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11 मई 1998 पोखरण-2 : जानिए भारत को क्यों पड़ी न्यूक्लियर सुपर पावर बनने की जरूरत?

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नई दिल्ली। 1962 के युद्ध में भारत को चीन से हार का सामना करना पड़ा और उसकी बाद कम्युनिस्ट नेशन ने अपने एटम बम का टेस्ट कर ना सिर्फ भारत को बल्कि पूरी दुनिया को अपनी ताकत का ऐहसास कराया। चीन के न्यूक्लियर टेस्ट के बाद भारत पर भी न्यूक्लियर टेस्ट का दबाव बढ़ गया था, क्योंकि उस वक्त ऐसा लग रहा था कि चीन अपनी न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी पाकिस्तान को भी दे रहा है। भारत को कहीं न कहीं शक था कि चीन के पास तो न्यूक्लियर बम है ही, लेकिन पाकिस्तान भी इस विनाषकारी बम को बनाने में लगा है। हालांकि, नेहरू ने चीन से युद्ध लड़ने से पहले ही डॉ. होमी जहांगीर भाभा से पूछ लिया था कि क्या हम एटम बम बना सकते हैं? तब डॉ भाभा ने कहा था, 'हां, सिर्फ दो साल में तैयार सकते हैं।'

जानिए भारत को क्यों पड़ी न्यूक्लियर सुपर पावर बनने की जरूरत?


नेहरू एटम बम के खिलाफ नहीं थे, लेकिन उन्होंने डॉ. भाभा को फिलहाल अनुमति नहीं दी थी। डॉ भाभा की दिल की इच्छा थी कि भारत भी एक न्यूक्लियर स्टेट बने, लेकिन दुर्भाग्य से विमान दुर्घटना में 1966 में ही उनकी मौत हो गई और उनकी जगह डॉ. विक्रम साराभाई ली। साराभाई एटम बम के खिलाफ थे, जिसके बाद लंबे समय तक इस पर विचार कम हुआ। 1971 में भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ जंग जीत ली, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को महसूस हुआ कि हमें भी अब एक एटम बम बनाना चाहिए।

राजस्थान के पोखरण में बहुत ही सीक्रेट ढंग से भारत के वैज्ञानिक अपने मिशन को आगे बढ़ा रहे थे। तभी 18 मई 1974 में पोखरण में भयंकर विस्फोट हुआ और दुनिया हैरान रह गई। भारत ने अपना पहला न्यूक्लियर टेस्ट कर दिया, जिसका कोड नाम 'स्माइलिंग बुद्धा' था। हालांकि, भारत ने खुलकर दुनिया को नहीं कहा कि ये एक एटम बम टेस्ट था। पोखरण में टेस्ट के बाद भारत ने कहा था कि यह पीसफुल न्यूक्लियर एक्सप्लोजन था। हालांकि, यूएनएससी ने माना कि भारत ने न्यूक्लियर टेस्ट कर दिया है।

इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी पीएम बने, लेकिन उन्होंने एटम बम में दिलचस्पी नहीं दिखाई। राजीव गांधी की हत्या के बाद पीवी नरसिम्हा राव देश के अगले प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने इंदिरा गांधी के बाद भारत में न्यूक्लियर टेस्ट करने की इच्छा जताई। उन्होंने वैज्ञानिकों को तैयारी के निर्देश दे दिए थे, लेकिन इस बीच चुनाव मे कांग्रेस की हार होने से टेस्ट टल गया। पीवी नरसिम्हा राव के बाद अटल बिहारी वाजपेयी देश के नए प्रधामंत्री बने और उन्होंने शपथ लेने के दूसरे दिन ही एटम टेस्ट का निर्णय लेकर सभी को हैरान कर दिया, लेकिन 13 दिन बाद ही वाजपेयी की सरकार भी गिर गई और टेस्ट एक बार फिर टल गया।

अगली बार एनडीए की सरकार बनी तो वाजपेयी एक बार फिर देश के पीएम बने। वाजपेयी ने आते ही अपनी सरकार के दो महीने बाद ही पोखरण-2 का आदेश दिया। पोखरण में एक बार वैज्ञानिक टेस्ट के लिए तैयार थे और 11 मई को दोपहर 3.45 पर अंडरग्राउंड विस्फोट कर भारत ने सफल न्यूक्लियर टेस्ट कर दिया, जिसका नाम था- शक्ति। जिसके बाद, भारत सरकार ने घोषणा करते हुए कहा कि हम अब न्यूक्लियर स्टेट की लिस्ट में आ गए है। पीएम वाजपेयी के कार्याकाल की यह अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धी में से एक है, जिन्होंने भारत को दुनिया के सामने न्यूक्लियर सुपरपावर होने दम दिखाया।

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English summary
11 May 1998: How India became nuclear superpower after condecting Pokhran-2
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