चुनाव से पहले भाजपा का एक और दांव, अब ‘नागरिकता संशोधन विधेयक’ बनेगा बड़ा मुद्दा
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2019 में क्या देश का विकास, सामाजिक समरसता या आम आदमी की समस्याएं मुद्दा होगी? या फिर राजनीतिक पार्टियां भावनात्मक मुद्दों को आगे रख वोटों के ध्रुवीकरण की राजनीति करेंगी? ये सवाल अभी से इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि हमारे नेताओं ने मंदिर-मस्जिद के चक्कर लगाने शुरु कर दिए हैं। आने वाले चुनाव में बीजेपी एक और भावनात्मक मुद्दा उठाने की तैयारी कर रही है। इस पर व्यापक चर्चा हाल ही में दिल्ली में हुई बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में हुई। अब पार्टी नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 के मुद्दे को लेकर जनता के बीच जाने की तैयारी कर रही है। ये विधेयक अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनों, पारसी और ईसाईयों को भारतीय नागरिकता के लिए पात्र मानने की बात करता है लेकिन इसमें मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है।
सूत्रों ने कहा है कि बीजेपी ने अपने सभी मुख्यमंत्रियों से प्रस्तावित विधेयक के सभी प्रावधानों को उनके राज्य की स्थानीय भाषाओं में अनुवाद कराने को कहा है। इसके बाद इसे पैम्फलेट की शक्ल में छापाकर लोगों में बांटा जाएगा। भारत में ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है जो रिफ्यूज के तौर पर रह रहे हैं और अपने देशों में अत्याचार के चलते ये लोग यहां आए हैं।
क्या किए हैं बदलाव
नागरिकता
(संशोधन)
विधेयक
को
2016
में
लोकसभा
में
पेश
किया
गया
था
लेकिन
विभिन्न
वर्गों
के
तीखे
विरोध
के
कारण
ये
पास
नहीं
हो
पाया
था।
अभी
लागू
नागरिकता
अधिनियम,
1955
के
मौजूदा
प्रावधानों
के
अनुसार
अगर
कोई,
भारतीय
नागरिकता
के
लिए
आवेदन
करता
है
तो
पिछले
12
महीनों
के
दौरान
उसका
भारत
में
वास
होना
चाहिए
और
पिछले
14
वर्षों
में
से
11
साल
वो
भारत
में
रहा
हो।
सरकार
संशोधन
के
जरिए
इसमें
बदलाव
करना
चाहती
है
और
वो
हिंदू,
सिख,
बौद्ध,
जैन,
पारसी
और
ईसाई
समुदायों
के
लोगों
के
लिए
11
साल
की
इस
समय
सीमा
को
घटाकर
छह
साल
करना
चाहती
है।
इसमें
मुसलमान
शामिल
नहीं
हैं।
ये
भी
पढ़ें:-
मध्यप्रदेश
में
कांग्रेस
किसे
देने
वाली
है
सबसे
ज्यादा
टिकट?
हो
गया
बड़ा
खुलासा
बड़े स्तर पर बनी है रणनीति
सूत्रों ने बताया कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पिछले महीने नई दिल्ली में भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में इस कार्यक्रम पर चर्चा की थी। शाह ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी और कई अन्य मंचों से भी इस मुद्दे का जिक्र किया है।अमित शाह पहले से इस बिल का समर्थन करते रहे हैं और विपक्षी राजनीतिक दलों से इस मुद्दे पर अपना रुख साफ़ करने की मांग करते रहे हैं। एक बीजेपी नेता ने कहा है कि पार्टी के इस कार्यक्रम को पूर्वोत्तर राज्यों, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान को ध्यान में रखकर तैयार किया जाएगा क्योंक् इन राज्यों में ऐसे बहुत से लोग रह रहे हैं। इसके अलाव मध्यप्रदेश, दिल्ली और देश के कई अन्य हिस्सों में भी हिंदू शरणार्थियों की एक बड़ी संख्या रह रही है।
मुसलमानों का नहीं जिक्र
नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 का विरोध इसलिए हो रहा है क्योंकि इसमें मुस्लिम समुदाय के शिया और अहमदीया लोगों को शामिल नहीं किया गया है। लेकिन बीजेपी का मानना है कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में सताए गए जो लोग भारत आए हैं उन्हें नागरिकता दी जानी चाहिए क्योंकि उनके पास कहीं और जाने की जगह नहीं है। विधेयक के आलोचकों का कहना है कि बीजेपी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) और नागरिकता विधेयक की मदद से मुसलमानों को बाहर फेंकना और हिंदुओं को देश के अंदर लेना चाहती है। लेकिन बीजेपी के नेताओं का कहना है कि एनआरसी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि अवैध तरीके से रह रहे लोग ना सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं बल्कि ये संस्कृति को भी प्रभावित कर रहे हैं। एनआरसी बांग्लादेश से आए घुसपैठियों की पहचान के लिए है, जबकि नागरिकता बिल अत्याचार का शिकार हुए हिंदुओं और गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के बारे मे है।
ये भी पढ़ें:- राफेल डील: 'संसद में बोलते हुए मुझसे नहीं मिलाई थी आंख, ऊपर-नीचे देख रहे थे पीएम मोदी'