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इतिहास का एक क्रूर शासक: जब रोम जल रहा था तो क्या नीरो सचमुच बांसुरी बजा रहा था?

जानकारों का मानना है कि जब नीरो रोम के सम्राट थे, तब दुनिया में बाँसुरी नामक वाद्य यंत्र का आविष्कार ही नहीं हुआ था, क्या है सच्चाई?

By BBC News हिन्दी
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( ये कहानी बीबीसी रेडियो फ़ोर के कार्यक्रम इन अवर टाइम में, नीरो पर किए गए पचास मिनट के कार्यक्रम आधारित है.)

"जब रोम जल रहा था, तो नीरो सुख और चैन की बाँसुरी बजा रहा था."

यह कहावत रोमन सम्राट नीरो के बारे में मशहूर है. नीरो पर रोम में आग लगवाने का आरोप भी लगाया जाता है और कहा जाता है कि उसने जानबूझकर ऐसा किया.

नीरो को इतिहास के एक ऐसे क्रूर शासक के रूप में जाना जाता है, जिसने अपनी मां, सौतेले भाइयों और पत्नियों की हत्या कराई थी और अपने दरबार में मौजूद किन्नरों से शादियां की थी.

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सन 54 ईस्वी में केवल सोलह वर्ष की आयु में नीरो अपनी मां के प्रयासों से एक ऐसे साम्राज्य का बादशाह बना, जिसकी सीमाएं स्पेन से लेकर उत्तर में ब्रिटेन और पूर्व में सीरिया तक फैली हुई थी.

सिंहासन की भूखी उसकी (नीरो की) मां अग्रिपीना ने महल में साजिशें और जोड़तोड़ करके नीरो को सत्ता दिलाई थी. अग्रिपीना ने अपने 'अंकल', सम्राट क्लॉडियस से शादी की और फिर नीरो की शादी बादशाह की बेटी से कराई. जिससे वह शाही परिवार का सदस्य होने के साथ-साथ राजा का उत्तराधिकारी भी बन गया, जबकि राजा का अपना एक बेटा था.

ऐसा दावा किया जाता है कि अग्रिपीना ने ज़हरीले 'मशरूम' या खम्बिया खिला कर सम्राट क्लॉडियस को मार डाला, लेकिन इस बात में कितनी सच्चाई है इसकी पुष्टि नहीं हो सकी.

नीरो ने अपनी माँ की हत्या कराई

जब नीरो ने सत्ता संभाली, तो उसकी माँ अग्रिपीना उसकी सबसे क़रीबी सलाहकार थीं, यहाँ तक कि रोमन सिक्कों पर नीरो की तस्वीर के साथ उनकी तस्वीर भी होती थी. लेकिन सत्ता में आने के लगभग पांच साल बाद नीरो ने अपनी माँ की हत्या करा दी, शायद इसलिए कि उसे (नीरो को) अधिक शक्ति और स्वतंत्रता की हवस थी.

नीरो की तरफ़ से अपनी माँ पर किया गया हत्या का पहला प्रयास असफ़ल रहा था. नीरो ने अपनी माँ को समुद्र तट पर एक समारोह में आमंत्रित किया और फिर उन्हें पानी के एक ऐसे जहाज से वापस भेजने की योजना बनाई, जिसे रास्ते में ही डुबाने की साज़िश बनाई गई थी लेकिन इस हत्या के प्रयास से वह बच गईं. इसके बाद नीरो ने अपनी माँ पर बग़ावत का आरोप लगाया और लोगों को भेज कर उसकी हत्या करा दी.

नीरो ने अपनी माँ की हत्या क्यों कराई?

बीबीसी रेडियो के एक कार्यक्रम में बात करते हुए, प्राचीन रोम की विशेषज्ञ, प्रोफे़सर मारिया वाएक ने कहा कि "नीरो की माँ का रवैया बहुत ही हाकिमाना था. एक स्रोत के अनुसार, वो अपने बेटे को अपने कंट्रोल में रखने की कोशिश में, इस हद तक चली गई कि अपने बेटे के साथ यौन संबंध बनाने से भी पीछे नहीं हटी."

