Ayodhya Verdict: कौन है रामलला विराजमान जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने दे दी विवादित जमीन, जानिए पूरी कहानी
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नई दिल्ली। अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने इस फैसले में विवादित को रामलला विराजमान को दी है। यानी विवादित जमीन राम मंदिर के लिए दे दी गई है। जबकि मुस्लिम पक्ष को अलग स्थान पर जगह देने के लिए कहा गया है। यानी कोर्ट ने अयोध्या में ही मस्जिद बनाने के लिए अलग जगह जमीन देने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही सरकार को एक नया ट्रस्ट बनाने का भी आदेश दिया है जिसे वह जमीन मंदिर निर्माण के लिए दी जाएगी। ऐसे में आपको ये जानने की जरूरत है कि आखिर कौन हैं रामलला विराजमान और क्या है उनकी पूरी कहानी
कौन हैं रामलला विराजमान
सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीन का मालिक रामलला को माना है। आपको बता दें कि ये रामलला ना तो कोई संस्था है और ना ही कोई ट्रस्ट, यहां बात स्वयं भगवान राम के बाल स्वरुप की हो रही है। यानी सुप्रीम कोर्ट ने रामलला को लीगल इन्टिटी मानते हुए जमीन का मालिकाना हक उनको दिया है।
हिंदू परपंरा में भगवान को माना गया है वैध व्यक्ति
हिंदू परंपरा के अनुसार, भगवान को वैध व्यक्ति माना गया है, जिनके अधिकार और कर्तव्य होते हैं। भगवान किसी संपत्ति के मालिक भी हो सकते हैं। साथ ही वे किसी पर मुकदमा दर्ज कर सकते हैं या उनके नाम पर मुकदमा दर्ज कराया जा सकता है। हिंदू कानून में देवताओं की मूर्तियों को वैध व्यक्ति माना गया है। विवादित स्थल पर जहां राम लला की जन्मभूमि मानी जाती है, वहां राम लला एक नाबालिग रूप में थे। इस केस में रामलला को भी नाबालिग और न्यायिक व्यक्ति मानते हुए उनकी तरफ से कोर्ट में ये मुकदमा विश्व हिंदू परिषद के सीनियर नेता त्रिलोकी नाथ पांडे ने रखा था।
रामलला को पैरोकार बनाया गया
रामलला विराजमान को प्रतिनिधित्व त्रिलोकनाथ पांडे करते हैं और पांडे विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के सदस्य हैं। देवकी नंदन अग्रवाल जो कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के रिटायर जज हैं, वह पहले 'अगले मित्र' थे।अग्रवाल की तरफ से साल 1989 में केस दायर किया गया था जिसमें रामलला विराजमान और श्रीराम जन्मभूमि का प्रतिनिधित्व करने का दावा किया गया था। पांडे जो कि वीएचपी के सीनियर लीडर हैं वह साल 2002 में अग्रवाल की मृत्यु के बाद अगले मित्र बन गए थे।