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राजनीति के भंवर में फंस कर बुंदेलखंड के 'अर्जुन' ने तोड़ा दम

By हिमांशु तिवारी आत्मीय
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जी हां, हम बात कर रहे हैं 2009 में शुरू हुई अर्जुन सहायक परियोजना की। जिसका उद्देश्य था सिंचाई और पेयजल कि दिक्कतों से लोगों को निजात दिलाना। लेकिन यह परियोजना 2009 से आज तक अपने उद्देश्य के इर्द गिर्द भी नहीं पहुंच पाई है। हालांकि इस पर पैसा जरूर पानी की तरह बहाया गया। हजारों में नहीं हजारों करोड़ रूपये खर्च हुए। लेकिन परियोजना महज ख्वाब बनकर दम तोड़ता गया।

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कभी इसके पीछे की वजह किसानों के विरोध को बताया गया तो कभी पैसे की कमी। लेकिन बुंदेलखंड के स्थानीय लोगों से बात करने पर जवाब एक ही कि ''साहब'' ई नेता कब का करि दें, पता नहीं चलि पावत है। बहरहाल सवाल ये है कि मार्च 2014 तक इस परियोजना पर 597 करोड़ खर्च किए जा चुके हैं...लेकिन परियोजना अभी भी हवा में है, ऐसा क्यों। इस मामले पर वन इंडिया ने की पूरी पड़ताल। पेश है ये रिपोर्ट-

सिसक-सिसक कर बुंदेलखंड के 'अर्जुन' ने तोड़ा दम

क्या है अर्जुन सहायक परियोजना

इस योजना के अंर्तगत केंद्र सरकार से 90 प्रतिशत और राज्य सरकार से 10 प्रतिशत अनुदान शामिल है। शुरूआत में यह योजना 8.6 अरब रूपए की थी। 2013-14 में प्राप्त जानकारी के मुताबिक बांदा, महोबा, हमीरपुर के 112 गांव के किसानों की कृषि भूमि को अधिग्रहित किया जाना है। जबकि 2014 में 223 से ज्यादा किसानों की जमीनें आपसी सहमति से ली जा चुकीं हैं।

अर्जुन बांध से जोड़ने की योजना

जबकि इस पूरे कार्य के लिए कुल 30 हजार 0.56 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहित की जानी थी। इस लिंक परियोजना को महोबा की धसान नदी से जोड़कर 38.60 किमी लंबी नहर लहचुरा डैम जिसकी क्षमता 73.60 क्यूमिक वाटर कैपसिटी की है जिसे अर्जुन बांध से जोड़ने की योजना थी। 31.30 किमी लंबी लिंक नहर अर्जन बांध से कबरई बांध जिसकी क्षमता 62.32 क्यूमिक वाटर कैपिसिटी है को शिवहार चंद्रावल बांध से मिलाते हुए बांदा की केन नहर से जोड़ने का प्रयास शामिल था।

बढ़ती रहीं कीमतें घटता गया काम

साल 2013 में प्रकाशित एक मीडिया रिपोर्ट में अधिशाषी अभियंता एचसी यादव ने बताया कि मुख्य अभियंता की समिति ने नयी पुनरीक्षित बजट राशि 1511.38 करोड़ का निर्धारण किया। मतलब साफ है कि करीबन 806 करोड़ की योजना 1511.38 करोड़ रूपये की रह गई है। करीबन बजट के 806 करोड़ की राशि की दूनी। जबकि उत्तर प्रदेश सरकार ने 2016-17 के बजट में अर्जुन सहायक परियोजना के लिए 100 करोड़ की व्यवस्था की। जानकारी की मानें तो अर्जुन सहायक परियोजना के लिए केंद्र ने धनराशि को बढ़ाकर 1600 कर दिया है।

परियोजना में ये हैं रूकावटें

परियोजना से प्रभावित ग्राम गुगौरा निवासी पंकज सिंह परिहार व ग्राम जुझार के गुलाब सिंह राजपूत का कहना है कि बिना किसानों की सहमति के सरकार जमींने ले रही थी, जिसका परिणाम यह निकला कि अब तक किसान रामविशाल के आत्मदाह समेत अब तक 3 लोग आत्महत्या कर चुके हैं। जो कि परियोजना में रूकावट के बहाने सरीखे काम कर रहा है।

इन कंपनियों के पास है कॉन्ट्रैक्ट

इस बांध परियोजना का कांट्रेक्ट नई दिल्ली की मेसर्स सिम्प्लेक्स प्रोजेक्ट लिमिटेड और झांसी की मेसर्स घनाराम इंजीनियर कांटेªक्ट कंपनी को दिया गया।

कहीं दाल में कुछ काला तो नहीं

परियोजना पर खर्च होने वाली ऊंची कीमत के हिसाब से काम का आंकलन करने पर परियोजना के अस्तित्व पर तमाम सवाल खड़े हो जाते हैं। बुंदेलखंड के लोगों का ही कहना है कि ''साहब पूरा पइसा ई बड़के वाले नेता खाई गे'' और ''अधिग्रहण के नाम पर हमार जमीन धरि लीन्हेन।'' हालांकि 2009 में शुरू हुई इस परियोजना के वक्त केंद्र में यूपीए गवर्नमेंट थी और राज्य में बसपा सरकार। लेकिन सवाल यह भी है कि सत्ता में फेरबदल के बाद भी इस परियोजना में कोई पहल क्यों नहीं हुई। हां 2009 में केंद्र और उत्तर प्रदेश में सरकार द्वारा तैयार किए जा रहे मुलम्मे पर भी प्रश्नवाचक चिन्ह अर्जुन सहायक परियोजना की दृष्टि से लगा हुआ है। बहरहाल इस मामले पर बुंदेलखंड के लोग अब जांच की गुजारिश करने लगे हैं। ताकि कितना पैसा कहां इस्तेमाल हुआ उसका खुलासा हो सके।

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English summary
Bundelkhand continues to reel under an acute shortage of water because The biggest irrigation project, Arjun Sahayak Pariyojana, inaugurated in 2009, is still not complete. The budget was recently doubled to around Rs 1,600 crore.
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