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उत्तर प्रदेश: योगी आदित्यनाथ के नाम पर चुनाव लड़ रही भाजपा ब्राह्मणों को लेकर सावधान क्यों?

अगर ब्राह्मणों का भरोसा पूर्णतः योगी सरकार में है तो फिर दिल्ली में केंद्रीय नेतृत्व की प्रदेश के कद्दावर ब्राह्मण नेताओं के साथ बैठक की ख़बरें क्यों आ रही हैं? ब्राह्मण यूपी के चुनाव में कितने महत्वपूर्ण हैं.

By BBC News हिन्दी
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उत्तर प्रदेश की 17वीं विधानसभा की 403 सीटों में से भाजपा के 46, समाजवादी पार्टी के तीन, बहुजन समाज पार्टी के तीन, कांग्रेस का एक और अपना दल के एक ब्राह्मण विधायक हैं. दो ब्राह्मण विधायक निर्दलीय चुने गए थे.

इन आंकड़ों से ज़ाहिर है कि 2017 के प्रादेशिक चुनाव में ब्राह्मणों ने भाजपा का खुल कर समर्थन किया. लेकिन हाल में हुए कुछ घटनाक्रम से कुछ अलग तस्वीर निकल कर सामने आ रही है, अटकलों को बल मिल रहा है.

जैसे, 26 दिसंबर को उत्तर प्रदेश में भाजपा के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने उत्तर प्रदेश के नेताओं के साथ हुई एक बैठक के बारे में ट्वीट किया - "उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा, गोरखपुर से भाजपा राज्यसभा सांसद शिव प्रताप शुक्ल, बस्ती से भाजपा सांसद और भाजपा राष्ट्रीय सचिव हरीश द्विवेदी, भाजपा महासचिव सुनील बंसल, गुजरात से राज्यसभा सांसद रामभाई मोकारिया और भाजपा के अन्य वरिष्ठ साथियों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 'मन की बात' कार्यक्रम सुना."

https://twitter.com/dpradhanbjp/status/1475020380251168768?s=20

27 दिसंबर को भारतीय जनता युवा मोर्चा के पूर्व राष्ट्रीय महामंत्री अभिजात मिश्र ने भी एक तस्वीर ट्वीट की जिसमें पार्टी के उत्तर प्रदेश से जुड़े ब्राह्मण नेता भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा से मुलाकात करते हए नज़र आ रहे हैं और भगवान परशुराम की तस्वीर भी भेंट कर रहे हैं.

तस्वीर में कैबिनेट मंत्री बृजेश मिश्र और श्रीकांत शर्मा के साथ सांसद महेश शर्मा और शिव प्रताप शुक्ल भी दिख रहे हैं. ट्वीट में अभिजात मिश्र ने लिखा, "जे पी नड्डा के आवास पर उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर बैठक."

https://twitter.com/AbhijatMishr/status/1475390823776731136?s=20

चुनावी तैयारियों से जुड़ी इन बैठकों के बाद ये भी ख़बर आने लगी कि 2022 के चुनावों के मद्देनज़र उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों को पार्टी के साथ बनाए रखने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया है जिसमें प्रदेश से जुड़े ब्राह्मण नेताओं को सदस्य बनाया गया है और समिति की अध्यक्षता गोरखपुर से राज्य सभा सांसद शिव प्रताप शुक्ल करेंगे.

इस बैठक से जुड़े ऐसे व्हाट्सऐप मैसेज वायरल होने लगे जिनमें दावा किया गया कि ब्राह्मण नेताओं ने पार्टी आलाकमान के सामने भड़ास निकाली कि सरकार में ब्राह्मणों की सुनवाई नहीं हो रही है.

ऐसे में सवाल उठने लगे कि अगर ब्राह्मणों का भरोसा पूर्णतः योगी सरकार में है तो फिर दिल्ली में केंद्रीय नेतृत्व की प्रदेश के कद्दावर ब्राह्मण नेताओं के साथ बैठक की ख़बरें क्यों आ रही हैं?

