'वारसी' और 'हसरत' की शायरी से काकोरी कांड तक, 4601 रुपए की लूट का FIR और देश के नाम कुर्बान होने वाला हीरो
गोरे कहते थे देखते हैं कितना विश्वास इस चूहे को अपने खुदा पर उस वक्त रहेगा जब इसे टांगा जाएगा? लेकिन वो तो शेर था। उसकी शक्ति का अंदाजा भी लगा पाना गोरों के बस की बात नहीं थी। जज्बा ऐसा ही देख कर दूर से ही दुश्मन की रूह कांपने लगे। तभी तो चार दिन पहले ही गोरों अपनी कायरता दिखा दी। लेकिन मां भारती के इस वीर सपूत के सीने से निकली चिंगारी ने कायरों के नापाक इरादों को जलाकर नष्ट कर दिया।
आजादी का अमृत महोत्सव
देश के आजादी के 75 वें साल में भारत अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। ऐसे में देश के इन जांबांज असली हीरो को याद करना उनके लिए लिए हमारी एक सच्ची श्रध्दांजलि हो सकती है। 19 दिसम्बर, 1927 का वो काला दिन फैजाबाद मंडल कारागार (अब अयोध्या मंडल) के काले इतिहास में दर्ज है। दरअसल, जेल यानी कारागार गुनाहों की सजा भुगतने के लिए होता है लेकिन यहां तो आततायियों ने देश के लिए लड़ने वाले हमारे हीरो को ही कैद कर दिया और बाद में फांसी पर लटका दिया। लेकिन कायरता इतनी कि जिस फांसी होनी थी उससे चार दिन पहले ही उन्हें फंदे से लटकाया गया। यह बात फांसी के वक्त मौजूद एक व्यक्ति ने खुदा लिखी।
अशफाक उल्ला खां भारत के वीर सपूत
हम बात कर रहे हैं भारत के वीर सपूत अशफाक उल्ला खां की। जिन्होंने गोरों के सामने सर ना झुकाने का निश्चय किया और देश के लिए अपनी अंतिम सांस तक लड़े। देश की आजादी के लिए वो जो जेल में हर रोज पांचों वक्त की नमाज पढ़ा करते थे। भारत को आजाद कराने के लिए अशफाक को ट्रेन में डकैती भी डालनी पड़ी।
गोरों के दांत खट्टे करने की योजना
दरअसल, 1923 में शचीन्द्रनाथ सान्याल ने HRA की स्थापना की थी। चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह भी इस संगठन के सदस्य थे। संगठन के सदस्य शुरुआत में आजादी की क्रांति से जुड़े कार्यों के लिए धन जुटाने के लिए सरकारी खजाने को लूटने का कार्य भी करते थे। उनका मानना था कि हमारे देश का धन के हमारी आजादी छीनी जा रही है तो ये इसका दुरुपयोग है। बाद में रणनीति बदली और इसे HSRA नाम दिया गया। काकोरी ट्रेन की डकैती इन क्रांतिकारियों की पहली बड़ी कोशिश थी। जिसमें अशफाक उल्ला खां, राम प्रसाद बिस्मिल शामिल थे।
9 अगस्त 1925 को काकोरी ट्रेन एक्शन प्लान को अंजाम
10 क्रांतिकारियों ने काकोरी ट्रेन एक्शन प्लान बनाया था। 9 अगस्त की सुबह होते ही अशफाक, शचीन्द्रनाथ और राजेंद्र लाहिड़ी आठ डाउन पैसेंजर गाड़ी के दूसरे दर्जे के डिब्बे में सवार हुए। उन्होंने पहले से तय जगह पर जंजीर खींचकर ट्रेन रोकी। बाकी के 7 लोग रामप्रसाद बिस्मिल, केशव चक्रवर्ती, मुरारी लाल, मुकुन्दी लाल, बनवारी लाल, मन्मथ नाथ गुप्त और आजाद इसी ट्रेन की थर्ड क्लास के डिब्बे में सवार थे। तय जगह पर जंजीर खींची गई और सरकारी खजाना लूटा गया। तिजोरी में काफी नगद था, इसे साथ लाए कपड़े में गठरी की तरह बांध लिया गया। यहां से 9 क्रांतिकारी पैदल ही लखनऊ की तरफ निकल गए। आजाद ने पास ही के पार्क में रुकने का फैसला किया। सुबह सभी बड़े अखबारों में 'काकोरी के पास बड़ी डकैती' हेडलाइन के साथ खबर छपी। अंग्रेज इससे काफी बौखला गए थे। अंग्रेजों ने अपने जासूस HRA के सदस्यों की पीछे लगा दिए।
