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क्या सुनियोजित तरीक़े से मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है?

देश के दसियों शहरों में चुन-चुन कर दुकानों में आग लगाने और तोड़फोड़ की घटनाओं में बहुत सारी बातें ऐसी हैं जो सब जगह एक जैसी हैं.

पिछले कुछ दिनों में बिहार और बंगाल में हिंसा और तनाव की लगभग दस घटनाएँ हुईं, इन सभी घटनाओं में एक ख़ास तरह का पैटर्न दिखता है. यही वजह है कि इन्हें स्थानीय कारणों से ख़ुद-ब-ख़ुद शुरू हुआ बवाल मानना मुश्किल है.

By BBC News हिन्दी
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क्या सुनियोजित तरीक़े से मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है?

देश के दसियों शहरों में चुन-चुन कर दुकानों में आग लगाने और तोड़फोड़ की घटनाओं में बहुत सारी बातें ऐसी हैं जो सब जगह एक जैसी हैं.

पिछले कुछ दिनों में बिहार और बंगाल में हिंसा और तनाव की लगभग दस घटनाएँ हुईं, इन सभी घटनाओं में एक ख़ास तरह का पैटर्न दिखता है. यही वजह है कि इन्हें स्थानीय कारणों से ख़ुद-ब-ख़ुद शुरू हुआ बवाल मानना मुश्किल है.

सभी जगह बवाल की शुरुआत से लेकर अंजाम तक एक जैसा है, हिंसा करने वाले और उसके शिकार भी सभी शहरों में एक जैसे ही हैं. कहने का मतलब ये है कि इस तरह की हिंसा और आगज़नी बिना सुनियोजित, संगठित और नियंत्रित हुए मुमकिन नहीं है.

बीबीसी के दो संवाददाताओं, रजनीश कुमार और दिलनवाज़ पाशा ने बिहार और बंगाल के उन शहरों का दौरा किया जहाँ रामनवमी के जुलूस के बाद हिंसा हुई और बीसियों दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया.

इन सभी मामलों में 9 ऐसी बातें हैं जो हर जगह कमोबेश एक जैसी हैं जिससे ये लगता है कि यह एक साज़िश है, न कि अलग-अलग शहरों में हुई छिटपुट हिंसा की घटनाएँ.

1. उग्र जुलूस, युवा, झंडे, बाइक...

बिहार में सांप्रदायिक तनाव और मुसलमानों के ख़िलाफ़ हमले का सिलसिला पिछले महीने 17 मार्च से शुरू हुआ था. 17 मार्च को केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे अर्जित चौबे ने भागलपुर में हिन्दू नववर्ष पर एक शोभायात्रा निकाली थी. इसके बाद रामनवमी तक औरंगाबाद, समस्तीपुर के रोसड़ा और नवादा जैसे शहर सांप्रदायिक नफ़रत की चपेट में आए.

सभी शहरों में रामनवमी के उग्र जुलूस निकाले गए. जुलूस में बाइक सवार युवा और माथे पर भगवा परचम अनिवार्य रूप से थे. इसके साथ ही मोटरसाइकिल में भगवा झंडे भी बंधे थे. रोसड़ा के जुलूस में बाइक नहीं थी, लेकिन इसमें शामिल लोग काफ़ी उग्र थे और उनके हाथों में भगवा झंडे थे.

नवादा में भी इस तरह का जुलूस निकला था, लेकिन प्रशासन की सतर्कता के कारण उस दिन कुछ नहीं हुआ. हालांकि जुलूस के ठीक तीन दिन बाद ही 30 मार्च को मूर्ति तोड़ने का बहाना बनाकर मुसलमानों पर पत्थरबाज़ी की गई. औरंगाबाद के साथ पश्चिम बंगाल के आसनसोल में भी ऐसा ही हुआ.

2. जुलूस के आयोजक...तरह तरह के संगठन, लेकिन सब हिंदुत्व से जुड़े

सभी शहरों में जुलूस के आयोजक एक विचार वाले संगठन थे. इनके नाम भले अलग-अलग थे लेकिन सत्ताधारी बीजेपी के साथ-साथ आरएसएस और बजरंग दल का समर्थन हासिल था. भागलपुर, औरंगाबाद और रोसड़ा में तो बीजेपी और बजरंग दल के नेता सीधे तौर पर शामिल थे.

औरंगाबाद के जुलूस में शहर के बीजेपी सांसद सुशील सिंह, बीजेपी के पूर्व विधायक रामाधार सिंह और बजरंग दल नेता अनिल सिंह शामिल थे. अनिल सिंह को गिरफ़्तार भी किया गया है.

रोसड़ा में भी बीजेपी और बजरंग दल के नेताओं के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई है. भागलपुर में तो केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे ही शामिल थे. इस दौरान कुछ नए हिन्दुवादी संगठनों का भी जन्म हुआ और इन्होंने जुलूस में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.

