भारत में आने वाले 66% खिलौने बच्चों के लिए ख़तरनाक!
''मेरे बच्चों को जो खिलौना पसंद आता है, मैं वो ख़रीद लेती हूं, उसमें और कुछ ज़्यादा ध्यान नहीं देती. मुझे नहीं लगता कि खिलौनों से कोई नुक़सान होता है. बस जैली का ध्यान रखती हूं कि बच्चे उससे खेलकर हाथ धो लें.'' दिल्ली की रहने वालीं शीबा की तरह कई और मां-बाप भी यही सोचते हैं कि खिलौनों से बच्चों को कोई खास नुक़सान नहीं हो सकता. .
''मेरे बच्चों को जो खिलौना पसंद आता है, मैं वो ख़रीद लेती हूं, उसमें और कुछ ज़्यादा ध्यान नहीं देती. मुझे नहीं लगता कि खिलौनों से कोई नुक़सान होता है. बस जैली का ध्यान रखती हूं कि बच्चे उससे खेलकर हाथ धो लें.''
दिल्ली की रहने वालीं शीबा की तरह कई और मां-बाप भी यही सोचते हैं कि खिलौनों से बच्चों को कोई खास नुक़सान नहीं हो सकता. वो बच्चों की पसंद और खिलौने की क्वालिटी देखकर उसे ख़रीद लेते हैं. उनके पास कुछ और जांचने का तरीक़ा भी नहीं होता.
लेकिन, भारतीय गुणवत्ता परिषद (क्यूसीआई) की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में आयात होने वाले 66.90 प्रतिशत खिलौने बच्चों के लिए ख़तरनाक होते हैं.
क्यूसीआई ने औचक तरीके से किए गए एक अध्ययन में पाया कि कई खिलौने मेकेनिकल, केमिकल और अन्य तरह की जांच में खरे नहीं उतर पाए हैं.
क्यूसीआई के मुताबिक इन खिलौनों में कैमिकल तय मात्रा से ज़्यादा था, जिससे बच्चों को कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं.
लेकिन, आम लोगों को इसकी ज़्यादा जानकारी नहीं होती. दिल्ली में खिलौने बेचने वाले एक दुकानदार का भी कहना है कि छोटे बच्चों के कुछ खिलौनों पर टॉक्सिक और नॉन-टॉक्सिक लिखा होता है लेकिन सभी लोगों को इसका पतान नहीं होता.
दुकानदार ने बताया कि अधिकतर लोग वो खिलौना ख़रीद लेते हैं जो उन्हें पसंद आ जाता है और क़ीमत व चलाने के तरीके के अलावा वो कुछ और नहीं पूछते.
कैसे हुई जांच
इस अध्ययन के बारे में क्यूसीआई के सेक्रेटरी जनरल डॉ. आरपी सिंह बताते हैं, ''हमने देखा कि हिंदुस्तान में आने वाले बहुत से खिलौनों की जांच एक सैंपल के आधार पर की जा रही है और उनकी कोई वैधता अवधि नहीं है. जिससे ये पता नहीं चल रहा था कि उस टेस्ट रिपोर्ट के साथ आ रहे खिलौनों के कनसाइंमेंट की जांच की गई है की नहीं. इसे लेकर काफ़ी चर्चा हुई और फिर क्यूसीआई को बाजार में मौजूद खिलौनों की जांच के लिए कहा गया.''
क्यूसीआई ने जांच के लिए दिल्ली और एनसीआर से खिलौने लिए. ये खिलौने मिस्ट्री शॉपिंग (यानी किसी दुकान से कोई भी खिलौना लिया गया) के माध्यम से सैंपल चुना गया. इनकी जांच एनएबील की मान्यता प्राप्त लैब में किय गया.
अलग-अलग कैटेगरी के 121 तरह के खिलौनों पर ये जांच की गई.