'हसरत' और 'वारसी' की शायरी
अशफाक
उल्ला
खां
वाल्टर
स्कॉट
की
कविता
‘लव
ऑफ
कंट्री'
से
काफी
प्रेरित
हुए
थे।
इससे
उनके
अंदर
देशभक्ति
की
ज्वाला
इस
कदर
भड़क
उठी
की
अंग्रेज
उससे
भयभीत
हो
गए।
इस
कविता
ने
बचपन
से
ही
अशफाक
के
मन
पर
गहरी
छाप
छोड़ी।
आगे
चलकर
वो
‘वारसी'
और
‘हसरत'
उपनाम
से
शायरी
लिखने
लगे।
अशफाक
ने
देश
प्रेम
की
कविताएं
लिखीं।
उनकी
एक
शायरी
के
दो
लाइनें
उनकी
देश
के
प्रति
भावनाओं
को
बताने
के
लिए
काफी
हैं...
कुछ
आरजू
नहीं
है,
है
आरजू
तो
यह
है
रख
दे
कोई
जरा-सी
खाके
वतन
कफन
में।
4601 रुपये 15 आना और 6 पाई की लूट
काकोरी शहीद स्माक के बाहर एक शिलालेख है। जिस पर काकोरी कांड के बारे में लिखा है। इसमें लिखा है कि करीब 8,000 रुपये लूटे गए थे। मामले में कुल 50 लोगों की गिरफ्तारियां हुई। वहीं मामले में दर्ज FIR की कॉपी के मुताबिक 4601 रुपये 15 आना और 6 पाई की लूट हुई थी। काकोरी एक्शन प्लान में 10 लोग शामिल थे। मामले में कुल 40 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
बारात का बहाना
काकोरी शहीद मंदिर के सामने 3 फीट ऊंचा और 7 फीट चौड़ा मिट्टी का टीला है। जहां टिन की 2 फीट की प्लेट पर पर लिखा है ‘कंकरहा बाबा'। दरअसल, ये कहा जाता है कि यहां पहले से एक धार्मिक स्थल था। जहां काकोरी कांड के वक्त क्रांतिकारियों ने मीटिंग की थी। ये बाजनगर का देव-स्थान है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इसका नाम तो काकोरी बाद में हुआ। लोगों को कहना है कि जिस क्रांतिकारी ट्रेन एक्शन को अंजाम देने वाले थे तो लोगों को बताया गया कि आज यहां एक बारात आने वाली है।
अशफाक ने गोरों को दिया जवाब
बाद में काकोरी ट्रेन एक्शन के नायकों पर मुकदमा चला और उन्हें फांसी दी गई। राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां दोनों क्रांतिकारियों का इस प्लान में अहम रोल पाया गया। राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर तो अशफाक उल्ला खां फैजाबाद कारगार में फांसी दी गई। फांसी के दिन आम दिनों के तरह वो सुबह उठे और रोज की नमाज और करसरत की। फांसी पहले जब उनकी जंजीरें खुलीं तो चेहरे पर अलग तेज था। कोई गम नहीं। उनके अंतिम शब्द आज भी देशवासियों के कानों गूंजते हैं। उन्होंने कहा 'मेरे हाथ लोगों की हत्याओं से जमे नहीं हैं...मेरे खिलाफ जो भी आरोप लगाए गए...वो झूठे हैं...अल्लाह ही अब मेरा फैसला करेगा'। इन शब्दों के साथ उन्होंने फांसी का फंदा अपने गले में डाल लिया।
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