उनके अनुसार, नीरो और उसकी मां के यौन संबंध होने के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, लेकिन स्रोत के अनुसार, नीरो के भेजे गए जल्लाद, जब अग्रिपीना के पास पहुँचे, तो उसने अपने पेट की ओर इशारा करते हुए कहा, कि उन्हें वहाँ चाकू मारा जाए जहाँ नीरो का पाप पल रहा है'.

मारिया के अनुसार, नीरो ने अपने बचपन में सत्ता संघर्ष का माहौल देखा, जिसका उनके व्यक्तित्व और सोच पर गहरा प्रभाव पड़ा.

रोमन साम्राज्य में सत्ता के लिए शादियां और हत्याएं

जिस दौर में नीरो ने होश संभाला था, मारिया विएक ने उस दौर के बारे में कहा कि "हम पहली शताब्दी के बारे में बात कर रहे हैं, जब रोमन साम्राज्य यूरोप में ब्रिटेन से लेकर एशिया में सीरिया तक फैला हुआ था. लेकिन यह विशाल साम्राज्य अस्थिर था और एक स्वतंत्र राष्ट्राध्यक्ष, सीनेट की मदद से इसे चलता था. रोमन साम्राज्य के पहले सम्राट ऑगस्टस ने इस साम्राज्य में सत्ता में बैठे लोगों में बराबरी का एक विचार पेश किया था.

रोम के पहले सम्राट ऑगस्टस सीज़र ने जो व्यवस्था शुरू की थी, उसमे, वह पीढ़ी दर पीढ़ी जूलियस क्लॉडियस सीज़र परिवार में ही सत्ता रखना चाहते थे. इसके परिणामस्वरूप सत्ता हासिल करने के लिए परिवार के भीतर एक संघर्ष पैदा हुआ. सत्ता हासिल करने के लिए, परिवार में शादियां, बच्चों को गोद लेना, तलाक़, देश निकाला, ज़िलावतनीके अलावा अपने प्रतिद्वंदी को हटाने के लिए, हर तरह की रणनीति का इस्तेमाल किया जाता था.

रोमन साम्राज्य के दूसरे सम्राट टिबेरियस के शासनकाल के दौरान नीरो की दादी को कैदख़ाने में डाल दिया गया था. तीसरे राजा के शासनकाल के दौरान नीरो की माँ को ज़िलावतन कर दिया गया था. क्लॉडियस के शासनकाल के दौरान, नीरो की माँ की वापसी संभव हुई, और उन्होंने सम्राट से, जो कि उनके 'अंकल' भी थे, शादी करके शाही परिवार में अपनी जगह बना ली.

नीरो के व्यक्तित्व और चरित्र पर हुए बीबीसी रेडियो के एक कार्यक्रम में शामिल ब्रिटेन में साउथ हेम्प्टन यूनिवर्सिटी की प्रोफे़सर सुषमा मलिक के अनुसार, रोमन साम्राज्य के चौथे सम्राट क्लॉडियस ने सन 41 से 54 ईस्वी तक शासन किया. अपने शासनकाल के अंतिम दिनों में, क्लॉडियस अपनी पत्नियों पर बहुत अधिक निर्भर हो गए थे, जिनमें नीरो की माँ, अग्रिपीना भी शामिल थी.

सुषमा मलिक के अनुसार, इन पत्नियों में 'एक बहुत ही बदनाम महिला' मुसलीना के बारे में इतिहास की किताबों में लिखा है कि उसने क्लॉडियस के आसपास अपने लोगों का एक जाल बिछाया हुआ था. उनके बारे में कहा जाता है कि "वह सीनेटरों के साथ 'शारीरिक संबंध' बनाती थी और अपनी वासना को शांत करने के लिए अपने पद की भी परवाह नहीं करती थी. इतिहास से पता चलता है कि क्लॉडियस उससे काफी प्रभावित था."

नीरो और क्लॉडियस के दौर की तुलना करते हुए, सुषमा मलिक कहती हैं कि नीरो के शुरुआती दिनों में उनके आस-पास कुछ अच्छे लोग थे, जिनमें सेनेका और अफ्रेक्स ब्रूस नाम के एक प्रीफे़क्ट शामिल थे. सेनेका एक दार्शनिक और नीरो के भाषणों के लेखक थे.

