गौतम अदानी के 25 साल पहले हुए अपहरण का बिहार और यूपी कनेक्शन
गौतम अदानी बीते कई दिनों से ख़बरों में है, लेकिन कम लोगों को पता है कि 25 साल पहले उनका अपहरण भी हुआ था. कैसे छूटे थे वो अपहरणर्ताओं के चंगुल से.
भारत के मशहूर उद्योगपति गौतम अदानी बीते कुछ दिनों से लगातार ख़बरों में हैं.
अदानी के साम्राज्य पर हिंडनवर्ग की एक रिपोर्ट का अब तक गहरा असर दिख रहा है. इस रिपोर्ट के आने से पहले गौतम अदानी जहां दुनिया के टॉप-5 अमीरों में शामिल थे, वहीं अब वो इस सूची में 15वें स्थान पर आ गए हैं.
इस सूची में रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के मुकेश अंबानी एक बार फिर से गौतम अदानी से कहीं आगे निकल गए हैं.
निश्चित रूप से यह अदानी के लिए एक बहुत बड़ी चोट की तरह है. हाल ही में एक भारतीय निजी चैनल के साथ बातचीत में गौतम अदानी ने उन दौ मौक़ों के बारे में बताया जब उन्हें बहुत बुरा अनुभव मिला था.
इस बातचीत में गौतम अदानी ने कहा कि हर किसी के जीवन में कुछ लम्हे ऐसे आते हैं जिन्हें भूल जाना ही अच्छा होता है.
अदानी जिन दो वाक़यों का ज़िक्र कर रहे थे उनमें से एक था 26 नवंबर 2008 का मुंबई हमला जब उन्होंने मौत को क़रीब से देखा था. इस हमले के वक़्त अदानी ताज होटल में मौजूद थे, जहां गोलीबारी में कई लोगों की जान चली गई थी.
वहीं दूसरा मौक़ा वो था जिसके बारे में बहुत कम लोगों को पता है. ये घटना साल 1998 की है जब बंदूक़ की नोक पर उनका अपहरण किया गया था. अपहरण के बाद उन्हें छोड़ने के लिए 15 करोड़ रुपये की फिरौती मांगी गई थी.
कैसे हुई थी किडनैपिंग
1 जनवरी 1998 की शाम गौतम अदानी अपने एक क़रीबी शांतिलाल पटेल के साथ कार में अहमदाबाद के कर्णावती क्लब से निकलकर मोहम्मदपुरा रोड की ओर बढ़ने वाले थे.
गुजरात के वरिष्ठ पत्रकार राज गोस्वामी के मुताबिक़, ''गौतम अदानी का 'कर्णावती क्लब' से बाहर निकलते वक्त अपहरण किया गया था. तब कर्णावती क्लब अहमदाबाद का सबसे बड़ा क्लब था.
उनकी कार के आगे एक स्कूटर आकर खड़ी हो गई. अदानी को अपनी कार रोकनी पड़ी. तभी पास के एक मारुति वैन से क़रीब छह लोग बाहर निकले और बंदूक़ की नोक पर गौतम अदानी और शांतिलाल पटेल को अपनी वैन में बिठा लिया.''
अपहरण के बाद इन दोनों को किसी अज्ञात जगह पर रखा गया था.
अपहरण की घटना गुरुवार को हुई और शनिवार को अदानी सुरक्षित अपने घर पहुंच गए थे.
तब इस मामले में अहमदाबाद के सरखेज पुलिस स्टेशन में एफ़आईआर भी दर्ज कराई गई थी.
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कैसे छूटे अदानी, इस पर कई कहानियां
उत्तर प्रदेश कैडर के आईपीएस अधिकारी रहे और यूपी एसटीएफ़ के संस्थापकों में से एक राजेश पाण्डेय ने बीबीसी को बताया, "अपहरण का यह तरीक़ा बबलू श्रीवास्ताव गैंग का जाना-माना तरीक़ा था. इस अपहरण की योजना भी बबलू श्रीवास्तव ने बनाई थी."
पत्रकार राज गोस्वामी कहते हैं, "गौतम अदानी को पुलिस ने छुड़ाया या वो ख़ुद भाग निकले या फिर उनकी रिहाई के बदले पैसे दिए गए, इस पर कई तरह की बातें की जाती हैं. लेकिन निश्चित तौर पर कुछ भी नहीं पता कि वो कैसे बच कर निकले थे."
