सिर्फ इंटेलीजेंस की असफलता नहीं है असम में हुई आतंकी कार्रवाई
गुवाहाटी। मंगलवार को असम में आतंकवादियों ने 60 से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिया और पूरे देश को सन्न कर डाला। असम में हुया यह अब तक का ऐसा हमला है जिसे सबसे निर्ममता से अंजाम दिया गया है।
एक हमला जिसमें बच्चों और महिलाओं को निशाना बनाया गया। यह हमले पूरी तरह से इंटलीजेंस एजेंसी और साथ ही साथ असम पुलिस की असफलता का भी साफ सुबूत हैं। इन सबसे अलग भी कुछ और वजहें हैं जिनके बारे में जिक्र करना काफी जरूरी है ।
सरकार की असफलता
वर्ष 1987 में जब असम में बोडोलैंड मूवमेंट की शुरुआत हुई, उस समय से ही राज्य में शांति समझौतों की शुरुआत हुई थी। उस समय से ही यह स्थिति काफी जटिल होती गई और सरकारों की ओर से कोई भी ध्यान नहीं दिया गया।
कई तरह के शांति समझौतों के बावजूद आज तक इस मुद्दे का कोई हल नहीं निकल सका है। सरकार के साथ विद्रोहियों ने दो शांति समझौतों को साइन भी किया लेकिन वह पूरी तरह से बेनतीजा साबित हुए। समस्या बढ़ती गई और मंगलवार की घटना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
पहला शांति समझौता
असम की सरकार और बोडो के बीच 20 फरवरी 1993 को पहला शांति समझौता साइन किया गया था। उस समय यह तय किया गया था कि असम की सरकार ने तय किया कि वह अलग-अलग सीमाओं का निर्धारण करेगी।
साथ ही सरकार की ओर से उन गांवों की पहचान भी की जाएगी जहां पर बोडो जनसंख्या 50 प्रतिशत से ज्यादा है।
उस समय सरकार ने फैसला किया था कि 50 प्रतिशत से ज्यादा बोडो जनसंख्या वाले राज्यों को एक स्वतंत्र कमेटी में शामिल कर लिया जाएगा। सरकार ने फैसला तो कर लिया लेकिन आज तक अपने उस फैसले को पूरा नहीं कर पाई।
दूसरा शांति समझौता
सरकार और बोडो लिब्रेशन टाइगर्स के बीच दूसरा समझौता 10 फरवरी 2003 को हुआ। यह समझौता कुछ हद तक सफल रहा। समझौते के बाद बोडोलैंड टेरीटोरियल काउंसिल को बनाया गया जिसे असम के कोकराझार, बाकसा, उदालगुरी और चिरांग तक विस्तृत किया गया।
वहीं इस बात की जानकारी भी मिली कि इन इलाकों में जहां बोडोलैंड काउंसिंल की स्थापना हुई थी, वहां पर जनसंख्या करीब 60 प्रतिशत थी। इन इलाकों में लोगों की ओर से बोडोलैंड के निर्माण का विरोध किया गया और समस्या बढ़ती गई।
2005 में हुआ युद्धविराम
वर्ष 2005 में एनडीएफ की ओर से सीजफायर का ऐलान किया गया। लेकिन उस समय बोडो समूह दो हिस्सों में बंट गया था और इस वजह से काफी समस्या आई। जहां एक तरफ बोडो संगठन ने सीजफायर साइन कर लिया था तो वहीं बोडो मूवमेंट का संस्थापक रंजन डिमरी इस बात के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं था।
वर्षद 2010 में डिमरी को गिरफ्तार किया था और सरकार को आगे आने के लिए कहा गया। इस बारे में भी जानकारी मिली डिमरी बांग्लादेश की ओर से मिल रहे समर्थन के बाद कई तरह की आतंकी गतिविधियों को संचालित कर रहा था।
जब यह मूवमेंट दो हिस्सों में बंट गया है तो वहीं अब सरकार भी दो अलग-अलग समूहों से बात कर संतुलन बनाने की कोशिशों में लगी हुई है। अभी तक सरकार को इस पर कोई भी बड़ी सफलता हाथ नहीं लग सकी है।
सरकार की मुश्किल
वहीं इन सारे मुद्दों के बीच ही एनडीएफ के बनने के साथ ही बोडो मूवमेंट दो हिस्सों में बंट गया था। मंगलवार को हुआ हमला इस मूवमेंट के दूसरे धड़े की ओर से किया गया हमला है जिसे एनडीएफबी सोंगबीजित के नाम से जाना जाता है।
एडीएफबी (एस) और सरकार के बीच किसी भी तरह के समझौते की गैरमौजूदगी में संगठन की ओर से हमले और बढ़ा दिए गए हैं। हालांकि सरकार असम में पहले से ही कई दूसरे मूवमेंट का सामना कर रही है और सभी संगठनो को संतुष्ट करने में उसे खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।