रायबरेली से चुनाव लड़ने की खबरों के बीच प्रियंका गांधी पहुंची शिमला
शिमला। रायबरेली से लोकसभा चुनाव लड़ने की खबरों के बीच प्रियंका वाड्रा गांधी शिमला पहुंची हैं। वे शिमला में बन रहे अपने मकान को देखने के लिए गईं थीं। यहां पहुंचते ही उन्होंने अपने आशियाने की साईट का दौरा किया। प्रियंका वाड्रा गांधी का शिमला के पास छराबड़ा में आशियाना बन रहा है। निर्माण कार्य अंतिम चरण में है। वह जल्दी ही नए मकान में रहना भी शुरू कर सकती हैं। उन्होंने मंगलवार को मकान के सौंदर्यीकरण करने के साथ-साथ यहां लाइटों को उचित जगहों पर लगवाने के भी निर्देश दिए हैं।
उन्होंने छराबड़ा जाकर मकान का निरीक्षण किया। मकान का निर्माण कार्य अपने अंतिम चरण में है। इसके इर्द-गिर्द रोपे गए सेब और अन्य फलों के पौधों का भी उन्होंने निरीक्षण किया। वे देर रात तक अपने निर्माणाधीन मकान पर रहीं और लकड़ी की नक्काशी एवं अन्य बारीकियों पर वास्तुकारों से बात करती रहीं। उन्होंने खुद ही यहां माली को भी कहा कि वह किस तरह से उनकी बगिया को तैयार करे।
शुक्रवार को प्रियंका एसपीजी की कड़ी सुरक्षा में पहले होटल वाइल्ड फ्लॉवर हॉल गईं। इसके बाद वह छराबड़ा स्थित अपने निर्माणाधीन भवन का जायजा लेने पहुंचीं। उनके साथ प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष केहर सिंह खाची और उनके बेटे मनजीत खाची भी मौजूद रहे। निर्माणाधीन जमीन की पावर ऑफ अटॉर्नी कांग्रेस नेता केहर सिंह खाची के नाम है। बंगले का निर्माण कार्य 2008 में शुरू हुआ था।
प्रियंका गांधी का ये मकान ठीक राष्ट्रपति निवास रिट्रीट के साथ ही बनाया जा रहा है। कुछ साल पहले पसंद नहीं आने पर प्रियंका अपने निर्माणाधीन मकान की दो मंजिलों को गिरा भी चुकी हैं। इस मकान के निर्माण का उन्होंने शुरू से ही बारीकी से खुद मुआयना किया है। कई बार उनकी मां सोनिया गांधी भी उनके साथ यहां आ चुकी हैं।
यह निर्माण पिछले साल उस समय सुर्खियों में आया था, जब शिमला के विधायक भारद्वाज ने गृह मंत्री राजनाथ सिंह को लिखे पत्र में मांग की थी, कि जनहित को ध्यान में रखते हुए प्रियंका गांधी के भवन निर्माण कार्य की अनुमति को तुरंत रद्द किया जाए और निर्माण कार्य पर भी अविलंब रोक लगाई जाए।
विधायक भारद्वाज ने सेवानिवृत्त नेवल अधिकारी कमांडर देविंद्रजीत सिंह का हवाला देते हुए कहा कि 24 अगस्त 2002 में उन्होंने इस वीवीआईपी क्षेत्र में कॉटेज बनाने के लिए 16 बिस्वा जमीन खरीदी, लेकिन उन्हें इस स्थान पर सुरक्षा का हवाला देते हुए निर्माण की इजाजत नहीं दी गई थी। इसके बाद नेवी अफसर देविंद्रजीत सिंह ने इस जमीन को बेच दिया था।
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