चिराग की चाल से बिहार में पहली बार बनेगा भाजपा का सीएम! पर्दे के पीछे की कहानी
नई दिल्ली। बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद यहां की राजनीति दांवपेंच तेज हो गए हैं। प्रदेश में एनडी गठबंधन से अलग होकर लोक जनशक्ति पार्टी ने सियासी सरगर्मी को बढ़ा दिया है। अहम बात यह है कि लोजपा ने गठबंधन से अलग होने की तो बात कही है, लेकिन वह भाजपा के साथ बनी रहेगी। यानि भाजपा और जदयू प्रदेश में एक साथ चुनाव लड़ेंगे जबकि लोजपा अकेले ही मैदान में उतरेगी। जिस तरह से लोजपा के अध्यक्ष चिराग पासवान ने गठबंधन से अलग होने के बाद चुनाव में अपनी जीत को लेकर आत्मविश्वास जताया है, उसे देखकर यह समझना काफी अहम है कि आखिर किस रणनीति के तहत चिराग ने यह फैसला लिया है।
नीतीश पर निशाना, मोदी की तारीफ
बिहार में एनडीए से अलग होने के बाद भी चिराग पासवान भाजपा की तारीफ कर रहे हैं, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की है। चिराग के इस कदम से दो अहम संकेत मिलते हैं, पहला ये कि चिराग पासवान नीतीश कुमार सरकार के खिलाफ लोगों में जो असंतोष है वह उसे अपनी पार्टी के हित में वोट बैंक की तरह देख रहे हैं। जबकि दूसरा संकेत साफ है कि वह चुनाव में भाजपा की मदद करके उसे प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनने में अहम भूमिका निभाना चाहते हैं। खुद भाजपा लगातार इस कोशिश में लगी है कि वह प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में खुद को स्थापित करें, ऐसे में चिराग का यह कदम भाजपा के लिए मददगार साबित हो सकता है।
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भाजपा पर नहीं लगाया एक भी आरोप
बिहार में एनडीए से अलग होने के बाद भाजपा और जदयू दोनों ने इसे बहुत अधिक महत्ता नहीं दी है। लेकिन जिस तरह से घटनाक्रम सामने आया है, उससे साफ है कि भाजपा इस पूरी सियासत के मायने को समझ रही है। एलजेपी का चुनावी प्रचार जदयू को नुकसान पहुंचा सकती है, ऐसे में जदयू जिन सीटों पर मजबूत है, वहां एलजेपी उसे चोट जरूर पहुंचा सकती है और कुछ सीटों का नुकसान भी पहुंचा सकती है। यही नहीं चिराग के इस कदम से विपक्ष को नीतीश कुमार पर निशाना साधने का मौका मिलेगा। अपनी मांग पूरी नहीं होने पर चिराग पासवान ने एक बार भी भाजपा पर यह आरोप नहीं लगाया है।
क्या कहते हैं आंकडे़
2015 के चुनाव की बात करें तो लोजपा को बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों में से सिर्फ दो सीटों पर जीत मिली थी, जबकि कुल वोट फीसदी महज 4.83 का था। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में लोजपा ने सभी 6 सीटों पर चुनाव जीता था, लेकिन इस जीत को मोदी लहर के तौर पर देखा गया। इस बार लोजपा बिहर में सभी 143 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है और उसे इस बात की उम्मीद है कि वह भाजपा को जदयू के वोट काटकर मदद पहुंचाएगी, साथ ही भविष्य के लिए संगठनात्मक रूप से बिहार में अपनी जमीन को मजबूत करेगी।
कैसे अहम हो सकता है लोजपा का अलग होना
एलजेपी के एक नेता का दावा है कि बेहतर से बेहतर स्थिति में भी पार्टी पीएम मोदी की छवि का इस्तेमाल करके 10-15 सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है और भाजपा की सीटों की संख्या बढ़ाने में मदद कर सकती है। ऐसे में अगर भाजपा और जदयू अकेले पूर्ण बहुमत का आंकड़ा 122 को हासिल नहीं कर पाती हैं तो लोजपा की भूमिका अहम हो सकती है। जदयू की बात करें तो उसे उम्मीद है कि वह एक बार फिर से भाजपा के साथ मिलकर 2010 की तरह 243 में से 206 सीटों पर जीत करने की उम्मीद कर रही है। अगर एलजेपी 10-12 सीटों का फर्क भी डालती है तो भी गठबंधन को कोई खास दिक्कत नहीं होगी।
भाजपा की नजर सीटों की संख्या बढ़ाने परे
यां यहय भी समझना होगा कि लोजपा के गठबंधन से अलग होने के बाद राजद की अगुवाई वाला विपक्ष इस मौके को भुनाने की कोशिश करेगा और नीतीश कुमार पर जमकर हमला करेगा भाजपा हमेशा से ही गठबंधन में बिहार में दूसरे नंबर की पार्टी रही है। भाजपा के पास 53 सीटें हैं जबकि जदयू के पास 69, ऐसे में कई लोगों को यह उम्मीद है कि लोजपा के अलग होने से भाजपा को मदद मिलेगी और उसे अपनी सीटों की संख्या को बढ़ाने में सफलता मिलेगी।