Ayodhya Ram Temple Verdict: फैसला जल्दी सुनाने के लिए उतावले हैं CJI रंजन गोगोई
बेंगलुरू। भारतीय उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और अयोध्या राम मंदिर विवाद केस के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित संवैधानिक पीठ के पांच सदस्यों में से एक रंजन गोगोई आगामी 18 नवंबर को रिटायर होने जा रहे है। अयोध्या राम मंदिर केस के शांतिपूर्ण और तेजी से निपटारे क्रेडिट रंजन गोगोई को ही जाता है, क्योंकि बिना किसी बाधा के महज 39 दिनों में करीब 400 वर्ष पुराने विवादित परिसर के ट्रायल आश्चर्य से भर देते हैं। हालांकि पूरा देश विवादित परिसर के जल्दी निपटारे के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहा है, लेकिन खुद सीजेआई रंजन गोगोई भी अयोध्या राम मंदिर विवाद के जल्द निपटारे के लिए कम उतावले नहीं हैं।
गौरतलब है गत 16 अक्टूबर को अयोध्या राम मंदिर केस का आखिरी ट्रायल था, जिसके कायदे से चैन बैठने के बावजूद लगातार समीक्षा बैठक कर रहे हैं। यही नहीं, सीजेआई गोगोई ने अपनी पूर्व निर्धारित विदेश यात्रा को भी रद्द कर दिया है। इससे आकलन किया जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अयोध्या राम मंदिर केस को लेकर कितने संजीदा है या यह कह सकते हैं कि सीजेआई रंजन गोगोई बिना किसी बाधा के अयोध्या राम मंदिर केस का फैसला अपने हाथों से करना चाहते हैं।
18 नवंबर को रिटायर होने जा रहे सीजेआई रंजन गोगोई जानते हैं कि थोड़ी लापरवाही से उनके हाथ से यह ऐतिहासिक हाथ से निकल सकता है इसलिए वो बिना किसी हीलाहवाली दिखाए ट्रायल के शुरू से लेकर अब तक नज़र बनाए हुए हैं। यही कारण है कि पहले जहां अयोध्या राम मंदिर केस का ट्रायल 18 अक्टूबर को पूरा होना था, सीजेआई के निर्देश पर ट्रायल को 2 दिन पहले ही पूरा कर लिया गया जबकि सीजेआई ने ट्रायल को पूरा करने की पिछली तारीख 17 अक्टूबर निर्धारित की थी।
सीजेआई रंजन गोगोई का यह उतावालपन बहुत कुछ कहता है। इसको उनके रिटायरमेंट से भी जोड़कर देखा जा सकता है, क्योंकि भी जज यह नहीं चाहेगा कि उसके हाथ से रिटायरमेंट के समय ऐतिहासिक फैसला लिखने का मौका निकल जाए और फिर अयोध्या राम मंदिर विवाद तो 400 वर्ष पुराना वाद है, जिस पूरे विश्व की नजर लगी हुई है।
शायद यही कारण है कि रंजन गोगोई लगातार केस पर नजर रखे हुए थे और समय से पहले अयोध्या राम मंदिर केस के ट्रायल को पूरा करवाने में सफल हुए। माना जा रहा है कि ट्रायल पूरे होने के एक माह बाद यानी 16 नवंबर तक अयोध्या राम मंदिर केस का फैसला आ जाएगा, लेकिन रंजन गोगोई की संजीदगी से लगता है कि सुप्रीम कोर्ट यह फैसला 15-20 दिन के भीतर कभी भी सुना सकती है।
संभावना जताई जा रही है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला राम मंदिर के पक्ष में दे सकती है और विवादित परिसर की पूरी जमीन हिंदूओं को दी सकती है, क्योंकि ट्रायल के दौरान मुस्लिम पक्षकारों विवादित परिसर पर उनके अधिकारों के लिए दिए गए दलील और तर्क कानूनी दृष्टि से बेहद लचीले और कमजोर थे, जिसके चलते मुस्लिम पक्षकारों के वकील राजीव धवन और जफरयाब जिलानी को सुप्रीम कोर्ट से माफी भी मांगनी पड़ गई है।
ट्रायल के आखिरी दिन तो मुस्लिम पक्षकारों की बौखलाहट इतनी बढ़ गई कि उन्होंने हिंदु महासभा द्वारा कोर्ट में पेश किए गए एक ऐतिहासिक नक्से तक को फाड़ दिया। सुप्रीम कोर्ट ने बाकायदा मुस्लिम पक्षकार के वकील राजीव धवन को फटकार लगानी पड़ गई।
पूरे 39 दिन चले ट्रायल के बाद मुस्लिम पक्षकारों और मुस्लिम समुदायों को ऐसा आभास हो चुका है कि विवादित परिसर को लेकर उनका दावा उतना मजबूत नहीं हैं। मुस्लिम पक्षकार के वकील जफरयाब जिलानी संवैधानिक पीठ के जजों के सामने गलत बयानी करते पकड़े गए। उन्होंने मुस्लिम दावों को जबरन साबित करने के लिए पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई से मिले सबूतों पर सवाल उठा दिए थे।