जिस कैटेगरी के खिलौनों को चुना गया:
- प्लास्टिक से बने खिलौने
- सॉफ्ट टॉय/स्टफ्ड टॉय
- लकड़ी से बने खिलौने
- मेटल से बने खिलौने
- इलैक्ट्रिक खिलौने
- जिन खिलौनों के अंदर बच्चे जा सकते हैं (जैसे टॉय टैंट)
- कॉस्ट्यूम्स
नतीजों में पाया गया कि खिलौनों में हानिकारक केमिकल की मात्रा ज़्यादा थी. कई खिलौने सुरक्षा मानकों पर खरे नहीं उतरे. उनसे बच्चे चोटिल हो सकते थे और त्वचा संबंधी रोगों का कारण भी बन सकते थे.
क्या आए नतीजे
- 41.3 प्रतिशत सैंपल मेकेनिकल जांच में फ़ेल
- 3.3 प्रतिशत सैंपल फैलाइट केमिकल जांच में फ़ेल
- 12.4 प्रतिशत सैंपल मेकेनिकल और फैलाइट जांच में फ़ेल
- 7.4 प्रतिशत सैंपल ज्वलनशीलता जांच में फ़ेल
- 2.5 प्रतिशत सैंपल मेकेनिकल और ज्वलनशीलता जांच में फ़ेल
क्या होता है नुकसान
क्यूसीआई ने खिलौनों की मेकेनिकल और केमिकल जांच की, उसके बाद पेंट्स, लेड और हैवी मेटल की जांच भी की गई. इस जांच में महज 33 प्रतिशत खिलौने ही सही निकले.
टॉक्सिक खिलौनों से होने वाले नुक़सान पर डॉ. आरपी सिंह ने कहा, ''काफ़ी सारे खिलौने मेकेनिकल जांच में फे़ल हो गए. मेकेनिकल जांच का मतलब है कि जैसे मेटल के खिलौने से बच्चे को त्वचा पर खरोंच आ सकती है, उसे कट लग सकता है. मुंह में डालने पर गले में फंसना नहीं चाहिए. इन सब चीजों की जांच की जाती है.''
''केमिकल जांच में देखा जाता है कि किस तरह के केमिकल का इस्तेमाल हो रहा है और उनकी मात्रा क्या है. जैसे कि सॉफ्ट टॉयज़ में एक केमिकल होता है थैलेट जिससे कैंसर का खतरा भी हो सकता है. उससे निकलने वाले रेशों से बच्चे को नुक़सान नहीं पहुंचना चाहिए. खिलौनों में इस्तेमाल होने वाले केमिकल से त्वचा संबंधी बीमारियां हो सकती हैं. मुंह में लेने पर इंफे़क्शन हो सकता है.''
''इसके अलावा लेड, मर्करी और आरसैनिक जैसे हैवी मेटल भी नहीं होने चाहिए. बच्चों के टैंट हाउस और कॉस्ट्यूम्स जैसे खिलौनों को ज्वलनशील पाया गया. ये जल्दी आग पकड़ सकते हैं. ''
इन सब केमिकल के लिए दुनिया भर में और भारतीय मानकों के मुताबिक मात्रा तय की गई. अगर मात्रा ज़्यादा होती है तो वो बच्चे को नुक़सान पहुंचा सकते हैं.
डॉ. आरपी सिंह के मुतबाकि विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने एक नोटिफ़िकेशन को संशोधित किया था. जिसके बाद जितने भी कंसाइनमेंट हिंदुस्तान के बंदरगाहों पर आएंगे. सभी से सैंपल के लिए खिलौने निकालकर जांच के लिए एनएबीली की लैब में जाएंगे. अगर वो ठीक निकलते हैं तभी वो कंसानमेंट भारत में लिए जाएंगे.
भारत में सबसे ज़्यादा खिलौने चीन से आते हैं. इसके अलावा श्रीलंका, मलेशिया, जर्मनी, हॉन्ग-कॉन्ग और अमरीका से भी खिलौने आते हैं.