ब्राह्मणों से जुड़ी बैठक में क्या हुआ?

फ़िलहाल इन बैठकों के बारे में और उसमें हुई चर्चा के बारे में पार्टी की ओर से कोई औपचारिक जानकारी नहीं आई है. हमने सांसद शिव प्रताप शुक्ल से जानने की कोशिश की कि वो वाक़ई में ऐसी एक समिति या टास्क फ़ोर्स के अध्यक्ष नियुक्त किए गए हैं, पर उन्होंने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया.

बीबीसी ने इस बैठक में मौजूद दो नेताओं से जानने की कोशिश की कि आख़िरकार ब्राह्मण वोटरों को लेकर भाजपा की क्या चिंताएं और चुनौतियाँ है.

इस बैठक में मौजूद रहे भारतीय जनता युवा मोर्चा के पूर्व राष्ट्रीय महामंत्री अभिजात मिश्र ने इस समिति के गठन की पुष्टि की और बताया कि वो भी इस समिति के सदस्य बनाए गए हैं.

समिति के बारे में विस्तार से बताते हुए वो कहते हैं कि, "सांसद शिव प्रताप शुक्ल इस समिति के प्रमुख हैं और इस समिति में मेरे साथ-साथ सांसद महेश शर्मा और गुजरात से राज्यसभा के सांसद राम भाई मोकारिया हैं. समिति प्रबुद्ध वर्ग के साथ काम करेगी और हम लोग सब लोगों से बात करेंगे और सबको समझा बुझा कर पार्टी के कामों में फिर से लगाएंगे.

ब्राह्मण वर्ग के जितने लोग हैं, सब का कार्यक्रम बनाने का काम भी समिति देखेगी. प्रदेश में जितने भी ब्राह्मण मंत्री, विधायक, सांसद हैं, सभी को उसमें लगाया जायेगा."

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चुनाव के क़रीब बढ़ती ब्राह्मणों की नाराज़गी के सवाल के बारे में अभिजात मिश्र कहते हैं, "ब्राह्मण समाज के लोग भी पूरे दमखम से पार्टी से जुड़ कर पार्टी की सरकार दोबारा बनाने के लिए लगें और इसमें तमाम तरीके की त्रुटियां रह गई हों, जो कुछ भी मतभेद हों या मनभेद हों, उनको दूर किया जाए. उनकी बात को सुना जाए'.'

उन्होंने स्वीकार किया कि 'कुछ लोग काम न होने की वजह से नाराज़ हो जाते हैं'.

मिश्र ने कहा,"अब जैसे 10 काम थे उसमें से चार रह गए तो लोगों की नाराज़गी हो जाती है. मान लीजिए कि हमारा ही काम हो और वो नहीं हुआ हो और हम गुस्से में बैठ जाएँ. ऐसे में पार्टी से कोई आता है तो हमने अपना ग़ुस्सा व्यक्त कर लिया और आश्वासन मिल गया तो हम फिर लग जाते हैं पार्टी के काम में.

"लोगों की छोटी छोटी चीज़ों को लेकर नाराज़गियाँ रहती हैं, लेकिन धीरे-धीरे उनमें सुधार किया जायेगा. बहुत बड़ी पार्टी है, बहुत बड़ा प्रदेश है तो स्वाभाविक है कहीं न कहीं कुछ रह जाता है."

इस बैठक में मौजूद एक और नेता बीबीसी से अपना नाम गोपनीय रखने की शर्त पर कहते हैं, "उस दिन बैठक में प्रदेश से लगभग 15 ब्राह्मण नेता मौजूद थे. भाजपा की समाजवादी पार्टी से लड़ाई है और ब्राह्मण समाजवादी पार्टी को पचा नहीं सकता है. ब्राह्मणों का सबसे ज़्यादा उत्पीड़न सपा के शासन में होता है."

