PICs: हिमाचल प्रदेश की पहली महिला ड्राइवर सीमा ठाकुर का ये है ख्वाब
इन दिनों वो शिमला के ओल्ड बस स्टैंड से सीटीओ तक निगम की टैक्सी चला रही हैं। आगे उनका सपना कुछ ये करने का है?
शिमला। शिमला की सड़कों पर इन दिनों सरकार की ओर से चलाई जा रही टैक्सी सेवा के तहत आपको स्टेयरिंग थामे एक महिला दिखाई देती है। जो प्रदेश में महिला अधिकारों की नई इबारत लिखती नजर आती है। प्रदेश में महिला अधिकारों की बात तो होती है लेकिन सामाजिक तौर पर आज भी महिलाओं को चूल्हे चौके के काम से बाहर जाने की इजाजत नहीं मिलती। खासकर ग्रामीण इलाकों में रहने वाली युवतियों की हालत तो खासी दिक्कतों भरी है लेकिन इस सबको चुनौती दे रही हैं हिमाचल पथ परिवहन निगम में तैनात सीमा ठाकुर। सीमा ठाकुर परिवहन निगम की पहली महिला चालक हैं। जिला सोलन के डुढाणा अर्की की रहने वाली सीमा ठाकुर ने बचपन में ही अपने पापा की गोद में बैठ कर ड्राइविंग के गुर सीखे।
ओल्ड बस स्टैंड से सीटीओ तक निगम की टैक्सी चला रही हैं सीमा
अब वो परिवहन निगम में टैक्सी चलाकर अपने लक्ष्य की ओर कदम बढ़ा रही हैं। इन दिनों वो शिमला के ओल्ड बस स्टैंड से सीटीओ तक निगम की टैक्सी चला रही हैं। सीमा ठाकुर का सबसे बड़ा सपना वॉल्वो बस चलाने का है। वो कहती हैं कि वो वॉल्वो चलाने की ट्रेनिंग पर जाना चाहती हैं और जल्द ही अपनी योजना को सिर चढ़ाने के लिए परिवहन निगम के उच्च अधिकारियों से बात करेंगी। उनका मानना है कि जब उन्होंने वो सभी ड्राइविंग टेस्ट पास कर लिए है, जोकि पुरुष ड्राइवर पास करते हैं तो उन्हें भी पुरुष ड्राइवरों की तर्ज पर बस चलाने का मौका दिया जाना चाहिए। इसके लिए सीमा ठाकुर नाइट शिफ्ट देने के लिए भी तैयार है। वो कहती हैं कि, मेरा बचपन से वॉल्वो बस चलाने का सपना रहा है और मुझे पूरी उम्मीद है कि एक दिन ये सपना जरूर पूरा होगा।
19 साल में सीख गई थी बस चलाना
सीमा बताती हैं कि छोटी उम्र में जब आसमान में उड़ते जहाज को देखती थीं तो मेरा भी मन इसी तरह कुछ अलग करने को करता था। पापा की गोद में बैठकर अक्सर बस का स्टेयरिंग घुमाया करती थीं। 5वीं-छठी क्लास से ही बस की छोटी-मोटी तकनीकी बारीकियों को भी सीख लिया था। 19 वर्ष की आयु में पापा के बगैर ही बस चला लेती थी। तभी से इसी प्रोफेशन में रहने की इच्छा जागृत हुई। हालांकि हिमाचल पथ परिवहन निगम में बतौर महिला चालक तैनात हूं लेकिन अभी मेरा सपना पूरा नहीं हुआ है और बहुत कुछ करना बाकी है।
जिंदगी में नहीं मानी हार
उन्होंने बताया कि उन्हें बचपन से ही जब स्टेयरिंग घुमाना शुरू कर दिया था तो घर पर भी किसी ने वाहन चलाने से नहीं रोका। हालांकि निगेटिव दिमाग रखने वाले लोग इस प्रोफेशन से खुश नहीं थे लेकिन मैंने कभी हिम्मत नहीं हारी। मेरे माता-पिता ने मेरा पूरा साथ दिया है और उनके साथ की वजह से ही आज मैं इस प्रोफेशन में हूं। मैं इन दिनों परिवहन निगम की टैक्सी चला रही हूं, जिसमें गाड़ी चलाने के साथ ही टिकट काटने का कार्य भी करना पड़ता है। लोगों के साथ भी मेरा सीधा संवाद होता है।
महिलाओं के लिए सीमा हैं प्रेरणा
लोग महिला ड्राइवर को देखकर पहले जरूर चौंकते थे लेकिन अब निरंतर टैक्सी चलाने के कारण सब कुछ सामान्य हो चुका है। मेरे माता-पिता ही मेरे लिए प्रेरणा स्रोत रहे हैं। हालांकि मेरे पिता आज इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन आज मैं उन्हीं की वजह से अपने पैरों पर खड़ी हूं। मेरे माता-पिता ने मेरे लिए बहुत कुछ किया है और हर समय मेरे जीवन में वो मुझे प्रेरणा देते हैं। सीमा ठाकुर ने कहा कि निगम प्रबंधन को मेरे लक्ष्य के बारे में बखूबी पता है लेकिन वॉल्वो बस चलाने से पहले यदि मुझे ऑर्डिनरी बस भी चलाने को दी जाती है तो मुझे कोई परेशानी नहीं है। जब मेरे पास हैवी व्हीकल लाइसैंस है और मैंने निगम के अन्य ड्राइवरों की तरह टेस्ट पास किया है तो मुझे भी बस चलाने का मौका दिया जाना चाहिए।
खुद पर किया यकीन और बन गई मिसाल
वो मानती हैं कि जीवन में किसी भी कार्य को करने के लिए अपने ऊपर विश्वास होना जरूरी है और हर कार्य को बजाय किसी और का सहारा लेने के अपने दम पर करना चाहिए, तभी कामयाबी हाथ लगेगी। अपने लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ते रहने से ही देर-सवेर नया मुकाम हासिल किया जा सकता है। सीमा का मानना है कि इस प्रोफेशन में कोई कमी नहीं है। ड्राइविंग के लिए हर वाहन में अलग से चालकों के लिए अलग से सीट होती है, ऐसे में ड्राइविंग करने में कोई परेशानी नहीं होती। जब महिलाएं आसमान में जहाज उड़ा सकती हैं, हॉस्पिटल में देर रात को सेवाएं दे सकती हैं, पुलिस और सेना में अपनी सेवाएं दे रही हैं और वहां पर सभी सेफ हैं तो ड्राइविंग भी महिलाओं के लिए ऐसे ही सेफ है। उन्होंने अफसोस जताया कि महिला ड्राइवर होते हुए उनके ऊपर कई तरह की बंदिशें लगाई गई हैं। हालांकि महिला और पुरुषों के लिए समान कार्य के लिए समान नियम होने चाहिए।
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