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नीरो ने अपनी पत्नियों को क़त्ल कराया था

जब नीरो अपनी पहली पत्नी ऑक्टेविया से तंग आ गया, तो उसने उसे ज़िलावतन कर दिया और उसे मारने का आदेश दिया. उसके बाद नीरो को पोपिया से प्यार हो गया और उन्होंने शादी कर ली. जब पोपिया गर्भवती थी, तो नीरो ने एक दिन गुस्से में आकर उसका भी क़त्ल कर दिया.

नीरो के शासन के पहले पांच वर्षों को रोम के लोगों के लिए स्वर्ण युग कहा जाता है. प्राचीन रोम में, सीनेट, प्रशासनिक और सलाहकार बॉडी थी. नीरो ने रोमन सीनेट को सशक्त बनाया, रोमन सेना को अपने साथ रखा और संतुष्ट रखा, खेल प्रतियोगिताओं के आयोजन कराकर आम जनता के बीच लोकप्रियता हासिल की. लेकिन ये शुरुआती सफलताएं नीरो के शेष शासनकाल के दौरान भीषण हिंसा और बर्बरता की वजह से दब गई.

नीरो अपनी भूमिका के कारण, इतिहास और साहित्य में बुराई और दुष्टता का एक प्रतीक बन कर रह गया.

प्रोफे़सर सुषमा मलिक के अनुसार, अपने शुरुआती दिनों में, नीरो ने सीनेट को आश्वासन दिया कि क्लॉडियस के समय में जिस तरह से सीनेट को नज़रअंदाज़ किया गया था, उनके समय में ऐसा नहीं होगा और राज्य के मामलों में इस संस्था के महत्व को बहाल किया जाएगा.

नीरो ने यह भी आश्वासन दिया कि रोमन सेना 'प्रिटोरियन गार्ड' को समय पर वेतन दिया जाएगा. उन शुरुआती दिनों में, नीरो ने रोम के अधिकांश मामलों को सीनेट पर छोड़ दिया था.

नीरो ने यह भी समझाने की कोशिश की कि वो "बग़ावत के मुक़दमे" नहीं किये जायेंगे, जिनके ज़रिये सीनेट के सदस्य एक दूसरे के ख़िलाफ़ साजिश करते थे. सुषमा मलिक के अनुसार, अपने शासन के शुरुआती दिनों में, नीरो ने सीनेट के विश्वास को बहाल करने की कोशिश की और यह विश्वास दिलाने की कोशिश की कि वह उनके और रोम के लिए एक बेहतर शासक साबित होगा.

सुषमा मलिक के अनुसार, इसके साथ ही नीरो ने रोम के लोगों को खुश करने के लिए, सन 54 ईस्वी में यूनान की तरह बड़े पैमाने पर खेलों का आयोजन कराया. इन खेलों में लोगों के मनोरंजन के लिए भी बहुत सी चीजें शामिल की गईं, जैसे सर्कस वगैरह ख़ास तौर पर शामिल किये गए थे.

ब्रिटेन के सेंट जॉन्स कॉलेज यूनिवर्सिटी के प्रोफे़सर मैथ्यू निकोल्स ऐतिहासिक संदर्भों से इसकी पुष्टि करते हैं, कि नीरो के शुरुआती दिनों को रोम का स्वर्ण युग कहा जाता है. उन्होंने कहा कि आधुनिक समय में भी जिस तरह शासक अपने शुरुआती दिनों में बहुत से ऐसे फ़ैसले लेते हैं, जिससे लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता बढ़ती है, लेकिन धीरे-धीरे उनके शासन करने के तरीके से उनकी लोकप्रियता ख़त्म हो जाती है.

मैथ्यू के अनुसार, नीरो की लोकप्रियता काफ़ी हद तक उनके अंतिम दिनों तक बनी रही. नीरो ने अपने शासनकाल के दौरान जिन समस्याओं का सामना किया, उनके बारे में बात करते हुए मैथ्यू कहते हैं, कि वह जूलियस क्लॉडियस राजवंश के पांचवें और अंतिम राजा थे.