वहीं राजेश पाण्डेय का दावा है कि ''इस मामले में गौतम अदानी को बचाने के लिए अपहरणकर्ताओं को को पांच करोड़ रुपये की फिरौती दी गई थी. यह रक़म दुबई में इरफ़ान गोगा को दी गई थी. इरफ़ान गोगा अपहरण की फ़िरौती वसूलने के लिए बबलू श्रीवास्ताव के गैंग का हिस्सा था.''
राजेश पाण्डेय के मुताबिक़, उनको यह बात अपहरण और क़त्ल के कई मामलों में बरेली जेल में बंद बबलू श्रीवास्तव ने ख़ुद बताई थी. राजेश पाण्डेय बताते हैं कि उस दौर में अवैध रक़म के ट्रांसफ़र के लिए हवाला एक बड़ा ज़रिया था.
राजेश पाण्डेय के अनुसार, गौतम अदानी को अहमदाबाद में ही एक फ़्लैट में रखा गया था. अदानी इस अपहरण से इतने घबरा गए थे कि वे इस मामले में कभी गवाही देने नहीं पहुंचे. लिहाज़ा इस अपहरण के सभी अभियुक्त साक्ष्य की कमी के आधार पर बरी कर दिए गए.
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सभी अभियुक्त बरी कर दिए गए
अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस की एक ख़बर के मुताबिक़, गौतम अदानी को आज़ाद करने के बदले अपहरणकर्ताओं ने 15 करोड़ की फिरौती मांगी थी. इस मामले में नौ लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई थी. लेकिन साल 2018 के अंत तक सभी को आरोपों से बरी कर दिया गया.
गौतम अदानी अपहरण मामले में साल 2009 में चार्जशीट दाख़िल की गई थी. इसमें पूर्व गैंगस्टर फ़ज़ल उर रहमान उर्फ़ फ़ज़लू और भोगीलाल दर्जी उर्फ़ मामा को मुख्य अभियुक्त बनाया गया था.
फ़ज़ल उर रहमान मूल रूप से बिहार का रहने वाला था. उसे साल 2006 में नेपाल बॉर्डर से गिरफ़्तार किया गया था, जबकि भोगीलाल दर्जी को किडनैपिंग के 14 साल बाद यानी 2012 में दुबई से गिरफ़्तार कर भारत लाया गया था.
लेकिन अदालत में सुनवाई के दौरान अपहरणकर्ताओं की पहचान के लिए अदानी ने कोई पहल नहीं की. यहां तक कि वो कभी अदालत में भी गवाही देने के लिए भी नहीं पहुंचे.
सबूतों के अभाव में आख़िरकार दोनों मुख्य अभियुक्तों को साल 2018 में अदालत ने बरी कर दिया. इससे पहले बाक़ी जिन लोगों को मामले का अभियुक्त बनाया गया था, वो भी इसी आधार पर बरी हो गए थे.
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अपहरण का यूपी कनेक्शन
गौतम अदानी के अपहरण के बाद साल 1998 में ही छह सितंबर को गुजरात के एक करोड़पति नमक व्यवसायी बाबू भाई सिंघवी के अपहरण की कोशिश की गई थी.
राजेश पाण्डेय के मुताबिक़, ''बाबू भाई सिंघवी अपनी कार में थे. उन्हें एक स्कूटर और एक मारुति वैन की हलचल पर संदेह हो गया और उन्होंने अपनी कार भीड़भाड़ वाले इलाक़े की ओर भगा दी. यह मामला गुजरात के भुज ज़िले का था.''
बाबू भाई सिंघवी भारत के तत्कालीन गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी के क़रीबी थे. इसलिए पुलिस इस मामले को लेकर बहुत ज़्यादा गंभीर और सक्रिय हो गई.
भुज के तत्कालीन एसपी केशव प्रसाद ने जांच में पाया कि जिन लोगों ने बाबू भाई सिंघवी के अपहरण की कोशिश की थी, वो लगातार उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, मुंबई, नेपाल और दुबई के कुछ नंबरों पर बात कर रहे थे.
इनमें सबसे ज़्यादा बात लखनऊ के एक नंबर पर हो रही थी. उसके बाद केशव प्रसाद ने यूपी पुलिस के आईपीएस अधिकारी और यूपी स्पेशल टास्क फ़ोर्स के तत्कालीन प्रमुख अरुण कुमार से संपर्क किया.
