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पीएफ़आई: केरल से पटना तक सक्रिय इस इस्लामी संगठन पर क्या हैं आरोप?

देश के कई हिस्सों में सक्रिय इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया पर काफी आरोप हैं, एनआईए इसे प्रतिबंधित करने की सिफारिश कर चुकी है.

By BBC News हिन्दी
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पटना दौरे के चंद घंटों पहले ही बिहार पुलिस ने 12 जुलाई को दो भारत-विरोधी साज़िशों का पर्दाफ़ाश करने का दावा किया और अब मामले की जांच भारतीय गृह मंत्रालय ने राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एएनआई) को सौंप दी है.

पूरे प्रकरण में फंडिग के मुद्दे की जांच समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) करेगा.

पटना के सीनियर पुलिस अधीक्षक एमएस ढिल्लों ने बीबीसी को बताया कि पटना के फुलवारी शरीफ़ में जो प्रकरण सामने आए हैं, वो फ़िलहाल अलग-अलग दिख रहे हैं, और दोनों को मिलाकर पुलिस पांच गिरफ़्तारियां कर चुकी है.

पुलिस ने अपनी एफ़आईआर में कहा है कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (पीएफ़आई) हथियारों की ट्रेनिंग, प्रतिबंधित इस्लामी कट्टरपंथी संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया (सिमी) के पूर्व सदस्यों को जोड़कर एक गुप्त संगठन बनाने की तैयारी कर रहा है. इसका मक़सद मुसलमानों पर हो रहे कथित अत्याचारों का बदला लेना है.

इसके अलावा, पटना के फुलवारी शरीफ़ इलाक़े में ही दो दिनों बाद दो और मामले सामने आए, पुलिस का कहना है कि ये मामले दो व्हाट्सऐप ग्रुपों से जुड़े हैं, जिनमें से एक में पाकिस्तान से लेकर यमन और खाड़ी के दूसरे देशों के नंबर जुड़े थे, जबकि दूसरा समूह भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के कुल आठ नंबरों तक सीमित था.

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इसके अलावा, पटना के फुलवारी शरीफ़ इलाक़े में ही दो दिनों बाद दो और मामले सामने आए, पुलिस का कहना है कि ये मामले दो व्हाट्सऐप ग्रुपों से जुड़े हैं, जिनमें से एक में पाकिस्तान से लेकर यमन और खाड़ी के दूसरे देशों के नंबर जुड़े थे, जबकि दूसरा समूह भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के कुल आठ नंबरों तक सीमित था.

एमएस ढिल्लों ने पटना में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेस में इन व्हाट्सऐप समूहों को भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त बताया था, गिरफ़्तार किए गए व्यक्ति मरग़ूब अहमद दानिश को पाकिस्तान के कट्टरपंथी संगठन तहरीक-ए-लब्बैक से जुड़ा बताया गया है.

पीएफ़आई के ख़िलाफ़ कई हिंसक मामलों की जांच एनआईए समेत अलग-अलग एजेंसियाँ कर रही हैं, इनमें केरल के एर्नाकुलम के एक प्रोफ़ेसर का हाथ काटे जाने, कुन्नूर में हथियार चलाने का प्रशिक्षण देने और तमिलनाडु में तंजावुर का रामलिंगम हत्याकांड शामिल हैं.

इनमें कई लोग दोषी साबित हुए हैं और उनका संबंध पीएफ़आई से रहा है. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी पीएफ़आई से जुड़े पैसों के लेन-देन के मामलों की जांच कर रही है.

पीएफ़आई ख़ुद पर लगे आरोपों का खंडन करता है.

पुलिस का कहना है कि पीएफ़आई के ठिकाने से मिला 'इंडिया 2047: टूवार्ड रूल ऑफ़ इस्लामिक इंडिया', एक ऐसा दस्तावेज़ है जिसमें भारत को इस्लामिक देश बनाने की साज़िश रची गई है, जबकि पीएफ़आई का कहना है कि "पुलिस हमें फँसाने के लिए झूठे दस्तावेज़ प्लांट करके कहानी गढ़ रही है."

संगठन के राष्ट्रीय सचिव मुहम्मद शकीफ़ के नाम से जारी प्रेस रिलीज़ में कहा गया है, "ये उसी कार्यशैली का हिस्सा है जिसके भीतर पॉपुलर फ्रंट को झूठे मामलों में फँसाने की कोशिश की जा रही है, जो इस बात की तरफ़ इशारा करता है कि ये एक राजनीतिक चाल है, जिसका हुक्म एक ही जगह से जारी हो रहा है."

