Bengal news:ममता बनर्जी के भवानीपुर सीट छोड़ने पर क्या बोल रहे हैं वहां के लोग ?
कोलकाता: थोड़ी असमंजस के बाद तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी ने सिर्फ नंदीग्राम से ही चुनाव लड़ना तय किया है। शुरू में वह अपनी दक्षिण कोलकाता संसदीय सीट के अंदर आने वाली भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र को छोड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं थीं। माना जा रहा है कि नंदीग्राम जाकर वह बीजेपी को यह चुनौती देना चाहती हैं कि उसने सुवेंदु अधिकारी को उनसे छीनकर कोई बहुत बड़ा तीर नहीं मारा है और वह अधिकारी को उनके गढ़ में घुसकर मात देने का माद्दा रखती हैं। लेकिन, सवाल है कि उनके इस फैसले से उनके अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों को कैसा लग रहा है। क्या वह मुख्यमंत्री के इस तरह से सीट छोड़कर जाने से खुश हैं ?
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भवानीपुर में वोटों का गणित
भवानीपुर छोड़कर टीएमसी नेता के नंदीग्राम जाने को लेकर यहां के लोग क्या सोच रहे हैं, इसपर चर्चा करने से पहले कुछ ठोस तथ्यों को टटोल लेना जरूरी है। 2016 के विधानसभा चुनाव में वह अपनी सीट से 25,000 से ज्यादा वोटों से जीती थीं। तब बंगाल में बीजेपी का कोई सियासी वजूद नहीं था। लेकिन, सिर्फ तीन साल में वह पूरे बंगाल में टीएमसी के खिलाफ सबसे बड़ी चुनौती बन गई। उसने खुद को एंटी-तृणमूल वोट का सबसे बड़ा ठिकाना साबित कर दिखाया। भाजपा के इस बढ़ते असर से सीएम की भवानीपुर सीट भी अछूती नहीं रही। 2019 के लोकसभा चुनाव में दक्षिण कोलकाता सीट से पार्टी की सांसद माला रॉय को भवानीपुर असेंबली क्षेत्र में 61,137 वोट मिले थे। जबकि, भाजपा प्रत्याशी चंद्र कुमार बोस यहां सिर्फ 3,168 वोट से उनसे पीछे रह गए । उन्हें 57,969 वोट मिले थे।
क्या बोल रहे हैं भवानीपुर के लोग ?
न्यूज18 ने भवानीपुर में कुछ वोटरों से जो बातचीत की है, उससे लगता है कि कुछ तो सीएम बनर्जी के फैसले से पूरी तरह सहमत हैं, लेकिन कुछ लोगों को लग रहा है कि शायद भाजपा सही कह रही है कि उन्होंने अपनी कमजोर स्थिति देखकर ही यह सीट छोड़ने में भलाई समझी है। कोलकाता की भवानीपुर का संबंध देश की कई महत्वपूर्ण हस्तियों से रहा है। इनमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सत्यजीत रे और अभिनेता उत्तम कुमार जैसे लोग भी शामिल हैं। खुद ममता भी यहीं की रहने वाली हैं और यहीं से वह चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री भी बनी हैं। उनके घर हरीश चंद्र चटर्जी लेन वाले लोगों से जैसे ही उनके इस फैसले पर सवाल पूछा जाता है तो कई तो फौरन कुछ कहने से कन्नी काटने में ही भलाई समझते हैं। लेकिन, कुछ लोग बहुत ज्यादा निराश भी नहीं हुए हैं। मसलन, स्थानीय दुर्गा स्वीट के पंटू उलटे पूछ लेते हैं, 'इससे क्या फर्क पड़ता है? उनका यहां घर है और वह हमेशा यहीं की निवासी रहेंगी, अगर वह फिर से मुख्यमंत्री बनती हैं। ' 73 साल के टीएमसी समर्थक रंजीत मुखर्जी तो भारत में उनकी कहीं से भी जीत को लेकर निश्चिंत हैं। वो कहते हैं, 'जो ये कहते हैं कि वह हार की डर से यहां से चली गई हैं वो गलत हैं। पूरे देश में वह कहीं से भी चुनाव लड़ेंगी, दीदी जीत जाएंगी।'
टीएमसी ने भवानीपुर में लगा दी है पूरी ताकत
उनके ऐसे भी समर्थक हैं, जो सोच रहे हैं कि उनके इस फैसले में पूरी तरह से राजनीति घुसी हुई है। ऐसे ही एक समर्थक जगन्नाथ मल्लिक कहते हैं, 'यह राजनीति है। वह बीजेपी को दिखाना चाहती हैं और इसीलिए उन्होंने वहां से चुनाव लड़ने का फैसला किया है। वह सुवेंदु अधिकारी को चुनौती देना चाहती हैं।' जाहिर है कि वह 10 साल से यहीं से विधायक रही हैं तो उन्होंने इलाके में विकास के भी कई काम करवाए हैं। जल जमाव की समस्या से भी कुछ हद तक लोगों को छुटकारा दिलाने की कोशिश की है। लेकिन, अब इस सीट को टीएमसी के पास बरकरार रखना खुद बनर्जी के लिए भी बड़ी चुनौती है। अगर यह सीट पार्टी हार जाती है तो भाजपा के दावे की पुष्टि होगी। इसलिए सत्ताधारी दल यहां भी अपनी पूरी ताकत झोंकने में लगी है।
'हमें लगता है कि क्या बीजेपी सही कह रही है?'
यही वजह है कि ममता के फैसले को लेकर दबी-जुबान में ही सही कुछ आशकाएं भी उठ रही हैं। मसलन, यहीं के अंचोल दास कहते हैं, 'मुझे लगता था कि उन्हें यहीं से लड़ना चाहिए था। वह यहां से क्यों गईं? अगर वह दो बार चुनाव जीत गईं तो वह तीसरी बार भी जीततीं। अब हमें लगता है कि क्या बीजेपी सही कह रही है?' यही वजह ही कि तृणमूल ने इसे प्रतिष्ठा की सीट बना ली है। ममता मैदान में नहीं हैं, लेकिन उनके मुस्कुराते चेहरे वाले पोस्टर हर जगह छाए हुए हैं, लेकिन उनसे पार्टी के उम्मीदवार सोभनदेब चट्टोपाध्याय पूरी तरह से गायब कर दिए गए हैं। (आखिरी दोनों तस्वीरें-सांकेतिक)