ट्रायल द्वारा मुस्लिम पक्षकारों को राम चबूतरे को लेकर गलतबयानी का भी खामियाजा भोगना पड़ सकता है। मुस्लिम पक्षकार पहले वाद में राम चबूतरे को राम जन्म स्थान बता चुका था, लेकिन ट्रायल के आखिरी दिनों में मुस्लिम पक्षकार के वकील राजीव धवन बयान से मुकर गए। तब सुप्रीम कोर्ट के जज ने वाद में दिए उनके बयान को याद दिलाया तो मुस्लिम पक्षकारों को बाकायदा शर्मिंदा होकर कोर्ट से माफी मांगनी पड़ी।
विवादित परिसर पर हिंदुओं का दावा इसलिए भी मजूबत हैं, क्योंकि वर्ष 2010 इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ भी विवादित भूमि को अपने निर्णय में रामजन्मभूमि घोषित कर चुकी है न्यायालय ने बहुमत से निर्णय देते हुए कहा था कि विवादित भूमि जिसे रामजन्मभूमि माना जाता रहा है, उसे हिंदू गुटों को दे दिया जाए। अपने फैसले में लखनऊ पीठ न्यायालय ने यह भी कहा कि वहां से रामलला की प्रतिमा को नहीं हटाया जाएगा।
न्यायालय ने यह भी पाया कि चूंकि सीता रसोई और राम चबूतरा समेत कुछ भागों पर निर्मोही अखाड़े का भी कब्ज़ा रहा है। हालांकि तब दो न्यायधीधों की पीठ ने अपने निर्णय में मुस्लिम पक्ष को विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा इस तर्क देने का फैसला सुनाया कि विवादित भूमि के कुछ भागों पर मुसलमान भी प्रार्थना करते रहे हैं, जिसे दोनों पक्षों यानी हिंदू और मुस्लिम मानने से इनकार कर दिया था और मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ से सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे तक पहुंची अयोध्या राम मंदिर विवाद की लड़ाई अब अंतिम दौर में हैं, जिसमें अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना बाकी है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई खुद भी फैसले के लिए बहुत अधिक वक्त नहीं लेना चाहते है। पिछले 39 दिनों में मामले की रोजाना हुई सुनवाई के बाद हिंदू-मुस्लिम पक्षकारों की दलीलों पर निर्णय लगभग लिया जा चुका है।
चूंकि सुप्रीम कोर्ट को फैसला सुनाने से पहले उसको लिखना पड़ेगा। इसलिए फैसले के लिखने तक के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या राम मंदिर विवादर पर फैसला फिलहाल सुरक्षित रख लिया है। बुधवार, 16 अक्टूबर, 2019 शाम 5 बजे खत्म हुए अंतिम बहस हिंदू पक्षकारों की थी। जिसके बाद सर्वोच्च अदालत फैसला रिजर्व रखने की घोषणा कर दी। फैसला एक माह बाद आएगा या उससे पहले, लेकिन यह तय है कि सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के फैसलों के अनुरूप मंदिर के पक्ष में फैसला सुना सकती है।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में पांच जजों की पीठ ऐतिहासिक फैसले को लिखने में कम से कम एक माह ले सकते हैं, जो कि करीब 40000 पन्नों पर लिखा जा सकता है। हालांकि अभी तक सुप्रीम कोर्ट की ओर आधिकारिक रूप में अभी तक फैसले की कोई तारीख को निश्चित घोषणा नहीं की गई है।
मामले पर बहस खत्म होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को मोल्डिंग ऑफ रिलीफ के लिए तीन दिन का समय दिया गया है। गुरूवार को मामले जुड़े मुद्दों पर विचार करने और फैसला लिखने के बारे में संविधान पीठ के पांचों न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट चैंबर में मीटिंग की। इसकी नोटिस बुधवार देर शाम सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार (लिस्टिंग) ने जारी किया था।
जानकारों के अनुसार फैसला सुरक्षित रखने बाद जजों की ऐसी बैठक सामान्यता नहीं होती है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एस.ए. बोबडे, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एस.ए. नजीर का नाम शामिल हैं।
अयोध्या राम मंदिर विवाद का ट्रायल कई मायनों में ऐतिहासिक रहा और माना जा रहा है कि 17 नवंबर को विवादित परिसर पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई एक ऐतिहासिक फैसले को लिखने जा रहे हैं। सीजेआई रंजन गोगोई इसके महत्ता को समझते हैं, जो उनकी तन्मयता, कसमसाहट और उतावलेपन में परिलक्षित भी हो चुका है।
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