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बबलू श्रीवास्तव गैंग की भूमिका
केशव प्रसाद को शक था कि अपहरण की इस कोशिश में उत्तर प्रदेश के कुख्यात अपराधी श्रीप्रकाश शुक्ल के गैंग का हाथ हो सकता है.
लेकिन यूपीएसटीएफ़ ने पाया कि यह श्रीप्रकाश शुक्ल गैंग का नहीं बल्कि यूपी के ही बबलू श्रीवास्तव गैंग से जुड़े लोगों का काम है. बबलू श्रीवास्तव एक ज़माने में अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के लिए काम करता था.
1993 में मुंबई में हुए सीरियल बम ब्लास्ट में नाम आने के बाद दाऊद इब्राहिम का गिरोह सांप्रदायिक आधार पर टूट गया था जिसमें बबलू श्रीवास्तव और छोटा राजन समेत कई लोगों ने अलग गैंग बना लिया था.
बबलू श्रीवास्तव को 1995 में सीबीआई सिंगापुर से गिरफ़्तार कर भारत ले आई थी. एसटीएफ़ से जुड़े राजेश पाण्डेय के मुताबिक़, बबलू श्रीवास्तव को उस वक़्त इलाहाबाद के पास नैनी जेल में रखा गया था.
यूपीएसटीएफ़ की जांच में ही पता चला था कि गौतम अदानी का अपहरण भी बबलू श्रीवास्तव गैंग ने करवाया था. बबलू श्रीवास्तव जेल में रहकर भी अपने गैंग को संचालित करता था.
राजेश पाण्डेय के मुताबिक़, बबलू श्रीवास्तव को अपहरण का मास्टरमाइंड माना जाता था. उसने देशभर में 15 से ज़्यादा करोड़पति व्यवसायियों का अपहरण करवाया था, जिसके बदले में उसने मोटी रक़म वसूली थी.
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राजेश पाण्डेय के मुताबिक़, 'बबलू श्रीवास्तव ने उनको बताया था कि गौतम अदानी को गुरुवार के दिन किडनैप किया गया था. अपहरण के बाद फिरौती के लिए बातचीत चलती रही. फिर शनिवार को अदानी ने अपहरणकर्ताओं से कहा कि बैंक कल तक बंद रहेगा और बिना बैंक के वो 15 करोड़ नहीं दे सकते. अदानी ने कहा था कि मुझे ढूंढते हुए आज शाम तक पुलिस यहां ज़रूर पहुंच जाएगी और पुलिस हक़ीकत में वहां पहुंच गई थी.'
हालांकि इन तथ्यों पर गौतम अदानी का कोई पक्ष बीबीसी के पास मौजूद नहीं है.
राजेश पाण्डेय बताते हैं कि गौतम अदानी से लेकर बाक़ी कई अपहरण और क़त्ल के मामलों का ज़िक्र वो 'किस्सागोई' में कर चुके हैं, लेकिन अभी तक किसी ने उनके तथ्यों पर सवाल नहीं उठाया है.
राजेश पाण्डेय का दावा है कि यह कोई सुनी-सुनाई बात नहीं है, हमारी सीधी बात बबलू श्रीवास्तव से हुई थी जिसने गौतम अदानी का अपहरण कराया था.
साल 1998 तक गौतम अदानी गुजरात के बड़े कारोबारी बन चुके थे. बड़े भाई के प्लास्टिक के व्यवसाय से जुड़कर साल 1988 से 1992 के दौरान गौतम अदानी का इम्पोर्ट का कारोबार 100 टन से कई गुना बढ़कर 40 हज़ार टन पहुँच गया था.
जल्दी ही अदानी ने निर्यात में भी हाथ आज़माना शुरू कर दिया और बहुत जल्द वो बड़े एक्सपोर्टर बन गए, जो लगभग हर सामान का निर्यात करते थे. बाद में मुंद्रा पोर्ट से जुड़ने के बाद अदानी के कारोबार में बड़ा उछाल आया था.
राजेश पाण्डेय मानते हैं कि उस समय तक अदानी राष्ट्रीय स्तर पर बहुत मशहूर उद्योगपति नहीं थे, इसलिए उनके अपहरण की कहानी के बारे में लोगों को ज़्यादा जानकारी नहीं है.
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