संस्था का कहना है कि एक दस्तावेज़ तैयार हुआ था जो सच्चर आयोग-मिश्रा कमीशन की सिफारिशों को आगे कैसे ले जाया जाए इस बात पर आधारित था, और उसे जस्टिस राजिंदर सच्चर ने 15 अगस्त, 2016 को दिल्ली में जारी किया था.

पंद्रह सालों से सक्रिय

साल 2007 में पीएफ़आई शुरू से ही जांच के दायरे में रहा है. 2008 में गठित राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) की नज़र पीएफ़आई पर तब से ही रही है.

एर्नाकुलम के मलयालम भाषा के प्रोफेसर टीजे जोसफ़ का मामला मनमोहन सिंह सरकार के गृह मंत्री पी चिदंबरम के कार्यकाल के दौरान ही, साल 2011 में एनआईए को सौंप दिया गया था.

चार जुलाई 2010 की सुबह की घटना को याद करते हुए प्रोफेसर टीजे जोसफ़ ने बीबीसी से कहा, "चर्च से वापस लौटते समय हमें एक सुनसान स्थान पर घेर लिया गया और मेरी दाहिनी हथेली पर कुल्हाड़ी से हमला किया गया, हमलावर तीन बार पहले ऐसी कोशिश कर चुके थे, तीन बार तो वो मेरे घर पर ही अलग-अलग बहाने बनाकर आए."

प्रोफेसर जोसफ़ ने कॉलेज की परीक्षा के लिए सवाल चुने थे जिसमें कुछ लोगों के अनुसार इस्लाम के आख़िरी पैगंबर मोहम्मद के साथ बेअदबी की गई थी.

उन्होंने इस घटना पर 'ए थाउज़ेंड कट्स, एन इनोसेंट क्वेश्चन एंड डेडली आनसर्स' नाम की किताब भी लिखी है.

मलयालम के शिक्षक ने फ़ोन पर बताया कि उनकी संस्था ने न सिर्फ़ उन्हें कॉलेज से सस्पेंड कर दिया, बल्कि उनके ख़िलाफ़ एफ़आईआर भी दर्ज करवाई.

हमले में शामिल होने की बात मानी

प्रोफ़ेसर पर हमले के मामले में 31 अभियुक्तों की सुनवाई ख़त्म हो गई है, एनआईए की विशेष अदालत ने 13 लोगों के खिलाफ़ निर्णय दिया है जबकि 18 को रिहा कर दिया गया, मामले के तीन अभियुक्त अभी भी फ़रार हैं

कई मुद्दों पर पीएफ़आई की तरफ़ से जारी एक लिखित बयान में इस बात को माना गया है कि प्रोफ़ेसर पर हमले में संगठन के कुछ सदस्य शामिल थे, लेकिन साथ ही वे इसे स्थानीय प्रतिक्रिया बताकर रफ़ा-दफ़ा करने की कोशिश भी करते हैं.

संगठन के युवा जनरल सेक्रेटरी अनीस अहमद ने बीबीसी से एक बातचीत में दावा किया कि घटना के फ़ौरन बाद पीएफ़आई के तत्कालीन नेतृत्व ने दिल्ली में प्रेस कांफ्रेस करके न सिर्फ़ घटना की निंदा की, बल्कि घटना में शामिल उन लोगों को संगठन से निष्कासित कर दिया जिन पर घटना में शामिल होने का शक था.

मगर पीएफ़आई का नाम इस घटना के अलावा हिंसा के दूसरे मामलों में भी बार-बार आता रहता है.

तिरुवनंतपुरम से समाज शास्त्री जे रघु कहते हैं कि पीएफ़आई और हिंसा की "कुछ कहानियां तो पूरी तरह झूठी हैं जिन्हें फैलाया गया है", तो वहीं जर्मनी के हाइडेलबर्ग यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्र विभाग के आर्न्ट वॉल्टर एमरिक के अनुसार ये "बेहद पेचीदा मामला है जिसमें किसी ठोस निष्कर्ष पर पहुंचना मुश्किल है."

