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केजरीवाल के कमजोर विधायकों पर भाजपा की नजर, मैन टू मैन मार्किंग की रणनीति से होगा चुनावी मुकाबला

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नई दिल्ली। भाजपा के एक अंदरुनी सर्वे के मुताबिक दिल्ली में अरविंद केजरीवाल लोकप्रियता की दौड़ में अन्य नेताओं से तो आगे हैं लेकिन उनके कई विधायकों के खिलाफ लोगों में नाराजगी है। भाजपा इस स्थिति को अपने हक में भुनाना चाहती है। उसने केजरीवाल को टारगेट करने की बजाय उन सीटों पर फोकस बढ़ा दिया है जहां आप विधायकों से लोग खुश नहीं हैं। सीट वाइज आप विधायकों की नाकामियों की लिस्ट तैयार की जा रही है । इसके बाद चुनाव मैदान में हल्ला बोला जाएगा। जिस तरह फुटबॉल में मजबूत विपक्षी से निबटने के लिए मैन टू मैन मार्किंग की रणनीति अपनायी जाती है उसी तर्ज पर भाजपा भी चुनावी गेम प्लान तैयार कर रही है। अगर आप के ये कमजोर माने जाने वाले विधायक हार जाते हैं तो केजरीवाल खुद ब खुद कमजोर हो जाएंगे।

केजरीवाल अपराजेय नहीं

केजरीवाल अपराजेय नहीं

2017 में राजौरी गार्डन विधानसभा उपचुनाव में आप ने अपनी जीती हुई सीट गंवा दी थी। इस हार से इतना तो जाहिर हुआ ही कि लोग आप के विधायकों से नाखुश होने लगे हैं। अरविंद केजरीवाल का करिश्माई नेतृत्व रहने के बाद भी आप की हार हुई। इससे यह स्थापित हुआ कि केजरीवाल विधानसभा चुनाव में भी अपराजेय नहीं हैं। उन्हें भी हराया जा सकता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी केजरीवाल का आभामंडल दरक गया था। ये सच है कि लोकसभा चुनाव की प्राथमिकताएं और मुद्दे विधानसभा चुनाव से अलग होते हैं। लेकिन इस बात पर भी गौर करना जरूरी है कि आखिर आप, कांग्रेस से भी पिछड़ कर तीसरे नम्बर की पार्टी क्यों बन गयी। उसका वोट प्रतिशत 54.34 (2015) से गिर कर 18.2 पर क्यों पहुंच गया ? यानी आप की स्थिति 2015 वाली नहीं रह गयी है।

आप में दूसरे दलों की तरह ही दुर्गुण

आप में दूसरे दलों की तरह ही दुर्गुण

अन्ना आंदोलन की आग में तप कर जब अरविंद केजरावील दलीय राजनीति में आये थे तो ऐसा लगा था कि भारत में एक पवित्र, पारदर्शी और सिद्धांतवादी राजनीति का श्रीगणेश होने वाला है। ईमानदारी की मशाल से केजरीवाल राजनीति को स्वच्छ और सुंदर बना देंगे और एक नये भारत का निर्माण करेंगे। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। आम आदमी पार्टी में भी अन्य दलों की तरह लोभ-लालच, भ्रष्टाचार, घात-प्रतिघात और गुटबाजी ने जड़ें जमा लीं। केजरीवाल के महिला एवं बालविकास मंत्री संदीप कुमार सेक्स स्कैंडल, खाद्य आपूर्ति मंत्री आसिम अहमद रिश्वत मांगने, कानून मंत्री जितेन्द्र सिंह तोमर फर्जी डिग्री और परिवहन मंत्री गोपाल राय बस सेवा में भ्रष्टाचार के आरोप के कारण इस्तीफा देने पर मजबूर हुए थे। 2017 में राज्यसभा की तीन सीटों को लेकर आम आदमी पार्टी में खूब महाभारत हुआ था। राज्यसभा सांसद बनने के लिए आप के क्रांतिकारी नेता आपस में लड़ने लगे थे। इस विवाद में आशुतोश और कुमार विश्वास जैसे मजबूत नेता केजरीवाल से दूर हो गये। केजरीवाल पर निरंकुश और एकाधिकारवादी होने का आरोप लगा। प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव जैसे लोगों ने पहले ही किनार कर लिया था। केजरीवाल जिस मकसद से राजनीति में आये थे वह पूरा नहीं हुआ। वह भी एक जोड़-तोड़ करने वाल एक नेता बन कर रह गये। केजरीवाल की स्थिति बदली तो आप के हारने का सिलसिला भी शुरू हो गया।

केजरीवाल के शासन पर सवाल

केजरीवाल के शासन पर सवाल

बिजली-पानी के मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल की भले वाहवाही हो रही हो लेकिन दिल्ली की जहरीली हवा उनकी सभी उपलब्धियों पर भारी पड़ रही है। दिल्ली हाईकोर्ट बढ़ते वायु प्रदूषण के लिए केजरीवाल सरकार को कई बार फटकार लगा चुका है। केजरीवाल सरकार प्रदूषण नियंत्रण में नाकाम साबित हुई है। हालांकि इसके लिए केन्द्र सरकार भी जवाबदेह है। दिल्ली में 12 नवम्बर 2019 को हवा में पीएम-10 का स्तर 429 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर रिकॉर्ड किया गया था। यह मानक से चार गुणा अधिक था। इसी तरह हवा में पीएम 2.5 का स्तर 303 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था। यह मानक से पांचगुणा अधिक था। नवम्बर में दिल्ली की हवा इतनी जहरीली हो गयी थी कि एडवाइजरी जारी करनी पड़ी थी। भारत-बांग्लादेश क्रिकेट मैच के दौरान जो फील्ड की स्थिति थी उससे भारत की बहुत किरकिरी हुई थी। हाईकोर्ट ने केजरीवाल सरकार से पूछा था कि ग्रीन कवर बढ़ाने के लिए सरकार ने क्या उपाय किये हैं ? दिल्ली में हो रहे लगातार निर्माण पर रोक क्यों नहीं लग रही ? , सड़क पर पानी छिड़काव के लिए सरकार ने क्या व्यवस्था की ? कोर्ट ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया था। अगर दिल्ली रहने लायक ही नहीं रहेगी तो फिर यहां राजनीति कौन करेगा ?

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English summary
BJP's eye on weak Kejriwal MLAs, man to man marking strategy will be an electoral battle
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