भागलपुर में भगवा क्रांति और औरंगाबाद में सवर्ण क्रांति मोर्चा का जन्म हुआ. सांप्रदायिक झड़प के बाद इन दोनों संगठनों के नेता मिलने और बात करने को तैयार नहीं हुए. इसके साथ ही पश्चिम बंगाल आसनसोल में भी रामनवमी के जुलूस को बीजेपी का समर्थन हासिल था.

3. ख़ास रूट से जाने की ज़िद

सभी शहरों में मुस्लिमों की घनी आबादी वाले इलाक़ों में जाने की ज़िद की गई. नवादा में रामनवमी से पहले ज़िला प्रशासन ने शहर के धार्मिक नेताओं को बुलाकर एक शांति बैठक कराई और उसमें प्रस्ताव रखा कि जुलूस के दौरान मुस्लिम इलाक़ों में पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे से परहेज़ किया जाए तो बीजेपी ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई.

यहां तक कि नवादा के सांसद और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि पाकिस्तान मुर्दाबाद का नारा भारत में नहीं लगेगा तो कहां लगेगा. औरंगाबाद, रोसड़ा और भागलपुर और आसनसोल में भी ऐसा ही हुआ. जुलूस का रूट जानबूझकर घनी आबादी वाला मुस्लिम इलाक़ा चुना गया.

4. आपत्तिजनक नारे और डीजे

जहां-जहां भी जुलूस निकाले गए वहां मुसलमानों के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक नारों के साथ डीजे बजाए गए. 'जब-जब हिन्दू जागा है तब-तब मुस्लिम भागा है' जैसे नारे लगाए जा रहे थे. औरंगाबाद और रोसड़ा में तो हिन्दुओं ने बताया कि किस तरह मुसलमानों को आपत्तिजनक नारों से भड़काने की कोशिश की गई.

औरंगाबाद में क़ब्रिस्तान में भगवा झंडे लगा दिए गए तो रोसड़ा की तीन मस्जिदों में तोड़फोड़ के साथ भगवा झंडे लगा दिए गए. सभी जुलूसों में एक ही कैसेट का इस्तेमाल किया गया. ऐसा ही आसनसोल में भी हुआ जहां वीएचपी के एक नेता ने भड़काऊ नारों की बात को स्वीकार किया.

5. क्रिया प्रतिक्रिया के आरोप-- पत्थरबाज़ी या मूर्ति तोड़ने के आरोप

आरएसएस और बीजेपी के नेताओं ने मुसलमानों के ख़िलाफ़ हमले को क्रिया की प्रतिक्रिया बताया. बिहार बीजेपी प्रदेश महामंत्री राजेंद्र सिंह ने बीबीसी से कहा कि मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा क्रिया की प्रतिक्रिया है.

वहीं औरगंबाद में भी आरएसएस के एक नेता सुरेंद्र किशोर सिंह ने भी यही बात कही. औरंगाबाद, रोसड़ा और भागलपुर में जुलूस के दौरान अफ़वाह फैला दी गई कि मुसलमानों ने चप्पल या पत्थर फेंके हैं. ऐसा कर भीड़ को मुसलमानों के ख़िलाफ़ उकसाया गया. हालांकि प्रशासन भी कहने की स्थिति में नहीं है कि पत्थर या चप्पल मुसलमानों ने फेंके थे या नहीं.

6. सीमित हिंसा लेकिन दुकानों को चुनकर निशाना बनाना

इन शहरों में कोई व्यापक हिंसा नहीं की गई जिनसे किसी की जान चली जाए. लोगों की जीविका पर हमला बोला गया. औरंगाबाद में जुलूस के बाद हिंसा में 30 दुकानें जला दी गईं. इन 30 दुकानों में 29 मुसलमानों की थीं. ज़ाहिर है मुसलमानों की दुकान को जानबूझकर निशाना बनाया गया.

प्रशासन भी इस बात को स्वीकार कर रहा है कि दुकानों में आग लगाने वालों को पता था कि कौन सी दुकान हिन्दू की हैं और कौन सी मुसलमान की. औरंगाबाद में बजरंग दल के नेता अनिल सिंह के घर में भी मुसलमानों की दुकानें थीं लेकिन वो सुरक्षित रहीं. इन घटनाओं में किसी की जान नहीं गई, लेकिन उनकी जीविका को इस तरह बर्बाद किया गया कि आने वाले लंबे वक़्त तक उन पर इसका गहरा असर रहेगा.