इस नेता के मुताबिक़ बैठक में भाजपा के उत्तर प्रदेश से एक और ब्राह्मण चेहरा माने जाने वाले और इन दिनों विवादोंमें घिरे नेता "केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी मौजूद थे लेकिन वो चर्चा के दौरान कुछ बोले नहीं."

अजय मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्र पर लखीमपुर खीरी में किसानों की हत्या का आरोप है और फ़िलहाल वो जेल में हैं.

रणनीति कितनी दमदार?

शिव प्रताप शुक्ल को इस समिति का अध्यक्ष बनाए जाने के बारे में वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र बताते हैं कि 'शिव प्रताप शुक्ल और योगी आदित्यनाथ के बीच मतभेद रहे हैं और 'भाजपा इन रणनीतियों के तहत निरंतर जो फ़ैसले ले रही है, उसके परिणाम उन्हें उल्टे मिलेंगे'.

योगेश मिश्र कहते हैं, "मुझे लगता है कि शिव प्रताप शुक्ल की लगातार उस इलाके में रहते हुए योगी आदित्यनाथ से नहीं बनी. कहा जाता है कि शिव प्रताप शुक्ल जी को योगी आदित्यनाथ ने विधान सभा चुनाव भी हरवाया. उसके बाद शिव प्रताप शुक्ल को न तो ब्राह्मणों से ताक़त मिल पाई, न उन्हें कोई ऐसी महत्वपूर्ण जगह मिली जिनके नाते वो अपनी बिरादरी के लिए कुछ कर पाए हों."

योगेश मिश्र मानते हैं कि योगी के ख़िलाफ़ जो ब्राह्मण विरोधी छवि बनाई जा रही उससे निपटना भाजपा के लिए ज़रूरी है, लेकिन उसका तोड़ शायद शिव प्रताप मिश्र नहीं हैं.

योगेश मिश्र कहते हैं, "वो ब्राह्मण हैं और सांसद हैं, यह सत्य है. लेकिन किसी संकट में ब्राह्मण उन्हें अपना नेता मान लेंगे, इसके लिए आपने उन्हें क्या ताक़त दी, यह पहले सोच लेना चाहिए था. यह ताक़त भाजपा ने उत्तर प्रदेश में किसी को नहीं दी.

"अगर शिव प्रताप शुक्ल बढ़ेंगे तो तय है कि ठाकुर आपसे नाराज़ होगा. 12 प्रतिशत ब्राह्मण वोट है और 7 प्रतिशत ठाकुर वोट है. तो क्या आप चुनाव में किसी एक बिरादरी का वोट हासिल करने के लिए किसी दूसरी बिरादरी को नाराज़ कर सकते हैं?"

हालाँकि, मुख्यमंत्री योगी और शिव प्रताप शुक्ल के पूर्व में रहे तनावपूर्ण रिश्तों के बारे में भाजपा नेता अभिजात मिश्र कहते हैं, "संगठन में सभी के मतभेद होते हैं, लेकिन मनभेद नहीं होता है. भाजपा का संगठन लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत चलता है जिसमें सभी को बोलने का अधिकार रहता है और अपनी बात रखने का अधिकार होता है और यह तभी होता है जब आपके परिवार में लोकतांत्रिक व्यवस्था हो." ॉ

योगी सरकार को ब्राह्मण विरोधी ठहराता विपक्ष

समाजवादी पार्टी इन दिनों भाजपा को ब्राह्मण विरोधी साबित करने में लगी हुई है.

