दुनिया का एकलौता मंदिर जहां नहीं होती मूर्तियों की पूजा, देखकर रह जाएंगे दंग
शिमला। देश दुनिया में अपनी दिव्यता के लिये मशहूर हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा का शक्तिपीठ ज्वालामुखी विश्व में पहला ऐसा हिन्दू मंदिर है, जहां प्रतिमा की पूजा नहीं होती। मंदिर में सात ज्योतियां अनादिकाल से विराजमान हैं । मंदिर में श्रद्धालु इन ज्योतियों की ही पूजा करते हैं। यही नहीं इस मंदिर के बारे में एक ओर अनोखी बात यह भी है कि यहां रोजाना पांच बार आरती होती है। आम तौर पर मंदिरों में सुबह शाम को ही आरती हो ती है। लेकिन यहां ऐसा नहीं है। यहां आते ही श्रद्धालुओं के मन में कई बातें उठती हैं। वह यहां आकर सोचते हैं कि उन्हें किसी प्रतिमा की पूजा करनी है। लेकिन ऐसा नहीं है। मंदिर में कोई भी प्रतिमा स्थापित ही नहीं है। सबसे विचित्र बात यह है कि यहां किसी प्रतिमा की पूजा नहीं होती। शायद यह विश्व में पहला ऐसा देवालय है, जहां साक्षात ज्योति जो कि अनादिकाल से यहां विराजमान है कि पूजा होती है। चट्टान में जल रही ज्योतियां अपने आप जलती हैं। इन्हें कोई जलाता नहीं है। यह जल कैसे रही हैं। अनसुलझी पहेली है। इसे देखने वाला हैरान रह जाता है।
माता के परम भक्त ध्यानु भगत से जुड़ा रोचक किस्सा
रोचक तथ्य यह है कि आज तक कई बार इन ज्योतियों की ताकत के परीक्षण हुये। मुगल सम्राट अकबर ने मां ज्वालादेवी की परीक्षा के लिए ज्योतियों को बुझाने के लिए यहां नहर लाकर इन पर पानी डलवाया, बाद में लोहे का तवा चढ़वाया। परन्तु ज्योतियां ज्यों की त्यों प्रज्जवल्लित रहीं। ज्वालामुखी के बारे में एक कथा अकबर और माता के परम भक्त ध्यानु भगत से जुड़ी है। जिन दिनों भारत में मुगल सम्राट अकबर का शासन था, उन्हीं दिनों की यह घटना है। हिमाचल के नादौन ग्राम निवासी माता का एक सेवक धयानु भक्त एक हजार यात्रियों सहित माता के दर्शन के लिए जा रहा था। इतना बड़ा दल देखकर बादशाह के सिपाहियों ने चांदनी चौक दिल्ली मे उन्हें रोक लिया और अकबर के दरबार में ले जाकर ध्यानु भक्त को पेश किया। बादशाह ने पूछा तुम इतने आदमियों को साथ लेकर कहां जा रहे हो। ध्यानु ने हाथ जोड़ कर उत्तर दिया मैं ज्वालामाई के दर्शन के लिए जा रहा हूं मेरे साथ जो लोग हैं, वह भी माता जी के भक्त हैं, और यात्रा पर जा रहे हैं।
बादशाह अकबर ने मंदिर में भरवा दिया था पानी
अकबर ने सुनकर कहा यह ज्वालामाई कौन है ? और वहां जाने से क्या होगा? ध्यानु भक्त ने उत्तर दिया महाराज ज्वालामाई संसार का पालन करने वाली माता है। वे भक्तों के सच्चे ह्रदय से की गई प्राथनाएं स्वीकार करती हैं। उनका प्रताप ऐसा है उनके स्थान पर बिना तेल-बत्ती के ज्योति जलती रहती है। हम लोग प्रतिवर्ष उनके दर्शन जाते हैं। अकबर ने कहा अगर तुम्हारी बंदगी पाक है तो देवी माता जरुर तुम्हारी इज्जत रखेगी। अगर वह तुम जैसे भक्तों का ख्याल न रखे तो फिर तुम्हारी इबादत का क्या फायदा? या तो वह देवी ही यकीन के काबिल नहीं, या फिर तुम्हारी इबादत झूठी है। इम्तहान के लिए हम तुम्हारे घोड़े की गर्दन अलग कर देते है, तुम अपनी देवी से कहकर उसे दोबारा जिन्दा करवा लेना। इस प्रकार घोड़े की गर्दन काट दी गई। ध्यानु भक्त ने कोई उपाए न देखकर बादशाह से एक माह की अवधि तक घोड़े के सिर व धड़ को सुरक्षित रखने की प्रार्थना की। अकबर ने ध्यानु भक्त की बात मान ली और उसे यात्रा करने की अनुमति भी मिल गई। बादशाह से विदा होकर ध्यानु भक्त अपने साथियों सहित माता के दरबार मे जा उपस्थित हुआ। स्नान-पूजन आदि करने के बाद रात भर जागरण किया।