वाल्टर एमरिक ने ऑक्सफोर्ड स्कॉलर के तौर पर पिछले दो दशकों में भारतीय मुस्लिम राजनीति में आ रहे बदलाव पर डॉक्टरेट की है, जिस पर आधारित 'इस्लामिक मूवमेंट्स इन इंडिया, मॉडरेशन एंड इट्स डिसकंटेट' नाम की किताब भी प्रकाशित हुई है.

वाल्टर एमरिक का कहना है कि इस मामले में उन्होंने अलग-अलग तरह की बातें सुनी हैं, "पीएफ़आई के कुछ पूर्व कार्यकर्ताओं का कहना था कि संगठन इस्लाम और मुसलमानों की रक्षा कर सकता है, ये साबित करने के लिए वो कभी-कभी हिंसा का सहारा लेता है, ये दर्शाने के लिए कि मुसलमानों के गली-मोहल्लों की रक्षा के मामले में वो पीछे नहीं हटेगा, लेकिन वो कार्यकर्ता मेरे सामने ऐसे मामलों का कोई सबूत नहीं पेश कर सके, न ही ऐसा कोई वाक़या मेरे सामने पेश आया जिससे लगे कि संगठन का शीर्ष नेतृत्व ऐसे मामलों की हामी भरता हो."

इस मामले में जे रघु का जवाब है, "हाँ, वो थोड़ी बहुत हिंसा का सहारा लेते हैं, और मुझे नहीं लगता है कि वो उतना बुरा है, आरएसएस के लोग पीएफ़आई के लोगों पर हमला करने की हिम्मत नहीं करेंगे."

आरएसएस और पीएफआई की तुलना

दक्षिण केरल के अलपुज्ज़ा में पीएफ़आई की राजनीतिक विंग समझे जानेवाले सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया के प्रांतीय सेक्रेटरी केएस शान की हत्या के कुछ ही घंटों बाद भारतीय जनता पार्टी के ओबीसी मोर्चा के राज्य सेक्रेटरी रंजीथ श्रीनिवास की हत्या कर हो गई.

सामाजिक सूचकांक में भारत के सबसे बेहतर राज्यों में गिने जाने वाले केरल में राजनीतिक हत्याओं का सिलसिला जारी रहता है, जिसमें आरएसएस, सीपीएम, पीएफ़आई, एसडीपीआई का नाम बार-बार पुलिस लेती रहती है.

केरल से सैकड़ों किलोमीटर दूर बिहार में जहां पीएफ़आई पर पटना पुलिस ने गंभीर आरोप लगाए हैं, वहां राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के बिहार अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने ये कहकर कि "जब-जब भारत की सुरक्षा के लिए ख़तरनाक लोग पकड़े गए हैं, पाकिस्तान के एजेंट के रूप में वो सभी आरएसएस-हिंदू लोग थे", पूरे विवाद को फिर से हरा कर दिया.

समाचार एजेंसी एएनआई के एक वीडियो में जगदानंद सिंह कहते सुने जा सकते हैं: "नीतीश ने आरएसएस को बढ़ने दिया है. इनसे भयभीत लोग भी चाहते हैं कि हमारा संगठन हो, ताकि जब हम पर महला हो तो अपने को बचा सकें, अपने लोगों को बचा सकें.

जगदानंद सिंह ने बीजेपी के पैतृक संगठन समझे जाने वाले आरएसएस की जिस तरह से तुलना की है, वो कुछ उसी तरह के विवाद को जन्म दे सकता है जो पटना के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के इस बयान के बाद हुआ था कि आरएसएस-पीएफ़आई के काम करने का ढंग एक समान है.

पीएफआई ने कहा- हम हथियार चलाने का ट्रेनिंग नहीं देते

सीनियर पुलिस अधीक्षक एमएस ढिल्लों ने एक प्रेस कांफ्रेस के दौरान मीडिया के सवालों के जवाब में पहले केस का संबंध किसी भी तरह अमरावती, उदयपुर या नुपूर शर्मा से नहीं बताया था. साथ ही, ये भी कहा था कि संबंधित लोग प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान मुसलमान बहुल क्षेत्र में नागरिकता संशोधन क़ानून, ट्रिपल तलाक़ और नुपुर शर्मा मामले पर विरोध-प्रदर्शन करना चाहते थे.