सपा प्रवक्ता और पूर्व कैबिनेट मंत्री आईपी सिंह ने भाजपा पर तंज कसते हुए ट्वीट किया है, "ठाकुर योगी जी को अब ब्राह्मण समाज की याद आ रही है. सीएम बनते ही गोरखपुर पूर्वांचल ही नहीं यूपी के सबसे बड़े ब्राह्मण नेता पंडित श्री हरिशंकर तिवारी जी के घर पर अकारण छापा डलवाया, उनका अपमान कराया, बेइज्ज़त किया. बेटी ख़ुशी दुबे के हाथ की मेहंदी नहीं उतरी थी. चार दिन की विवाहिता को जेल में डाला."

https://twitter.com/ipsinghsp/status/1459902976223440896?s=21

दरअसल हरिशंकर तिवारी गोरखपुर के कद्दावर ब्राह्णण नेता हैं जो योगी आदित्यनाथ को उन्हीं के गढ़ में सीधी चुनौती देते आ रहे हैं और हाल ही में बसपा छोड़ सपरिवार सपा में शामिल हुए हैं.

सपा योगी सरकार पर तिवारी और उनके परिवार को निशाना बनाने का आरोप लगा रही है.

ट्ववीट में ख़ुशी दुबे का भी ज़िक़्र है जो कानपुर में आठ पुलिस वालों की हत्या कांड के सहअभियुक्त अमर दुबे की नवविवाहिता पत्नी थी जिसे शादी के तुरंद बाद पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया था.

विवादित विकास दुबे एनकाउंटर के डेढ़ साल बाद भी ख़ुशी की ज़मानत नहीं हुई है और विपक्ष खुलेआम ब्राह्मण समाज की एक लड़की को गिरफ़्तार कर जेल भेजने का आरोप योगी सरकार पर लगा रहा है.

इस मुद्दे को आम आदमी पार्टी के नेता और सांसद संजय सिंह ने भी लगातार उठाया है.

https://twitter.com/sanjayazadsln/status/1450773722894270474?s=21

उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मण वोट का महत्व

वरिष्ठ पत्रकार सुमन गुप्ता का मानना है कि सवाल केवल ब्राह्मणों की संख्या का नहीं है.

वो कहती हैं, "दरअसल वो एक ऐसा तबका है जो समाज में राय बनाने का काम करता है. भाजपा को शायद ऐसा लगता है कि ब्राह्मणों का उनके प्रति एकतरफ़ा झुकाव इस बार न हो और उसका एक बड़ा कारण यह है कि राज्य के शीर्ष पर जो मुख्यमंत्री हैं वो ठाकुर बिरादरी के हैं. और ऐसे में यह पब्लिक परसेप्शन बन जाता है कि यह तो ठाकुरों की सरकार है."

इस बार के चुनाव में एक अंतर ये है कि पिछले विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री का कोई चेहरा नहीं था, लेकिन इस बार चुनाव उनके ही नाम पर लड़ा जा रहा है. ऐसे में जानकारों का मानना है कि पार्टी की नज़र ब्राह्मण वोट पर अवश्य है कि कहीं वो ये सोच कर ना छिटक जाए कि ये तो ठाकुरों की सरकार है.

वैसे उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा भी ब्राह्मण हैं. मगर सुमन गुप्ता कहती हैं, "उन्हें ब्राह्मण के नाम से उपमुख्यमंत्री बनाया गया ताकि ठाकुर, ओबीसी और ब्राह्मण का बैलेंस बना रहे. लेकिन मेरी नज़र में वो ब्राह्मण नेता नहीं हैं."

उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की आबादी लगभग 12 प्रतिशत है. प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मण वोट की अहमियत पत्रकार योगेश मिश्र भी बख़ूबी समझते हैं.

वो कहते हैं, "ब्राह्मण जो होता है या तो टीचर है, या कथावाचक है, और वो हर गांव में हर बिरादरी से संपर्क रखने वाली जाति है. जैसे आपके यहाँ कोई भी अनुष्ठान होगा या कार्यक्रम होगा, किसी का जीना मरना होगा या जन्मदिन होगा तो आप ब्राह्मण बुलाएँगे. ऐसे में उनका लोगों से संपर्क बहुत अच्छा होता है और वो माहौल बनाने में कामयाब होता है."

ब्राह्मण वोट पर सपा-बसपा के दावे

अखिलेश सरकार के पूर्व कैबिनेट मंत्री और विधायक मनोज कुमार पांडेय समाजवादी पार्टी से ब्राह्मणों को जोड़ने में लगे हुए हैं.

