परशुराम बनकर IAF में लौटेगा Douglas DC 3, 47 के इंडो-पाक युद्ध में भरी थी ऐतिहासिक उड़ान
नई दिल्ली। डगलस डीसी 3 उर्फ डकोटा उर्फ परशुराम इन तीनों नामों में अगर कोई समानता है तो वह सिर्फ एक- ये तीनों एक एयरक्राफ्ट के नाम हैं। एयरक्राफ्ट भी कोई ऐसा-वैसा नहीं बल्कि ये वो लड़ाकू विमान है जो 27 अक्टूबर 1947 को पहले भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान थलसेना की 1 सिख रेजिमेंट के सैनिकों को लेकर श्रीनगर पहुंचा था। मिलिट्री हिस्टोरियन पुष्पिंदर सिंह की मानें तो आज हमारे पास कश्मीर का पुंछ का इलाका अगर है तो इसी डकोटा एयरक्राफ्ट की वजह से है। अब इस बेहद खास एयरक्राफ्ट को राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर ने भारतीय वायु सेना को गिफ्ट किया है। अगर सबकुछ ठीक रहा तो अगले महीने तक यह विमान एक बार फिर भारतीय वायुसेना के लिए उड़ान भरता दिखाई देगा। इस एयरक्राफ्ट की मरम्मत में ब्रिटेन की मदद से हुई है, जिसमें 6 साल का वक्त लगा है।
राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर ने वायुसेना प्रमुख को सौंपे कागजात
मंगलवार को एक कार्यक्रम में के दौरान डकोटा एयरक्राफ्ट के कागजात एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ को सौंपे गए। राजीव चंद्रशेखर ने बताया कि डकोटा एयरक्राफ्ट अभी ब्रिटेन की कॉन्वेंट्री एयरफील्ड में है। यह अगले महीने भारतीय वायुसेना के लिए उड़ान भरेगा। करीब 4800 नॉटिकल मील का सफर कर यह एयरक्राफ्ट फ्रांस, इटली, ग्रीस, इजिप्ट, ओमान के रास्ते भारत पहुंचेगा। भारत में इसका पहला स्टॉप जामनगर होगा, जहां से इसे हिंडन एयरबेस (यूपी) लाया जाएगा। जिस वक्त डकोटा के कागजात एयरचीफ धनोआ को सौंपे गए, उस वक्त राजीव के पिता रिटायर्ड एयर कोमोडोर एमके चंद्रशेखर भी मौजूद थे। वह वायुसेना में डकोटा एयरक्राफ्ट के पायलट रहे थे।
एंटनी के जमाने में भी भेजा था प्रस्ताव
राजीव चंद्रशेखर ने बताया कि उन्होंने यूपीए सरकार में भी इस विमान को भारतीय वायुसेना में शामिल किए जाने का प्रयास किया था, लेकिन उस वक्त के रक्षामंत्री एके एंटनी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया था। एनडीए सरकार के आने के बाद उन्होंने दोबारा प्रस्ताव भेजा, जिसे मंजूर कर लिया गया। डकोटा को अब परशुराम नाम दिया गया है और इसका नया नंबर होगा VP 905 नंबर रहेगा। ये उसी डकोटा विमान का नंबर है, जिसने इंडो-पाक वार में सैनिकों को जम्मू-कश्मीर पहुंचाया था।
भावुक हो गए राजीव चंद्रशेखर
राजीव चंद्रशेखर डकोटा एयरक्राफ्ट के बारे में बात करते हुए बेहद भावुक हो गए। उन्होंने कहा, 'मुझमें ये बीज काफी छोटी उम्र में ही पड़ गए थे। मेरे पिता अब 84 साल के हैं। मैं उन्हें डकोटा उड़ाते देखते हुए बड़ा हुआ। इस एयरक्राफ्ट्स के लिए मेरी दीवानगी स्वाभाविक है। मैं अपने पिता की तरफ से IAF को ये गिफ्ट दे रहा हूं। ये एयर वॉरियर्स के लिए समर्पण के लिए है।