादी के बाद बंटवारे के दर्द को बयां करते हुए उन्होंने लिखा था-
ये
दाग
दाग-उजाला,
ये
शब-गजीदा
सहर
वो
इंतज़ार
था
जिसका,
ये
वो
सहर
तो
नहीं...