भाजपा की ब्राह्मण रणनीति के बारे में वो कहते हैं, "भाजपा ने ब्राह्मणों के लिए कोई समिति बनाई है, यह इस बात का प्रतीक है कि वो चिंतित है और वो महसूस कर रही है कि ब्राह्मण भाजपा से जा रहा है. ब्राह्मण अपनी परिस्थितयों के हिसाब से वोट देता है. वो देखता है कि उसे कहाँ सम्मान मिलेगा.

इससे सिद्ध होता है कि 2007 में और 2012 में उन्होंने अपनी परिस्थितियों के हिसाब से वोट दिया था और यह साबित करता है कि ब्राह्मण के लिए भाजपा नैचुरल पार्टी नहीं है. 2022 में भी वही परिस्थितियां बन रही हैं. ब्राह्मण एक पढ़ा लिखा प्रबुद्ध समाज है और यह महसूस कर रहा है कि उत्तर प्रदेश में बहुत तेज़ी से बेरोज़गारी और महंगाई बढ़ी है. ब्राह्मण भेड़-बकरी की तरह वोट नहीं करता है, बल्कि वो कार्यों का मूल्यांकन करके उस पर वोट करता है. तो इस आधार पर वो सपा के साथ जुड़ रहा है और भाजपा को उसमे चिंतित भी होना चाहिए. "

2007 में बसपा ने भी ब्राह्मणों और दलितों की सोशल इंजीनियरिंग का फ़ॉर्मूला इजाद किया था और पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई थी. लेकिन जानकारों का आकलन है कि 'सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय' के नारे से चल रही मायावती 2007 की ऐतिहासिक जीत को दोहराने से बहुत दूर हैं.

पार्टी का ब्राह्मण चेहरा सतीश चंद्र मिश्र रैलियाँ कर रहे हैं, लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि क्या मायावती प्रचार में और जातियों को जोड़ने में पिछड़ रही हैं ?

https://twitter.com/satishmisrabsp/status/1475086648530522117?s=20

इस बारे में पार्टी प्रवक्ता धर्मवीर चौधरी कहते हैं, "जो कहते हैं कि मायावती रैली नहीं कर रही हैं, मैं कहना चाहता हूँ कि 9 अक्टूबर को उन्होंने लखनऊ में एक विशाल रैली की थी. बहुजन समाज पार्टी 300 टिकट फ़ाइनल कर चुकी है."

ब्राह्मण वोट के बारे में वो कहते हैं," 2007 में बसपा ने 86 ब्राह्मणों को टिकट दिया था जिसमें 57 ब्राह्मण चुनाव जीते थे, हमने 15 एमएलसी बनाए. शायद किसी भी दूसरी पार्टी ने अपने शासनकाल में ब्राह्मणों के लिए इतना नहीं किया. हमारी पार्टी में नंबर 2 के नेता एक ब्राह्मण हैं. हम 'जाति तोड़ो समाज जोड़ो' की बात करते हैं, ब्राह्मणों ने शंख बजाया और हाथी बढ़ता गया. लेकिन ब्राह्मण आज सबसे ज़्यादा प्रताड़ित हैं. इस प्रदेश में 70 प्रतिशत एक ही बिरादरी का तांडव चल रहा है और वो योगी आदित्यनाथ की राजपूत बिरादरी है."

बहरहाल भाजपा की इस नई ब्राह्मण समिति को उत्तर प्रदेश की सभी 403 सीटों पर ब्राह्मणों को भाजपा से जोड़े रखने की ज़िम्मेदारी दे दी गई है.

लेकिन सवाल है कि चुनाव के ऐन पहले शुरू हुआ इतना बड़ा अभियान क्या समय रहते अपने अंजाम तक पहुँच पाएगा?

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English summary
BJP wary of Brahmins fighting elections in the name of Yogi Adityanath?
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