महाराष्ट्र के अमरावती, और राजस्थान के उदयपुर में दो हिंदूओं की हत्या कर दी गई थी, जिसमें उदयपुर में हत्या करने वालों ने वीडियो जारी कर इसे नुपुर शर्मा की बेअदबी का बदला बताया था. अभियुक्तों के अनुसार उदयपुर में पेशे से दर्ज़ी कन्हैया लाल तेली ने नुपुर शर्मा की बात का समर्थन किया था.

ट्रेनिंग के सवाल पर भी पटना के प्रेसवार्ता में एसएसपी ने पारंपरिक हथियार, लाठी, भाला वग़ैरह की बात कही थी.

थानाध्यक्ष एक़रार अहमद ने जो एफ़आईआर दर्ज की है, उसमें हालांकि अस्त्र-शस्त्र प्रशिक्षण और शांति भंग करने के प्रयास की बात कही गई है.

एनआईए की वेबसाइट के अनुसार कुन्नूर के नारथ में हथियारों और विस्फोटकों के प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने और युवकों को आतंकवादी गतिविधियों के लिए उकसाने के केस की जांच भी उसके पास जुलाई 2013 में आ गई थी.

पीएफ़आई हथियार की ट्रेनिंग की बात से साफ़ इनकार करता है, और कहता है कि "ये एक योग शिविर था जो संस्था हर साल 'हेल्थी पीपल, हेल्दी नेशन' के नारे के तहत आयोजित करवाती है, और 2013 अप्रैल को उसका आयोजन एक भीड़-भाड़ वाली जगह में ऐसे हाल में किया गया था जिसके बाहर किसी तरह का कंपाउंड भी नहीं था, फिर भी पुलिस ने यूएपीए की धाराएँ लगाकर उसके कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ केस दर्ज कर लिया."

इस मामले में जिन 22 लोगों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाख़िल हुई थी उनमें कुछ को सात और कुछ को पांच साल क़ैद हुई है, बाकी लोगों के विरुद्ध जांच जारी है.

क्या पीएफ़आई को घेरने की कोशिश हो रही है?

फुलवारी शरीफ़ प्रकरण में पीएफआई से जुड़े मामले में अन्य के अलावा जिन अतहर परवेज़ की गिरफ्तारी हुई है, उन्हें पुलिस ने सिमी का पूर्व सक्रिय सदस्य बताया है, जो संगठन के जेल काट रहे सदस्यों की क़ानूनी मदद करने का काम करते रहे थे, और फ़िलहाल एसडीपीआई के पटना ज़िले के महासचिव हैं.

पुलिस ने पीएफ़आई के राजनीतिक विंग समझे जानेवाले सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया के एक कार्यकर्ता नुरूद्दीन ज़ंगी को भी गिरफ़्तार किया है.

नुरुद्दीन जंगी ने बिहार के दरभंगा ने विधानसभा का चुनाव पार्टी की टिकट पर लड़ा था हालांकि उन्हें कुछ दर्जन वोट ही मिले थे.

दिल्ली यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफेसर रह चुके समशुल इस्लाम कहते हैं कि देश में इस समय हर बहस को सिर के बल खड़ा कर दिया गया है, पीएफ़आई की बात तो रहने दें, आनंद ...... और भीमा कोरेगांव से जुड़े लोगों का क्या क़सूर था, जो उन्हें जेल में डाला गया?

आर्न्ट वॉल्टर एमरिक भी मानते हैं कि ऐसा लगता है कि पीएफ़आई के विरुद्ध केसेज़ का पुलिंदा खड़ा किया जा रहा है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, पिछले साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट में एक सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मुख्य न्यायधीश एनवी रमन्ना की एक खंडपीठ के समक्ष कहा था कि केंद्र पीएफ़आई को प्रतिबंधित करने की प्रक्रिया में है.

एनआईए गृह मंत्रालय को सिफारिश भेजी जा चुकी है कि पीएफ़आई पर प्रतिबंध लगना चाहिए, लेकिन केंद्र की तरफ़ से मामले में अब तक कोई पहल नहीं हुई है.

पीएफ़आई के संस्थापकों में से एक प्रोफेसर पी कोया ने प्रतिबंध के सवाल पर बीबीसी से कहा, "बैन एक राजनीतिक निर्णय है, इसका कोई अर्थ नहीं. कम्युनिस्ट पार्टी को भी प्रतिबंधित किया गया था, और ख़ुद आरएसएस पर एक दफ़ा नहीं भारत में दो-दो बार बैन लग चुका है."

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allegations against this Islamic organization PFI
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