राहुल का आदेश, गहलोत का निवेदन वाले सचिन के बयान के ये हैं सियासी मतलब
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जयपुर। राजस्थान विधानसभा की 200 सीटों के लिए 7 दिसंबर को मतदान होना है। हर पांच साल बाद सत्ता परिवर्तन के ट्रेंड वाले इस राज्य में कांग्रेस सबसे ज्यादा जोर लगा रही है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की तुलना में राजस्थान कांग्रेस का संगठन भी ज्यादा मजबूत है। बुधवार को राजस्थान से दो अहम खबरें आईं। पहली बीजेपी सांसद हरीश मीणा कांग्रेस में शामिल हो गए। दूसरी- अशोक गहलोत ने पत्रकारों को बताया, 'मैं और सचिन पायलट दोनों विधानसभा चुनाव लड़ेंगे।' अशोक गहलोत जब यह ऐलान कर रहे थे तब सचिन पायलट उनके बगल में ही बैठे थे। चुनाव लड़ने के बारे में सचिन पायलट ने कहा, 'राहुल गांधी जी के आदेश के बाद और अशोक गहलोत जी के निवेदन पर मैं इस बार विधानसभा चुनाव लड़ूंगा।' 'राहुल गांधी जी का आदेश और अशोक गहलोत जी का निवेदन', सचिन पायलट के ये शब्द बताते हैं कि वह खुद को गहलोत से बड़ा नेता मानकर चल रहे हैं।
अशोक गहलोत के पक्ष में आया आलाकमान से आदेश
इस बात में शक नहीं कि सचिन पायलट और अशोक गहलोत के चुनाव लड़ने से पार्टी को काफी फायदा होगा, लेकिन कांग्रेस आलाकमान के इस फैसले ने राजस्थान कांग्रेस में गुटबाजी को और हवा दे दी है। पायलट खेमा लंबे समय से चाह रहा था कि अशोक गहलोत चुनावी राजनीति से दूर रहें, जिससे कि सचिन पायलट मुख्यमंत्री पद के इकलौते दावेदार के तौर पर बने रहें। सचिन पायलट खेमे ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी तक यह संदेश पहुंचाया भी, लेकिन फैसला अशोक गहलोत के पक्ष में आया। गहलोत का अनुभव सचिन पायलट के युवा जोश पर भारी पड़ता दिख रहा है।
अशोक गहलोत ने धमाकेदार वापसी की
एक के बाद एक राज्यों में हार का सामना कर रही है, कांग्रेस ने राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद रणनीति थोड़ी बदली है। अब हर चुनाव में कांग्रेस अपने सभी बड़े नेताओं को चुनाव लड़ा रही है। कुछ दिनों पहले कांग्रेस आलाकमान ने सभी बड़े नेताओं को साथ प्रचार करने को भी कहा। इसी नीति के तहत अशोक गहलोत और सचिन पायलट एक ही साइकिल पर बैठकर घूमते नजर भी आए। इससे संगठन को फायदा मिलने के साथ ही परसेप्शन की लड़ाई में भी पार्टी को बढ़त मिलती है, लेकिन राजस्थान का मामला अलग है। यहां क्लियर कट सीएम पद के सिर्फ दो दावेदार हैं- अशोक गहलोत और सचिन पायलट। गहलोत कुछ महीने पहले तक रेस में पिछड़ रहे थे, लेकिन अब उन्होंने धमाकेदार वापसी की है। आलाकमान का गहलोत को चुनाव लड़ाने का मतलब है कि रेस अभी खत्म नहीं हुई है। वैसे भी अशोक गहलोत पिछले काफी समय से लगातार राहुल गांधी के चुनावी रणनीतिकार के तौर पर उभरे हैं। गुजरात से लेकर कर्नाटक तक अशोक गहलोत हर चुनाव में राहुल गांधी के साथ साए की तरह रहे। इन चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर भी रहा।
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राहुल गांधी के कदम से साफ, इस तरह चुना जाएगा सीएम
अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों के चुनाव लड़ने से एक संकेत और मिलता है। कौन बनेगा सीएम? जुलाई में कांग्रेस के टैलेंट हंट के दौरान यही सवाल पूछा गया था। पार्टी नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने प्रवक्ताओं की खोज के दौरान इंटरव्यू में पूछा- कौन बेहतर है और क्यों? सचिन पायलट या अशोक गहलोत। इस पर काफी बवाल भी हुआ था। पार्टी में गुटबाजी इस कदर बढ़ी कि कांग्रेस को 'मेरा बूथ, मेरा गौरव' रोकना पड़ गया था। बहरहाल, राहुल गांधी ने अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों को चुनावी मैदान में उतारकर साफ संकेत दे दिया है कि बिना मुकाबले के सीएम की कुर्सी को नहीं दी जाएगी। मतलब चुनाव में जो जितनी ज्यादा सीटें लाएगा, उसी ताकत के आधार पर सीएम पद पर फैसला लिया जाएगा।