Assembly elections results 2018: इन चुनावों में राम मंदिर का मुद्दा क्यों नहीं चला?
नई दिल्ली। देश के पांच राज्यों में मचे चुनावी समर के नतीजों की तस्वीर धीरे-धीरे साफ हो रही है। इन नतीजों से सबसे ज्यादा झटका भाजपा को लगा है। भाजपा को उम्मीद थी कि लंबे अरसे से सत्ता में काबिज होने के बाद सीटों की संख्या भले ही घट जाए लेकिन कुर्सी नहीं जाएगी। लेकिन अब तक के चुनावों के नतीजे देखकर लगा है कि भाजपा के पैर तले से धरती कई राज्यों में सरकने वाली है।
मध्य
प्रदेश
में
भाजपा
113
सीटों
पर
आगे
है।
वहीं
कांग्रेस
107
और
बीएसपी
4
सीटों
पर
आगे
हैं।राजस्थान
में
कांग्रेस
102
सीटों
पर
आगे
है
जबकि
बीजेपी
70
सीटों
पर
वहीं
बीएसपी
06सीट
पर
आगे
खड़ी
है।
तेलंगाना
में
कांग्रेस
और
बीजेपी
दोनों
पर
टीआरएस
बहुत
भारी
पड़ी
है।
टीआरएस
86
सीट
पर
आगे
है
वहीं
कांग्रेस
22
सीट
पर
बीजेपी
02
और
अन्य
09
सीट
पर
आगे
हैं।छत्तीसगढ़
में
15
साल
से
चली
आ
रही
रमन
सिंह
की
सरकार
अब
सत्ता
से
बाहर
होने
के
कगार
पर
है।
रुझान
के
अनुसार
कांग्रेस
68
सीट
पर
आगे
है
और
बीजेपी
12
सीट
पर
आगे
है।
जबकि
बीएसपी
9
सीट
पर
आगे
चल
रही
है।
राम मंदिर और हिंदुत्व के मुद्दों ने बीजेपी की कई नैय्या पार लगाई है ऐसे में इन चुनावों में मंदिर का मुद्दा क्यों नहीं चल पाया। बीजेपी इन चुनावों के दौरान राम का नाम भरपूर इस्तेमाल क्यों नहीं करती है? यहां जानिए कारण:
मुस्लिमों की कम आबादी :
मंदिर का मुद्दा बीजेपी के लिए हमेशा से धर्म से प्रेरित रहा है और बीजेपी मंदिर के नाम पर वोट बैंक की फसल काटती आई है। इन पांच राज्यों में मुस्लिमों की आबादी काफी कम रही है। यही वजह हैं कि बीजेपी को इस मुद्दे को अलापे की नौबत कम ही आई है। 2011 के सेंसस के अनुसार राजस्थान में मुस्लिमों की आबादी 9.07 % है और यहां यह लोग अल्पसंख्यक के तौर पर हैं। मध्य प्रदेश में मुस्लिम जनसंख्या 6.57% , छत्तीसगढ़ में 2.02 % है। मुस्लिम और हिंदू के तुष्टीकरण की जरूरत ज्यादा नहीं होते और मंदिर मस्जिद जैसे मुद्दे कारगर साबित नहीं होते हैं। यही मसला है कि वहां राम मंदिर जैसे मुद्दे नहीं चल पाते।छत्तीसगढ़ में भी नक्सलियों की परेशानी से लोग त्रस्त हैं ऐसे में वहां जान बचाना प्रथामिकता होती है और अन्य मुद्दे बाद में आते हैं।
किसानों के मुद्दे पर था ज्यादा जोर:
किसानों की हितैषी होने का दावा हर सरकार का तकिया कलाम रहा है। 15 साल से सत्ता में रहे शिवराज सिंह के कार्यकाल के दौरान किसानों की स्थिति में कोई बदलाव नजर नहीं आया। इस साल देश में किसानों के विभिन्न संगठनों ने भी मुद्दों का रुख पलटा। महाराष्ट्र से किसानों का मार्च और खुद एमपी में किसानों के प्रदर्शन ने गैर जरुरी मुद्दों को नजरअंदाज करने में सहायक भूमिका निभाई। मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी सीमांत मंडी नीमच में प्याज पचास पैसे प्रति किलोग्राम और लहसुन दो रुपये प्रति किलोग्राम थोक के भाव बिका। कांग्रेस ने किसानों को लेकर 10 दिन में कर्ज माफी का वादा किया जिसकी वजह से बीजेपी को कम वोट पड़े। आपको याद होगा कि मंदसौर में किसानों के प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में 6 लोगों की मौत हुई थी। यही हाल छत्तीसगढ़ में भी था जहां किसान लगातार फसलों के दाम को लेकर बीजेपी के खिलाफ प्रदर्शन करता आया है।
एससी एसटी एक्ट और आरक्षण :
बीजेपी को लेकर नाराजगी के दो और कारण है। बीजेपी का पक्का वोटबैंक माना जाने वाले सवर्ण इस बार नाराज है। आरक्षण और एससी/एसटी एक्ट इनकी नाराजगी की वजह हैं। इस दौरान सवर्णों के सबसे अधिक उग्र आंदोलन मध्य प्रदेश में ही हुए। दूसरा कारण बेरोजगारी है। युवा को कहना है कि देश में भले विकास हो रहा हो लेकिन युवाओं के लिए रोजगार के प्रबंध नहीं हो रहे हैं। युवाओं का यही गुस्सा बैलेट बॉक्स के परिणामों से नजर आया।
यही वो बुनियादी और तार्किक मुद्दे थे जिनके हो हल्ले के आवाज में मंदिर जैसा मुद्दा पीछे छूट गया और चुनाव में श्रीराम बीजेपी की नैय्या पार लगाने के काम नहीं आ सकें।