7. प्रशासन की भूमिका

प्रशासन की भूमिका सभी शहरों में लचर रही है. औरंगाबाद में 26 मार्च के जुलूस में मस्जिद में चप्पल, क़ब्रिस्तान में झंडे और मुसलमानों के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक नारे के वाक़ये सामने आए इसके बावजूद 27 मार्च को मुस्लिम इलाक़ों में जुलूस जाने की अनुमति दी गई.

प्रशासन से पूछा तो उनका कहना था कि लिखित वादा किया गया था कि अब कुछ नहूीं होगा इसलिए अनुमति दी गई. नवादा में प्रशासन ने मुस्लिम इलाक़ों में नारा लगाने से परहेज़ करने का प्रस्ताव रखा तो बीजेपी ने ख़ारिज कर दिया. भागलपुर, रोसड़ा और आसनसोल में भी प्रशासन भीड़ के सामने ख़ुद को बेबस पाया.

8. सोशल मीडिया पर अफ़वाहें

बिहार में जिन शहरों में सांप्रदायिक नफ़रत फैली वहां प्रशासन ने सबसे पहले इंटरनेट को कुछ दिनों के लिए बंद कर दिया. सोशल मीडिया पर तेज़ी से अफ़वाहें फैलाई गईं. औरंगाबाद में व्हॉट्सऐप पर अफ़वाह फैलाई गई कि मुसलमानों ने चार दलित हिन्दुओं की हत्या कर दी है.

इसके साथ ही रामनवमी को लेकर यह अफ़वाह फैलाई गई कि मुसलमानों ने जुलूस पर हमला किया है. आसनसोल में सोशल मीडिया पर बड़े दंगे की अफ़वाह फैला दी गई जिससे लोग अपना घर-बार छोड़कर भागने लगे.

9. मुसलमानों में आतंक, विजय का वातावरण

इन घटनाओं के ज़रिए मुसलमानों में डर पैदा किया गया. औरंगाबाद में इमरोज़ नाम के व्यक्ति के जूते के शोरूम को दंगाइयों ने जलाकर ख़ाक कर दिया था. उन्होंने खाड़ी के देशों से पैसे कमाकर बिज़नेस शुरू किया था.

अब उन्होंने फ़ैसला किया है वो इस देश में कोई बिज़नेस नहीं करेंगे. वो अपने परिवार के साथ हॉन्ग कॉन्ग जाने की तैयारी कर रहे हैं. और शहरों के मुसलमानों का भी कहना है कि वो अपना बिज़नेस समेटने की तैयारी कर रहे हैं. दूसरी तरफ़ इस हिंसा में शामिल हिन्दू युवाओं को लगता है कि यही उनकी विजय है. भागलपुर में शेखर यादव नाम के एक व्यक्ति ने कहा कि वो ईंट फेंकेंगे तो ऐसा होगा ही.

दिल्ली यूनिवर्सिटी में सोशल साइंस के प्रोफ़ेसर सतीश देशपांडे का कहना है कि सांप्रदायिक नफ़रतों के जितने वाक़ये हैं उनका पैटर्न एक समान इसलिए है क्योंकि इनका उद्देश्य एक है.

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देशपांडे ने कहा, ''मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत एक राजनीतिक क़दम है, लेकिन इसे मिलने वाले सामाजिक समर्थन के दायरे को बढ़ाने की कोशिश की जा रही है. मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत को ज़्यादा से ज़्यादा समर्थन पाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं. किसी भी सांप्रदायिक घटना को संरक्षण मिलता है तो समाज के पूर्वाग्रह भी खुलकर सामने आते हैं. मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा अब स्वीकार्य बन रही है जबकि दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा की जो स्वीकार्यता है उसे दबाने की कोशिश की जाती है.''

देशपांडे कहते हैं, ''दंगों में जब किसी संगठन की संलिप्तता होती है तो चुने हुए तौर-तरीक़े अपनाए जाते हैं. भारत की राजनीति में इस तरह की हिंसा को स्थायी रूप देने कोशिश की जा रही है. अब खुलेआम दंगा-फ़साद करने की ज़रूरत नहीं है. अब कोशिश है कि बिना कोई असाधारण घटना घटे ही आतंक पैदा कर दिया जाए. उस समुदाय को इतना झुकाया जाए कि बिल्कुल बेबस हो जाए.''

''मुसलमानों के ख़िलाफ़ इस हिंसा और नफ़रत को सामान्य ज़िंदगी का हिस्सा बनाने की रणनीति पर काम हो रहा है. सांप्रदायिक हिंसा का सहजीकरण और सामान्यीकरण किया जा रहा है. दक्षिणपंथी राजनीति का परचम लहराने में जाति हमेशा से आड़े आती रही है इसलिए ये लामाबंदी का आधार धर्म बनाते हैं और जाति के ख़िलाफ़ अपनी सुविधा केहिसाब से बोलते हैं.''

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English summary
Are the Muslims being targeted in a planned way
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