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कश्‍मीर में टेक्‍नोलॉजी की मदद से आतंकी दे रहे एजेंसियों को चकमा

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श्रीगनर। अमेरिका में जब सैंडी तूफान ने तबाही मचाई थी तो उस समय एक ऐसी टेक्‍नोलॉजी ईजाद की गई जिसके बाद बिना किसी मोबाइल टावर के लोग आपस में कम्‍यूनिकेट कर सकते थे। मोबाइल फोन को रेडियो के साथ कनेक्‍ट करके यह किया जा सकता था।

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उस समय जहां इस टेक्‍नोलॉजी ने काफी मदद की तो आज यही टेक्‍नोलॉजी आतंकियों की सबसे बड़ी मददगार साबित हो रही है। आज पाकिस्‍तान के कई आतंकी इसी टेक्‍नोलॉजी को धड़ल्‍ले से प्रयोग कर रहे हैं।

आतंकियों का पता लगा पाना मुश्किल

जब से आतंकी इस टेक्‍नोलॉजी का प्रयोग करने में लगे हैं तब से ही उनके बीच होने वाले किसी भी तरह के कम्‍यूनिकेशन का पता लगा पाना काफी मुश्किल हो गया है।

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आतंकियों के बीच होने वाली बातचीत का पता मोबाइल टावर्स की मदद से ही लगाया जा सकता था लेकिन अब ऐसा कुछ भी कर पाना मुश्किल है। इस वजह से जब पाकिस्‍तान से आतंकी भारत में दाखिल होते हैं तो उनके बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है।

आईएसआई का आइडिया

हाल ही में जब सुरक्षाबलों ने लश्‍कर-ए-तैयबा के आतंकी सज्‍जाद अहमद को पकड़ा था तो उस समय उन्‍हें सज्‍जाद की बॉडी के पास से एक रेडियो सेट मिला था।

सज्‍जाद ने पूछताछ में बताया कि इस नए तरीके को प्रयोग करने का आइडिया पाकिस्‍तान की इंटेलीजेंस एजेंसी आईएसआई की ओर से दिया गया था।

रेडियो के साथ मोबाइल फोन को कनेक्‍ट करके सज्‍जाद अपने मैसेजेज और लोकेशन डिटेल्‍स को आसानी से भेज सकता था। भारतीय एजेंसियां भी इस वजह से सज्‍जाद के मैसेजेज को ट्रैक लहीं कर पा रही थी क्‍योंकि सिग्‍नल कभी भी मोबाइल टॉवर्स की भी पकड़ में नहीं आते थे।

एजेंसियां हैं परेशान

आतंकी इस टेक्‍नोलॉजी की वजह से किसी सूनसान इलाके से भी मैसेज भेज सकने में और कम्‍यूनिकेट कर सकने में समर्थ थे। जब से एजेंसियों को इस नए तरीके के बारे में पता लगा तब से एजेंसियां इस का तोड़ खोजने में जुट गईं।

इसके लिए जिस सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया गया वह किसी भी तरह के सिग्‍नल का पता लगा पाने में असमर्थ है। सूत्रों की मानें तो इस पर काम चल रहा है और जल्‍द ही इस समस्‍या को दूर कर लिया जाएगा।

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English summary
Terrorists and their groups have across the world used technology to their advantage.
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