मैथ्यू के अनुसार, जब नीरो सत्ता में आये, तो उनके सामने बहुत सारी समस्याएं थीं. जब उन्होने सत्ता संभाली, तो जाहिर तौर पर प्रशासन स्थिरता के साथ चल रहा था. लेकिन सत्ता पाने के लिए परिवार के भीतर कड़ा संघर्ष चल रहा था और साजिशें अपने चरम पर थीं. इसके अलावा, सीनेट का अभिजात वर्ग था, जिसे संतुष्ट रखना ज़रूरी था, प्रांतीय गवर्नर थे, जिनके पास सेना भी होती थी. सबसे बढ़कर, रोम की जनता थी और उनकी खेल और मेलों में दिलचस्पी थी.

मैथ्यू का कहना है कि नीरो को उन सभी के हितों को संतुलित करना था और उन्हें संतुष्ट रखना था.

इस सवाल पर कि नीरो को जो साम्राज्य मिला था और जो साम्राज्य उन्होंने छोड़ा था, क्या उसमे ज़्यादा अंतर नहीं था? मैथ्यू इस बात से सहमत होते हुए कहते हैं, कि यह साम्राज्य सीमाओं को लगातार विस्तार देने पर क़ायम था. नीरो के समय में साम्राज्य का विस्तार तो नहीं हुआ, लेकिन इसमें स्थिरता बनाए रखना भी एक बड़ी चुनौती थी.

उनके अनुसार और नई विजय न होने के कारण माल-ए-गनीमत (जीत के समय, हारने वाले पक्ष का क़ब्ज़े में लिया गया माल) आना भी बंद हो गया था और ऐसी स्थिति में स्थिरता बनाए रखना और भी मुश्किल हो जाता है.

जब रोम जल रहा था तो क्या नीरो सच में बाँसुरी बजा रहा था?

सन 64 ईस्वीमें रोम जलकर राख हो गया. अफ़वाह यह थी कि यह आग सम्राट नीरो ने खुद लगवाई थी, और बाद में यह कहा जाने लगा कि जब रोम जल रहा था तब नीरो बाँसुरी बजा रहा था.

आग की घटना के बारे में इतिहासकार सुषमा मलिक का कहना है कि दूसरी और तीसरी शताब्दी में कम से कम दो इतिहासकार इस बात की पुष्टि करते हैं कि नीरो ने खुद रोम में आग लगवाई थी. ताकि इसका फिर से नया निर्माण किया जा सके. नीरो अपने मशहूर गोल्डन हाउस का निर्माण कराना चाहता था.

लेकिन कुछ इतिहासकार नीरो के पक्ष में यह तर्क देते हैं, कि यह आग उसने नहीं लगवाई थी, क्योंकि उसका अपना महल भी इस आग की चपेट में आ गया था.

सुषमा मालिक के अनुसार, उसी दौर के एक अन्य इतिहासकार, टेसिटस, कहते हैं कि यह केवल एक अफवाह थी कि नीरो ने खुद शहर में यह आग लगवाई थी. "यह बात हास्यास्पद लगती है कि नीरो ने ख़ुद ऐसा किया होगा. नीरो ने बाद में शहर को काफ़ी बेहतर तरीके से फिर से बनाया. चौड़ी सड़कें बनाई गईं ताकि आग दोबारा इतनी तेज़ी से न फैले और बेहतर निर्माण सामग्री का इस्तेमाल किया गया.

मैथ्यू के अनुसार, दो ऐतिहासिक स्रोत यह कहते हैं कि नीरो ने ख़ुद शहर में आग लगवाई थी. उनका तर्क ये है कि जब शहर जल रहा था, नीरो ने विशेष लिबास पहन कर गाना शुरू कर दिया था.

यह बात कहाँ तक सही है कि जब रोम जल रहा था, तब नीरो बाँसुरी बजा रहा था? इस बारे में मैथ्यू का कहना है कि बाँसुरी का आविष्कार सातवीं शताब्दी में हुआ था और नीरो के समय में बाँसुरी नहीं थी. यह भी कहा जाता है कि नीरो एक वाद्य यंत्र बजाता ज़रूर था जिसे लाइरे कहा जाता है.

ईसाई समुदाय पर आग लगाने का आरोप

नीरो ने आग लगाने का आरोप अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय पर लगा दिया.

