26/11: अजमल कसाब को जिंदा पकड़ने की कहानी, जिंदा बच गए उस इंस्पेक्टर की जुबानी
मुंबई। 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमलों को 10 वर्ष पूरे हो गए हैं और यकीन मानिए कि दशक बीतने के बाद भी उन लोगों के जख्म हरे हैं जिन्होंने अपने किसी चहेते को आतंकी हमलों में गंवा दिया। 60 घंटे तक मुंबई का नजारा बिल्कुल वॉरजोन जैसा था और लग रहा था जैसे कोई युद्ध चल रहा हो। इस आतंकी हमले को पाकिस्तान में मौजूद आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने अंजाम दिया था। हमले के समय लश्कर के आतंकी अजमल कसाब को मुंबई पुलिस ने जिंदा पकड़ा था। कसाब को पकड़ने में मुंबई पुलिस असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर तुकाराम ओंबले का योगदान हर किसी को याद आता है। कसाब को पकड़ना इतना आसान नहीं था और इसकी वजह से इस तरफ भी सबका ध्यान गया कि कैसे मुंबई पुलिस को हथियारों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। इंग्लिश डेली हिन्दुस्तान टाइम्स ने इस बारे में खास जानकारी दी है। यह भी पढ़ें-26/11: जब जेल में हिंदू-मुसलमान अफसरों को साथ खाना खाते देख चौंक गया था कसाब
ओंबले की टीम को मिला राष्ट्रपति पुरस्कार
तुकाराम ओंबले उसी टीम का हिस्सा था जिसे राष्ट्रपति की ओर से वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। असिस्टेंट इंस्पेक्टर संजय गोविलकर, तुकाराम के साथी थे। इस समय उनकी उम्र 50 वर्ष है और वर्तमान समय में वह मुंबई पुलिस की इकोनॉमिक ऑफेंसेज विंग (ईओडब्लूय) का हिस्सा हैं। गोविलकर को हमले से बस पांच दिन पहले ही डीबी मार्ग पुलिस स्टेशन पर तैनात किया गया था। उन्हें आज भी याद है कि हमले वाली रात को वह अपने घर पर थे जब टीवी पर गोलियां चलने की आवाज आई। गोविलकर अपनी पत्नी को यह बोलकर घर से निकले थे कि उन्हें लौटने में देर हो जाएगी। जिस पुलिस स्टेशन पर उनकी तैनाती थी, उसे गिरगाम चौपाटी के करीब नाकेबंदी करने का आदेश दिया गया था। 13 लोगों की टीम के साथ गोविलकर अपने मिशन को पूरा करने के लिए निकल गए।
कसाब की बंदूक का बैरल पकड़ लिया ओंबले ने
रात करीब 12:15 मिनट पर उनके वायरलेस पर ऑर्डर आया कि वाल्केश्वर की तरफ जाने वाली एक स्कोडा पर नजर रखी जाए। यह गाड़ी करीब 12:30 मिनट पर वहां पर नजर आई। गोविलकर बैरीकेड से करीब 50 फीट की दूरी पर खड़े थे। जिस समय पुलिस कार के पास पहुंची तो कार ने दूसरी तरफ मौजूद डिवाइडर्स को टक्कर मार दी और इस पर चढ़ गई। टीम दो हिस्सों में बंट गई और थोड़ी ही देर बाद कार के ड्राइवर ने फायरिंग करनी शुरू कर दी। पुलिस ने इसका जवाब दिया और गोलियां ड्राइवर को लगी। बाद में पता लगा कि ड्राइवर आतंकी इस्माइल खान था जो आतंकियों की टीम को लीड कर रहा था। इसके बाद पैंसेजर साइड का दरवाजा खुला था जहां पर कसाब मौजूद था। पुलिस की ओर से कसाब को सरेंडर करने के लिए कहा गया। कसाब को बाएं हाथ में गोली लगी थी। लेकिन उसने अचानक ही पैरों के नीचे पड़ी एके-47 निकाल ली और पुलिस पर फायरिंग करने लगा। जैसे ही कसाब ने ट्रिगर दबाया तुकाराम ओंबले ने उसकी बंदूक का बैरल पकड़ लिया।
डंडों और छोटे हथियारों से कसाब का सामना
गोविलकर ने बताया कि ओंबले को छह से सात गोलियां लगी थीं। एक गोली गोविलकर को भी लगी। जैसे ही कसाब दूसरी मैगजीन को लोड करने की कोशिश कर रहा था, पुलिस की टीम ने उस पर लाठी और डंडों से हमला कर दिया। गोविलकर ने बताया कि लाठी, डंडों और छोटे हथियारों की मदद से उनकी टीम पूरी तरह से ट्रेनिंग करने वाले एक आतंकी का मुकाबला कर रही थी और दूसरे को जिंदा पकड़ा था। उन्होंने कहा कि शायद उस दिन भगवान उनकी तरफ था। जब तक दूसरे ऑफिसर्स वहां पर पहुंचते गोविलकर और उनके साथियों ने कसाब को जिंदा पकड़ने में सफलता हासिल कर ली थी। गोविलकर का कहना है कि उनकी टीम के ऑफिसर्स के लिए कसाब पर हमला करने से खुद को रोक पाना काफी मुश्किल था। गंभीर रूप से घायल ओंबले और गोविलकर को अस्पताल ले जाया गया। जहां ओंबले शहीद हो गए तो वही गोविलकर को चार दिन बाद अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। आतंकी इस्माइल खान की अस्पताल में मौत हो गई तो कसाब को गिरफ्तार कर लिया गया।