बादशाह अकबर ने चढ़ाया था 50 किलो सोने का छतर
प्रात:काल आरती के समय हाथ जोड़ कर ध्यानु ने प्रार्थना की कि मातेश्वरी आप अन्तर्यामी हैं। बादशाह मेरी भक्ति की परीक्षा ले रहा है, मेरी लाज रखना, मेरे घोड़े को अपनी कृपा व शक्ति से जीवित कर देना। कहते है की अपने भक्त की लाज रखते हुए माँ ने घोड़े को फिर से जि़ंदा कर दिया। यह सब कुछ देखकर बादशाह अकबर हैरान हो गया, उसने अपनी सेना बुलाई और खुद मंदिर की तरफ चल पड़ा। वहाँ पहुँच कर फिर उसके मन में शंका हुई। उसने अपनी सेना से मंदिर पूरे मंदिर में पानी डलवाया, लेकिन माता की ज्वाला बुझी नहीं। तब जाकर उसे माँ की महिमा का यकीन हुआ और उसने सवा मन (पचास किलो) सोने का छतर चढ़ाया। लेकिन माता ने वह छतर कबूल नहीं किया और वह छतर गिर कर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया । आप आज भी वह बादशाह अकबर का चढ़ाया मंदिर में देख सकते हैं। यह मोदी भवन में स्थापित है।
एकलौता मंदिर जहां 5 बार होती है आरती
यही नहीं पिछले पच्चास से अधिक सालों से यहां आसपास की पहाडिय़ों में तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम ने कई परीक्षण किये। उन्हें भी नाकामी ही मिली। विश्व में शायद यही ऐसा देवालय है जहां प्रतिमा की पूजा नहीं होती। व जल रही ज्योति ही शक्ति का साक्षात स्वरूप है। मंदिर में एक ओर रोचक बात यह है कि यहां पांच बार आरती होती है। सुबह ब्रहममूहर्त में पहली आरती होती है। जिसमें मालपुआ, खोआ, मिस्त्री का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इसे मंगल आरती कहते हैं। दूसरी आरती पहली आरती से एक घंटा बाद होती है। इसमें पीले चावल व दही का भोग लगाया जाता है। तीसरी आरती दोपहर के समय की जाती है। इसमें चावल छह मिश्रित दालों व मिठाई का भोग लगाया जाता है। चौथी आरती सांयकाल में की जाती है। इसमें पूरी चना और हल्वा का भोग लगता है। रात करीब नौ बजे शयन आरती होती है। जिसमें माता के शयनकक्ष में सौंदर्यलहरी के मधुर गान के बीच सोलह सिंगार करने के बाद मंदिर के कपाट बंद कर दिये जाते हैं।
ज्वालामुखी कैसे पहुंचे
यहां
पहुंचना
बेहद
आसान
है।
यह
जगह
वायु
मार्ग,
सडक़
मार्ग
और
रेल
मार्ग
से
अच्छी
तरह
जुडी
हुई
है।
वायु
मार्ग
ज्वालाजी
मंदिर
जाने
के
लिए
नजदीकी
हवाई
अड्डा
गगल
में
है
जो
कि
ज्वालाजी
से
46
कि.मी.
की
दूरी
पर
स्थित
है।
यहा
से
मंदिर
तक
जाने
के
लिए
कार
व
बस
सुविधा
उपलब्ध
है।
रेल
मार्ग
रेल
मार्ग
से
जाने
वाले
यात्रि
पठानकोट
से
चलने
वाली
स्पेशल
ट्रेन
की
सहायता
से
मरांदा
होते
हुए
पालमपुर
आ
सकते
है।
पालमपुर
से
मंदिर
तक
जाने
के
लिए
बस
व
कार
सुविधा
उपलब्ध
है।
सडक़
मार्ग
पठानकोट,
दिल्ली,
शिमला
आदि
प्रमुख
शहरो
से
ज्वालामुखी
मंदिर
तक
जाने
के
लिए
बस
व
कार
सुविधा
उपलब्ध
है।
यात्री
अपने
निजी
वाहनो
व
हिमाचल
प्रदेश
टूरिज्म
विभाग
की
बस
के
द्वारा
भी
वहा
तक
पहुंच
सकते
है।
दिल्ली
से
ज्वालाजी
के
लिए
दिल्ली
परिवहन
निगम
की
सीधी
बस
सुविधा
भी
उपलब्ध
है।