सुषमा मलिक का कहना है कि टेसिटस लिखते हैं कि उस समय रोम में ईसाई समुदाय के लोगों की संख्या बहुत कम थी और आम लोगों को ईसाइयों की धार्मिक मान्यताओं के बारे में बहुत कम जानकारी थी और उनके बारे में नफ़रत की भावनाएँ थीं.

इसलिए ईसाइयों पर आरोप लगाना बहुत आसान था, जिस पर आम जनता ने आसानी से विश्वास कर लिया था.

नीरो ने इसके बाद ईसाई समुदाय के लोगों को आग लगाने की सजा के तौर पर ज़ुल्म का निशाना बनाया. उन्हें सार्वजनिक रूप से फांसी दी गई, जंगली भेड़ियों के सामने डाला गया, रात में उनको ज़िंदा जलाया जाता था, और जनता को ये नज़ारा देखने के लिए इकट्ठा किया जाता था.

नीरो का अधूरा महल

आग की इस घटना के बाद नीरो ने एक भव्य महल का निर्माण कराया. ऐसा कहा जाता है कि इसमें एक "गोल्डन रूम" था, जिसमें शानदार फर्नीचर था और कमरे में खुशबू के लिए दीवारों के अंदर परफ्यूम के पाइप लगाए गए थे.

इस महल के निर्माण पर भारी मात्रा में संसाधन ख़र्च किए गए थे, लेकिन यह कभी पूरा नहीं हो सका.

एक ऐसा शहर जो राख के ढेर से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था, वहाँ के लोग इस महल के निर्माण से खुश नहीं थे, जिनसे ज़ाहिरी तौर पर यह कहा गया था, कि इसे उनके लिए खोला जाएगा और वहाँ खेल और समारोह आयोजित किए जाएंगे.

नीरो को वाद्य यंत्र लाइरे बजाने और गाने का शौक़ था. नीरो ने मंच पर भी अभिनय किया, और सम्राट का यह शौक़ सीनेट की नज़रों में एक रोमन नेता की गरिमा के खिलाफ था. लेकिन नीरो को किसी की सोच की परवाह नहीं थी, और वह एक साल की छुट्टी ले कर यूनान चले गए, जहाँ उन्होंने थिएटरों में अभिनय की प्रतियोगिता में हिस्सा लिया.

कहा जाता है कि नीरो जब भी स्टेज पर किसी दर्द भरी कहानी को पेश करते हुए नायिका का अभिनय करता था, तो अपनी दूसरी पत्नी पोपिया का मास्क पहन लेता था. जिसका ज़ाहिर तौर पर यह मक़सद था कि वह उसकी हत्या की वजह से दुःख और अपराधबोध में डूबा हुआ था.

'जनता के दुश्मन' की नाटकीय मौत

30 साल की उम्र तक पहुँचते पहुँचते, नीरो का विरोध और बदनामी बहुत बढ़ चुकी थी. सेना के समर्थन से, सीनेट ने नीरो को "जनता का दुश्मन" घोषित कर दिया, जो एक तरह से उसकी मृत्यु का फरमान था, मतलब यह कि नीरो कहीं भी दिखाई दे, तो उसे मार दिया जाए.

सुरक्षा अधिकारी पीछा कर रहे थे,नीरो रात के अंधेरे में भाग कर, शहर के बाहरी इलाके में स्थित अपने एक महल में छिप गया और आत्महत्या कर ली.

कहा जाता है कि जब नीरो ने ख़ुद की जान ली, तो उनके आख़िरी शब्द थे 'क्वालिस आर्टिफेक्स पेरियो'. विशेषज्ञों का कहना है कि नीरो के अंतिम क्षणों में कहे गए, इन शब्दों का ठीक ठीक अर्थ निकालना मुश्किल है, लेकिन इसके कई अर्थ हो सकते हैं:

"मैं अपनी मृत्यु में भी एक कलाकार हूँ"

"वो क्या ही कलाकार है जो मेरे साथ मर रहा है?"

"मैं एक व्यापारी की तरह मर रहा हूँ"

नीरो के इन शब्दों का जो भी अर्थ हो, लेकिन उनके अंतिम शब्द उनके चरित्र की तरह ही नाटकीय थे.

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