जब आडवाणी ने नेताओं को दी थी धोती-कुर्ता छोड़कर पैंट-शर्ट पहने की सलाह...
नई दिल्ली। देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर की 70वीं वर्षगांठ पर बोलते हुए कहा कि जब वे एक पत्रकार हुआ करते थे तब उन्होंने नेताओं को पारंपरिक भारतीय परिधान धोती-कुर्ता छोड़ने की सलाह दी थी। उसके स्थान पर ट्राउजर और शर्ट अपनाने की बात कही थी। 70 वीं सालगिराह पर आरएसएस आडवाणी की आत्मकथा के एक अध्याय को फिर से प्रकाशित करने वाला है।
1960 में एक सहायक संपादक के रूप में ऑर्गनाइजर से जुड़े थे आडवाणी
आपको बता दें कि वह पहले एक फिल्म समीक्षक थे बाद में उन्होंने ऑर्गनाइजर में एक संपादकीय के पद पर काम किया। आडवाणी 1960 में एक सहायक संपादक के रूप में ऑर्गनाइजर से जुड़े थे। अपने पुराने दिनों की याद करते हुए आडवाणी कहते हैं कि ऑर्गनाइजर में काम करने के लिए मुझे अपने पहनावे में बदलाव करना आवश्यक था। जब मैंने राजस्थान में आरएसएस के प्रचारक के तौर पर काम करना शुरु किया तो मैंने ट्राउजर और शर्ट पहनना बंद कर दिया और धोती-कुर्ता पहनने लगा। मेरे सहयोगियों के टिप्पणी की कि धोती-कुर्ता नेताओं की ड्रेस है। यह पत्रकारों को शोभा नहीं देती है।
पश्चिमी पोशाक आधुनिकता का संकेत नहीं
अडवाणी ने कहा कि, मैंने कभी नहीं माना है कि पश्चिमी पोशाक आधुनिकता का संकेत है। धोती-कुर्ता पहनने से मेरा मन और शरीर दोनों अधिक आरामदायक महसूस करते हैं। आडवाणी 1942 में आरएसएस में शामिल हुए और उन्हें राजस्थान में पूर्णकालिक काम सौंपा गया। इसके बाद वे जनसंघ में शामिल हो गए। इसके बाद जब वे भाजपा में शामिल हुए तो 1957 में दिल्ली चले आए।
ऑर्गनाइजर में शुरू किया था फिल्म समीक्षा का कॉलम
आडवाणी का परिवर्तन केवल पोशाक तक ही सीमित नहीं रहा। आडवाणी अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि उन्होंने प्रकाशन को थोड़ा कम गंभीर बनाने की भी कोशिश की थी। उस समय ऑर्गनाइजर में केवल राजनीतिक विषयों पर ही लिखा जाता था। हमने निर्य़ण लिया कि अखबार एक फिल्म का भी स्तंभ जाएगा। इसे बाद मैंने स्वेच्छा से एक 'नेत्र' नाम से इस पर कॉलम लिखना शुरू कर दिया।